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आदमी से गधा बेहतर

विश्वनाथ शिरढोणकर
इंदौर (मध्य प्रदेश)
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‘गाढवे, तुम वास्तव में गधे ही हो।’
साहब ने भले ही क्रोध में यह कहाँ पर राजाभाऊ गाढवे बिलकुल शांत ही थे। साहब पर उनकों कतई गुस्सा नहीं आया, बल्कि उन्होंने विनम्रता से कहा, ‘धन्यवाद सर !‘
अब साहब ज्यादा ही नाराज हो गए। उन्हें लगा गाढवे उनका मजाक उड़ा रहें हैं। ‘गाढवे …..गाढवे, अरे मैं तुम्हें साफ़ साफ़ गधा कह रहा हूँ। धन्यवाद क्या दे रहे हो मुझे ?‘ ‘फिर क्या देना चाहिए सर आपको ? ‘ राजाभाऊ ने फिर विनम्रता से कहाँ। वह बिलकुल शांत थे। ‘कुछ भी नहीं।‘ साहब का पारा कुछ ज्यादा ही चढ़ गया था ।‘ मुझे कुछ देने की जरूरत नहीं है । तुम अपना काम ठीक से किया करो ।इतनी मेहरबानी तो कर सकते हो मेरे ऊपर ? ‘
‘यस सर ।‘
राजाभाऊ गाढवे को यह समझ में ही नहीं आ रहा था कि उनकी गलती कहाँ हुई ? और साहब के इतना नाराज होने की वजह क्या हैं ? उन्होंने चुपचाप साहब के सामने से अपनी फ़ाइल उठाई , सारे कागज समेटे और बोले , ‘ जाऊं सर मैं ? ‘
‘ नहीं, भोजन कर के ही जाइएं ।‘ साहब का गुस्सा अभी भी कम नहीं हुआ था ।
‘ यस सर ! ‘ राजाभाऊ ने उतनी ही विनम्रता से कहाँ और साहब के भोजन के निमंत्रण पर विशेष ध्यान न देते हुए वे चुपचाप केबिन से बाहर आकर अपनी जगह आकर बैठ गए ।
‘क्यों राजाभाऊ , आज साहब ने फिर आपको गधा कहाँ ? अब तो साहब का नाम ‘ गिनीज बुक्स ऑफ़ रिकार्ड्स ‘ में देना चाहिए ।‘ हुकुम चपरासी ने भी आज फिर राजाभाऊ से मजाक किया ।
‘हुकुम , मार खानी हैं क्या तुझे ? ‘ फिर बोले , ‘ तू भी कर मजाक मुझसे और साहब के साथ तेरा नाम भी तो ‘ गिनीज बुक्स ऑफ़ रिकार्ड्स ‘ में देना ही पड़ेगा ।लेकिन हुकुम मुझे यह बता कौएं के श्राप से कहीं गाय को मौत आती हैं क्या ? ‘
‘मतलब अपने साहब कौआ ? ‘ हुकुम चपरासी को हंसी आगई,‘ अभी जाकर बोलता हूँ साहब को ।‘ ‘ जा बोल ।’ उतनी ही बेफिक्री से राजाभाऊ बोले , ‘ अरे हुकुम , गधा इतना बुरा प्राणी नहीं होता । बेचारा गधा । मुझे ये बता किसी का क्या लेता हैं रे वो । फिर भी यह आदमी हात धोकर गधे के ही पीछे क्यों पडा रहता हैं ?’ ‘

‘ ओ ! राजाभाऊ , रहने दो तुम्हारा गदर्भ पुराण । गधे से मेरी कोई रिश्तेदारी नहीं हैं ’। हुकुम चपरासी हँसते हुए बोला , ‘ गधे की बातें मुझे मत सुनाओं । मुझे क्या लेना देना गधे से ? बहुत काम पड़ा हैं । मैं कहाँ आपसे उलझ गया ।’ कहकर हुकुम चपरासी बाहर गया । राजाभाऊ गाढवे अपने काम में लग गए । दरअसल साहब ने ही नोटशीट पर सारा सामान खरीदने हेतु अपनी टिपण्णी के साथ और हस्ताक्षर कर , खरीददारी हेतु आर्डर स्वीकृत कर आदेश दिया था । आर्डर बहुत बड़ा था और प्रधान कार्यालय से खरीददारी हेतु पहले ही स्वीकृति आ चुकी थी । शाखाओं से भी सामान के लिए मांग की जा रही थी। शाखाओं की दिक्कत का सोचकर राजाभाऊ साहब के हस्ताक्षर वाला सप्लाय आर्डर भेज कर निश्चिन्त हो गए थे ।उन्होंने इसमें कुछ गलत किया हो ऐसा उन्हें कतई नहीं लगा, पर साहब का गणित ही कुछ अलग होता था और इस दफ्तर के लोगों के लिए यह कोई रहस्य नहीं था ।पर इस बार सप्लायर साहब के घर जाकर मिलने से पहले ही राजाभाऊ खरीददारी का आर्डर दे बैठे ।यही साहब की नाराजी का कारण था।पर अपने काम से काम रखने वाले राजाभाऊ को इन बातों से कोई लेना देना नहीं था सीधे , सच्चे , भोले , विनम्र , कर्तव्यदक्ष , धर्मभीरु , नमक की लाज रखने वाले बेहद ईमानदार ,इन सब गुणों का मिश्रित व्यक्तित्व इस पृथ्वी पर एकमात्र राजाभाऊ गाढवे ही हैं , ऐसा हुकुम चपरासी का मानना था ।पर राजाभाऊ के इसी स्वभाव के कारण उनका किसी से भी निभाव नहीं होता था ।

घर हो या बाहर राजाभाऊ अपने तत्वों के लिए किसी भी कीमत पर किसी से भी समझौता नहीं करते ।समझौता यह शब्द उनके शब्दकोष में ही नहीं था । अवसरवादिता का कोई भी वायरस उनका कुछ भी नहीं बिगाड़ पाता । परंतु उनके इसी स्वभाव के कारण उनको हमेशा ही अपमानित भी होना पड़ता । उन्हें कम आंका जाता और सदैव उनकी उपेक्षा ही होती और हंसी भी उड़ाई जाती पर राजाभाऊ इन सब बातों की ओर ध्यान ही नहीं देते , नाही ज्यादा परवाह करते । –राजाभाऊ की घर में भी किसी से नहीं बनती थी और नाही उनकी घर में पूछ परख होती । हर माह की एक तारीख को तनखा के पैसे पत्नी के हाथ पर रखने के बाद राजाभाऊ भी घर में किसी से ज्यादा संपर्क नहीं रखते। परिवार में राजाभाऊ एक तरह से उपेक्षित ही थे ।उनकी जिन्दगी में अलग ऐसा कुछ भी नहीं था और नाही राजाभाऊ नाम के इस आदमी का परिवार में किसी के लिए कोई महत्व था । अलबत्ता राजाभाऊ के लिए महत्वपूर्ण था उनका नियम से रहना और उनकी ईमानदारी।रोज सुबह ऑफिस में राजाभाऊ दस मिनिट पहिले ही अपनी कुर्सी पर बैठे मिलते और शाम को ऑफिस ख़त्म होने के समय के बाद दस मिनिट से ज्यादा रुकते भी नहीं थे। लंच अवकाश में भी वे अपनी कुर्सी पर ही डिब्बा खोल कर बैठ जाते। पांच मिनिट में उनका लंच हो जाता और वें वापस अपने काम में लग जाते। इतवार दिन भर उनका सोने में , लेटने में या आराम करने में बीत जाता ।सब उन्हें महा आलसी कहते । पर राजाभाऊ को इससे कोई अंतर पड़ने वाला नही था ।राजाभाऊ को एक ही लड़का था और वह भी उसके परिवार सहित दूसरे शहर में था ।घर में बचे माँ-बाप , पत्नी , एक छोटा भाई ,उसकी पत्नी और उसके दो बच्चें बस इतने ही लोग थे । राजाभाऊ को किसी से भी कुछ लेना देना नहीं होता । वे भले , उनकी नोकरी भली और उनका आराम भला। इसलिए रविवार को भी राजाभाऊ को घर-परिवार का ना कोई काम ना कोई झंझट।बिलकुल तनाव रहित सुखी जिन्दगी जी रहे थे राजाभाऊ ।सीधासादा जीवन कह लीजिए ।

गधे से राजाभाऊ की सहानुभूति की भी अपनी एक अलग ही कहानी है ।बचपन से ही राजाभाऊ अपने पिता जिन्हें राजाभाऊ बापू कहते ,के मुंह से दिनमें जाने कितनी बार यह सुनते , ‘ तुम बिलकुल गधे हो। गधे जैसे हो और गधे जैसे ही रहोगे ।‘ या फिर कभी कहते , ‘ गधे जैसा बर्ताव मत करों ।‘ और तभी से बालक राजाभाऊ के बालमन में गधे नामक प्राणी के बारे में जानने की जिज्ञासा पैदा हुई।कैसे होता है गधा ? कैसे बर्ताव करता है गधा ? बापू कहते हैं गधे जैसा बर्ताव मत करो मतलब क्या नहीं करो ? बालक राजाभाऊ सोचता कि अगर गधे का बर्ताव समझ में आजाए तो कम से कम पता तो पड़ेगा कि उससे क्या गलती हो रही है ? पर बालक राजाभाऊ को गधे के बर्ताव के बारे में उस बचपन की उम्र में कुछ भी पता नहीं चल सका। इस बाबद उन्हें हमेशा आश्चर्य होता। आगे स्कूल में भी मास्टरजी उससे कुछ पूछते और राजाभाऊ कुछ जवाब ना दे पाते तो मास्टरजी तुरंत बोल पड़ते , ‘ गधे के आगे कितना भी गीता पाठ करो उसका क्या उपयोग ? बैठ !तू अपनी जगह पर ही बैठा रह । ‘ मास्टरजी के हर बार यह कहने पर , राजाभाऊ को हमेशा यह सवाल परेशान करता कि आखिर गधे के सामने गीता का पाठ करने की जरुरत क्या है ? अब इस में गीता का पाठ करने वाले की गलती हैं या गधे की ? इसमें गधे को क्यों बदनाम किया जाता हैं ? और गधे के आगे गीता पढने वाला मूर्ख या बुद्धिमान ? इस तरह की घटनाओं से राजाभाऊ को गधा नामक प्राणी से सहानुभूति होने लगी ।उनका गधे के प्रति आकर्षण बढ़ने लगा । उसे नजदीक से देखने की इच्छा बलवती होने लगी ।

दिखने में राजाभाऊ बहुत गोरे चिट्टे और सुन्दर थे। फिर भी राजाभाऊ को बचपन से ही घर के सब नासमझ ही कहते । दोस्त तो उन्हें मूर्ख ही कहते थे ।बचपन में जब भी माँ बालक राजाभाऊ को नहलाती , घर के लोग उनके लिए हमेशा कहते , ‘ गधे को कितना भी नहलाओं वह बछड़ा नहीं होने वाला ।’ राजाभाऊ को यह समझ में ही नहीं आता कि गधे का , आदमी का , और बछड़े का उनके नहाने से क्या सम्बन्ध ? और यह कि गधे से बछड़ा समझदार होता है क्या ? सब हँसते पर राजाभाऊ यह सोच कर ही परेशान होते रहते । और तो और जब राजाभाऊ का एक सांवली सी दिखने वाली लड़की से ब्याह तय हो गया और इत्तफाक से राजाभाऊ भी उस पर फ़िदा हो बैठे तो घर बाहर के और यहाँ तक कि दोस्त भी शादी में उनका मजाक ही उड़ाते रहे । जाने कितनी बार सब ने यह कहकर राजाभाऊ को हैरान किया कि , ‘ दिल लगा गधी से तो परी क्या चीज हैं ? ‘ हालाँकि यह उनकी पत्नी के लिए होता था पर सुनाया राजाभाऊ को जाता । हद तो तब हो गयी जब राजाभाऊ के पिता ने भी इस मुहावरे को कई बार जानबूझ कर सुनाया ।अपनी शादी में ही अपनी पत्नी को बार बार गधी कहलाने से राजाभाऊ परेशान जरुर हुए पर इसी कारण गधे से भी उनकी नजदीकी बढती चली गयी ।हालाँकि अब तक उनका गधे नामक प्राणी से कोई नजदीकी सम्बन्ध नहीं था पर उन्होंने उस दिन तय किया कि जब भी अवसर मिलेगा वें कुम्हार के वहां जाकर गधे के बारे में सारी जानकारी हासिल करेंगे ।

बचपन से बड़ा होने तक राजाभाऊ को घर और बाहर खुद के लिए गधे का सम्बोंधन बार बार कानों में पड़ने से , गधे नामक प्राणी से राजाभाऊ के मन में गधे के लिए अपनत्व की भावना पनपने लगी , पर वह भावना बलवती होने की भी अपनी पुराणों जैसी ही कथा हैं । मतलब कहानी में कोई अजब गजब नगर वगैरे नहीं था , पर एक बार राजाभाऊ स्कूल जा रहे थे ।ग्यारह बजे का समय था।उन्हें स्कूल पहुचने की जल्दी थी। ऐसे ही में भीड़भरे रस्ते पर एक ठेलेवाले ने किसी आवारा खुजलीवाले पगलाए कुत्ते पर लाठी से वार किया । और वह कुत्ता इनके ऊपर दौड़ कर आया और राजाभाऊ को काटने को हुआ । राजाभाऊ के हॉफपेंट की कोर कुत्ते के मुंह में थी और राजाभाऊ को बचने की भी जगह नहीं थी । अब राजाभाऊ क्या करे ? वह इतना सोच ही रहे थे कि अचानक दो गधे चिल्लाते हुए दौड़ कर आए और इस कारण कुत्ते को मुंह की हॉफपेंट की कोर छोड़ना पड़ी और गधों के डर से कुत्ता वहां से भाग गया । उस वक्त राजाभाऊ को लगा कि गधे भगवान जैसे प्रगट हुए और उनकी मदत हेतु दौड़ कर आए और उन्होंने ही उनको कुत्ते से बचाया। बस उसी दिन से राजाभाऊ मन ही मन उन दो गधों के एहसान मानने लगे । राजाभाऊ के मन में उस दिन ये बात भी घर कर गई कि कुत्ता भी इंसान से नहीं गधों से ही डरता हैं ।गधों के पीछे पीछे उनका मालिक दौड़ता हुआ आ रहा था वो जरुर हड़बड़ी में राजाभाऊ से टकराया और राजाभाऊ गिर पड़े । ज्यादा चोट नहीं आई , पर हरकत नहीं कुत्ते के काटने से तो बचे , नहीं तो बड़े बड़े चौदह इंजेक्शन लगाने पड़ते । गधे की दुल्लती एक बार सहन हो सकती हैं पर खुजलीवाले पगलाए कुत्ते का काटना कतई सहन नहीं हो सकता । मतलब कुत्ते से भला आदमी ।पर इन दोनों से तो गधा ही अच्छा । बस हो गया । राजाभाऊ के मन में उस दिन एक बात पक्के से घर कर गई कि कुत्ते और आदमी से तो गधा ही अच्छा ।और उस दिन से वें सब को यह बोल कर भी बताने लगे कि आदमी से तो गधा ही अच्छा ।

और एक दिन सचमुच ही राजाभाऊ शहर से बाहर एक कुम्हार के यहाँ पहुच गए ।उन्हें कुम्हार ने बहुत सारी ज्ञान की बातें बताई । कुम्हार से मिलने के बाद ही राजाभाऊ को गधे की कई विशेषताओं के बारे में ज्ञात हुआ। कुम्हार ने बताया कि , विश्व में सबसे अच्छा प्राणी गधा ही हैं । सीधेसादे स्वामी भक्त गधे में लोमड़ी जैसी चालबाजी नहीं , शेर जैसी क्रूरता नहीं । ख़ास बात यह कि वह कामचोर नही , काम के बोझे का बुरा नहीं मानता । कुत्ता पालने से तो गधा पालना बेहतर । कुत्ते सरीखा , गधा आदमी को काटने नहीं दौड़ता ।आखिर कुत्ता भौकने के सिवाय किस काम का ? पर ना जाने क्यों लोग कुत्ता पालना अपनी शान समझते हैं ? विशेष यह कि कुत्ते से सब डरते हैं पर गधा किसी को डराता नहीं हैं । गधे के चिल्लाने की आवाज पूरे गाँव में सुनाई देती हैं और इस तरह चोर भाग जाता हैं पर एक कुत्ता अकेला नहीं चिल्लाता सब कुत्तों को इकठा कर लेता हैं ।कुत्ता किसी के रोजगार में मद्तगार नहीं हैं ।गधा कुम्हार का सच्चा साथी हैं ।और राजाभाऊ का तो बन ही गया ।

शाम के पांच बज चुके थे ।राजाभाऊ अपना सामान समेटने लगे ।इतने में हुकुम ने आकर बताया कि साहब बुला रहें हैं । हुकुम की आँखों में शरारत थी ।मानों कह रहीं हो कि , ‘ साहब फिर से आपकों गधा कहने वाले हैं । पर राजाभाऊ बेफिक्र थे । अन्दर जाते ही साहब ने कहाँ , ‘ आओं राजाभाऊ । ‘

राजाभाऊ को आश्चर्य हुआ ।साहब उनकों हमेशा गाढवे कहकर बुलाते थे पर इस बार वें राजाभाऊ कह रहे थे । ‘बैठिए।‘ अब साहब ने राजाभाऊ को एक और आश्चर्य का धक्का दिया।
राजाभाऊ सोचने लगे , ‘ इतना सन्मान ? ‘ जरुर कुछ गडबड हैं ? पर साहब हंस रहे थे । ‘ क्या हुआ सर ? राजाभाऊ ने अपनी आदत के अनुसार ही बड़ी विनम्रता से पूछा । ‘कुछ नहीं ।राजाभाऊ ,आय एम सॉरी । सुबह मैं आपसे बिना कारण नाराज ।हुआ आपको गधा कहाँ ।आप भी क्या सोच रहें होंगे ? ‘साहब बोले ।
‘ कुछ नहीं सर । मैं तो गधे के बारे में सोच रहा था ।‘ अचानक राजाभाऊ के मुंह से निकला ।साहब राजाभाऊ का मुंह देखने लगे । ‘राजाभाऊ क्या कह रहे हों ? ‘ साहब बोले ।
‘कुछ नहीं । आपने क्यों याद किया सर ?’ राजाभाऊ विनम्रता से बोले फिर उन्हें साहब की सुबह की नाराजी याद आई , ‘ हम अभी भी सप्लाई आर्डर रद्द कर सकते हैं सर ।मैं अभी चिट्ठी बनाकर लाता हूँ । उसने अभी तो कुछ भेजा भी नहीं होगा ? ’ ‘रहने दो । मैं लंच में घर गया था ना तो वो सप्प्लायर भी मेरे पीछे पीछे घर आगया था ।हाथ पैर जोड़ रहा था । मैंने सोचा जाने दो . हमेशा का व्यवहार हैं ।‘ साहब की नजरें नीची ही थी ।

