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और कुछ नहीं जिन्दगी

रश्मि श्रीवास्तव “सुकून”
पदमनाभपुर दुर्ग (छत्तीसगढ़)
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छायी हर तरफ हाहाकारी
समय अब पड़ रहा भारी
बंद है काम धंधे सब
कैसे हो बन्दोबस्त अब
कैसे कट रही जिन्दगी
बस कट रही जिन्दगी
बस डर है बस खौफ है
और कुछ नहीं जिन्दगी
घर के अन्दर है बैचैनी
बाहर है मौत का पहरा
ऊपर वाला क्या सोंचे क्या पता
इंसान तो इंसान ठहरा
विपदा की इस घड़ी में
कुछ लोग ऐसे हैं
हर हाल में जिनको
कमाने सिर्फ पैसे हैं
किस बात का गुरुर
इन्सान तू करता है
यहीं सब छूट जाना है
जो जमा तू करता है
बस तेरी नेकी जायेगी
बस तेरे ये कर्म जायेंगे
यहाँ न कुछ लेकर आये थे
न ही कुछ लेकर जायेंगे
दो पल का “सुकून”
किसी को देकर तू देख
फिर बदले में ऊपर वाला
तूझे क्या देता है तू देख

परिचय : रश्मि श्रीवास्तव “सुकून”
निवासी : मुक्तनगर, पदमनाभपुर दुर्ग (छत्तीसगढ़)
घोषणा : मैं यह शपथ पूर्वक घोषणा करती हूँ कि उपरोक्त रचना पूर्णतः मौलिक है।


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