Friday, November 22राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर आपका स्वागत है... अभी सम्पर्क करें ९८२७३६०३६०

कवि और चप्पल

जितेंद्र शिवहरे
महू, इंदौर (मध्य प्रदेश)
********************

                  एक कवि मित्र ने स्व प्रयासों से जैसे-तैसे कवि सम्मेलन का आयोजन किया। मैं भी निमंत्रित था। मंचीय स्टेज पर चढ़ने से पूर्व चरण पादुकाएं नीचे एक ओर व्यवस्थित रख दी थी। सम्मेलन निपटाकर ज्यों ही चप्पलें ढूंठी, नहीं मिली। सारा पांडाल खगांल मारा। किन्तु चप्पलों का नामों निशान तक न था। हडकंप मच गया कि चोरल वाले कवि महोदय की चप्पलें चोरी चली गयीं। मेरे लिए बिना चप्पलों के एक पग चलना भी दूभर हो रहा था। नंगे पैर घर कैसे जाता? कवि मित्र से प्रार्थना की कोई वैकल्पिक व्यवस्था करें। उन्होंने बहुत देर तक विचार किया परन्तु कोई युक्ती नहीं निकली। रात्री के तीन बजे चप्पलों की दुकान कहां खोजते? अन्य कवि मित्रों ने आयोजक कवि मित्र पर दबाव बनाया की मानदेय भले न दें, लेकिन कवि महोदय की चप्पलों की व्यवस्था तो करें। आयोजक कवि मित्र मान गये। अपनी पहनी हुई चप्पलें देने को सहमत होते दिखें। किन्तु उसके एवज में लागत से अधिक राशी की मांग कर रहे थे। चप्पलें थी तो पुरानी मगर मरता क्या न करता! मैं मान गया! साहठ रूपयों की चप्पलों के एक सौ बीस रूपये की मांग थी। बहुत मान-मनौव्वल की। किन्तु वे टस से मस न हुये। दलील में बोले की ये चप्पले भले ही साहठ रूपयों की है किन्तु टूटने और फटने पर चार मर्तबा चप्पलों पर १०-१० रूपयें के मान से चप्पलों की मरम्मत का व्यय हुआ था, उसका क्या? ‘इस हिसाब से तो चालिस रूपये हुये और पुर्व क्रय लागत के साहठ रूपये मिलाकर कुल सौ रूपयें ही हुये है। आप एक सौ साहठ रूपये किस बात के मांग रहे है?” एक अन्य कवि मेरे सपोर्ट में बोलें।
“अरे वाह! चार बार फेबीक्यूब भी तो लगाया था। उसके बीस रूपये कौन जोड़ेगा?” कवि मित्र तिलमिलाते हुये बोले।
“हमारे पति जी सत्य कह रहे है। फेबीक्यूब का ट्यूब हम ही खरीद-खरीद कर लाकर दिये थे इन्हें।” कवि मित्र की धर्मपत्नी प्रमाण देते हुये बोली।
पांच रूपये का फैवीक्यूब जो चार बार चप्पलों पर पोता गया था, के रूपये मिलाकर चप्पलों की कुल लागत एक सौ बीस रूपये हो गयी थीं। चप्पलें दिखने भर से हेवी प्रतित हो रही थी। पैरों के नीचे आते ही उनके वजनी होने का भी प्रमाण मिल गया। खैर…! चप्पल की राशी का भुगतान कर बिना मानदेय का लिफाफा लेकर जैसे तैसे घर पहूंचा। घर आकर श्रीमती जी को पुरा वाकया बताया। पेट दुखने तक हंसी और चप्पलों को म्यूजियम में रखने जैसा ऐन्टीक पीस समझकर उसने आज भी संभाले रखा है। आने-जाने वाले मेहमान को श्रीमती जी वे चप्पलें अवश्य दिखाती और पुरी घटना चटखारे लगाकर सुनाया करती। मेहमान के साथ स्वयं भी खूब हंसती और हंसाती। अब तो मैं भी उस घटना का आनंद लेने लगा हूं। अगर आपको भी उन चप्पलों के दीदार करना है तो चले आईये मेरे घर पर। चाय और चप्पलें दोनों तैयार है आपके लिए।

परिचय :- जितेंद्र शिवहरे आपकी आयु – ३४ वर्ष है,  इंदौर निवासी जितेंद्र शा. प्रा. वि. सुरतिपुरा चोरल महू में सहायक अध्यापक के पद पर पदस्थ होने के साथ साथ मंचीय कवि भी हैं, आपने कई प्रतिष्ठित मंचों पर कविता पाठ किया है।
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर अणु डाक (मेल) कीजिये, अणु डाक करने के बाद हमे हमारे नंबर ९८२७३ ६०३६० पर सूचित अवश्य करें …🙏🏻

आपको यह रचना अच्छी लगे तो साझा जरुर कीजिये और पढते रहे hindirakshak.com राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच से जुड़ने व कविताएं, कहानियां, लेख, आदि अपने चलभाष पर प्राप्त करने हेतु राष्ट्रीय  हिन्दी रक्षक मंच की इस लिंक को खोलें और लाइक करें 👉 👉 hindi rakshak manch  👈… राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच का सदस्य बनने हेतु अपने चलभाष पर पहले हमारा चलभाष क्रमांक ९८२७३ ६०३६० सुरक्षित कर लें फिर उस पर अपना नाम और कृपया मुझे जोड़ें लिखकर हमें भेजें….🙏🏻

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *