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कवि का जीवन

अख्तर अली शाह “अनन्त”
नीमच (मध्य प्रदेश)
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कवि का जीवन संस्कारित पथ,
तारणहार कवि है।
कुरीतियाँ हैं व्याधि अगर तो,
बस उपचार कवि है।।
गुरु है वो जो “अनंत” कहता,
उसकी कथनी मानें।
जिसपे टिकी सभ्यता की छत,
वो दीवार कवि है।।

अंधकार में रहकर के कवि,
करे उजाला घर-घर।
भले हलाहल पीले वो पर,
बनता सच्चा रहबर।।
“अनन्त” धुन का मालिक है वो,
निर्देशित है खुद से।
उसका जीना उसका मरना,
कब होता है डरकर।।

खिला कमल है कवि कीचड़ में,
सबकी करे भलाई।
तुम बारूदी कर लो खुद को,
वो है दियासलाई।।
“अनन्त” नम भूमि में ही तो,
जीवन नित फलता है।
बिना प्रयासों के कब मिलती,
लोगों दूध मलाई।।

कवि वही जो संप्रभु शक्ति,
से ताकत पाता है।
दरबारों में नहीं उठाता,
हाथ न यश गाता है।।
आती-जाती सरकारों के,
क्यों “अनंत” गुणगाए।
सेवक बनकर बंदो का जो,
ऊपर से आता है।।

परिचय :- अख्तर अली शाह “अनन्त”
पिता : कासमशाह
जन्म : ११/०७/१९४७ (ग्यारह जुलाई सन् उन्नीस सौ सैंतालीस)
सम्प्रति : अधिवक्ता
पता : नीमच जिला- नीमच (मध्य प्रदेश)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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