‘चलो अच्छा हुआ वो आपसे घर मिल लिया ।’ राजाभाऊ के मुंह से अनजाने निकल गया । साहब ने आश्चर्य से राजाभाऊ की ओर देखा पर राजाभाऊ शांत थे ।
‘ और कुछ काम हैं सर ? ‘ राजाभाऊ ने पूछा ।
‘ नहीं ।‘ साहब बोले।
‘ जाऊं सर ।‘
‘ हाँ ।‘
बाहर आते ही हुकुम चपरासी ने फिर पूछा , ‘ क्या हुआ राजाभाऊ ? साहब ने आपकों फिर गधा कहाँ ? साहब को आप कुछ जवाब क्यों नहीं देते ? ‘
‘ नहीं .उसकी जरुरत नहीं ।‘ राजाभाऊ बोले , ‘ पर हुकुम मुझे एक बात यह बता कि गधा सिर्फ घांस ही खाता हैं ? रिश्वत नहीं खाता क्या ? ‘
हुकुम चपरासी बहुत देर तक जोर से हंस रहा था ।राजाभाऊ ख़ामोशी से बाहर आ रहे थे .

परिचय : विश्वनाथ शिरढोणकर
मध्य प्रदेश इंदौर निवासी साहित्यकार विश्वनाथ शिरढोणकर का जन्म सन १९४७ में हुआ आपने साहित्य सेवा सन १९६३ से हिंदी में शुरू की। उन दिनों इंदौर से प्रकाशित दैनिक, ‘नई दुनिया’ में आपके बहुत सारे लेख, कहानियाँ और कविताऍ प्रकाशित हुई। खुद के लेखन के अतिरिक्त उन दिनों मराठी के प्रसिध्द लेखकों, यदुनाथ थत्ते, राजा-राजवाड़े, वि. आ. बुवा, इंद्रायणी सावकार, रमेश मंत्री आदि की रचनाओं का मराठी से किया हुआ हिंदी अनुवाद भी अनेक पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुए। इंदौर से ही प्रकाशित श्री मध्यभारत हिंदी साहित्य समिति की प्रसिध्द मासिक पत्रिका ‘वीणा’ में आपके द्वारा लिखित कहानियों का प्रकाशन हुआ। आपकी और भी उपलब्धियां रही जैसे आगरा से प्रकाशित ‘नोंकझोंक’, इंदौर से प्रकाशित, ‘आरती’ में कहानियों का प्रकाशन। आकाशवाणी इंदौर तथा आकाशवाणी भोपाल एवं विविध भारती के ‘हवा महल’ कार्यक्रमों में नाटको का प्रसारण। ‘नईदुनिया’ के दीपावली – २०११ के अंक में कहानी का प्रकाशन। उज्जैन से प्रकाशित, “शब्द प्रवाह” काव्य संकलन – २०१३ में कविता प्रकाशन। बेलगांव, कर्नाटक से प्रकाशित काव्य संकलन, “क्योकि हम जिन्दा है” में गजलों का प्रकाशन। फेसबुक पर २०० से अधिक हिंदी कविताएँ विभिन्न साहित्यिक समूहों पर पोस्ट। उपन्यास, “मैं था मैं नहीं था” का फरवरी – २०१९ में पुणे से प्रकाशन एवं काव्य संग्रह “उजास की पैरवी” का अगस्त २०१८ में इंदौर सेर प्रकाशन। रवीना प्रकाशन, दिल्ली से २०१९ में एक हिंदी कथासंग्रह, “हजार मुंह का रावण” का प्रकाशन लोकापर्ण की राह पर है।
वहीँ मराठी में इंदौर से प्रकाशित, ‘समाज चिंतन’, ‘श्री सर्वोत्तम’, साप्ताहिक ‘मी मराठी’ बाल मासिक, ‘देव पुत्र’ आदि के दीपावली अंको सहित अनेक अंको में नियमित प्रकाशन। मुंबई से प्रकाशित, ‘अक्षर संवेदना’ (दीपावली – २०११) तथा ‘रंग श्रेयाली’ (दीपावली २०१२ तथा दीपावली २०१३), कोल्हापुर से प्रकाशित, ‘साहित्य सहयोग’ (दीपावली २०१३), पुणे से प्रकाशित, ‘काव्य दीप’, ‘सत्याग्रही एक विचारधारा’, ‘माझी वाहिनी’,”चपराक” दीपावली – २०१३ अंक, इत्यादि में कथा, कविता, एवं ललित लेखों का नियमित प्रकाशन। अभी तक ५० कहानियाँ, ५० से अधिक कविताएँ व् १०० से अधिक ललित लेखों का प्रकाशनI फेसबुक पर हिंदी/मराठी के ५० से भी अधिक साहित्यिक समूहों में सक्रिय सदस्यता। मराठी कविता विश्व के, ई – दीपावली २०१३ के अंक में कविता प्रकाशित।
एक ही विषय पर लिखी १२ कविताऍ और उन्ही विषयों पर लिखी १२ कथाओं का अनूठा काव्यकथा संग्रह, ‘कविता सांगे कथा’ का वर्ष २०१० में इंदौर से प्रकाशन। वर्ष २०१२ में एक कथा संग्रह, ‘व्यवस्थेचा ईश्वर’ तथा एक ललित लेख संग्रह, ‘नेते पेरावे नेते उगवावे’ का पुणे से प्रकाशन। जनवरी – २०१४ में एक काव्य संग्रह ‘फेसबुकच्या सावलीत’ का इंदौर से प्रकाशन। जुलाई २०१५ में पुणे से मराठी काव्य संग्रह, “विहान” का प्रकाशन। २०१६ में उपन्यास ‘मी होतो मी नव्हतो’ का प्रकाशन , एवं २०१७ में’ मध्य प्रदेश आणि मराठी अस्मिता” का प्रकाशन, मध्य प्रदेश मराठी साहित्य संघ भोपाल द्वारा मध्य प्रदेश के आज तक के कवियों का प्रतिनिधिक काव्य संकलन, “मध्य प्रदेशातील मराठी कविता” में कविता का प्रकाशन। अभी तक मराठी में कुल दस पुस्तकों का प्रकाशन।
८६ वे अखिल भारतीय मराठी साहित्य सम्मेलन, चंद्रपुर (महाराष्ट्र) में आमंत्रित कवि के रूप में सहभाग। पुस्तकों में मराठी में एक काव्य संग्रह, ‘बिन चेहऱ्याचा माणूस खास’ को इंदौर के महाराष्ट्र साहित्य सभा का २००८ का प्रतिष्ठित ‘तात्या साहेब सरवटे’ शारदोतस्व पुरस्कार प्राप्त। राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच इंदौर म. प्र. (hindirakshak.com) द्वारा हिंदी रक्षक २०२० राष्ट्रीय सम्मान, मराठी काव्य संग्रह “फेसबुक च्या सावलीत” को २०१७ में आपले वाचनालय, इंदौर का वसंत सन्मान प्राप्त। २०१९ में युवा साहित्यिक मंच, दिल्ली द्वारा गैर हिंदी भाषी हिंदी लेखक का, बाबूराव पराड़कर स्मृति सन्मान वर्ष २०१९ हेतु प्राप्त। दिल्ली, इंदौर, भोपाल, ग्वालियर, इटारसी, बुरहानपुर, पुणे, शिरूर, बड़ोदा, ठाणे इत्यादि जगह काव्यसंमेलन, साहित्य संमेलन एवं व्याख्यान में सहभागीता। 


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