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प्रेम रंग ले खेले होली

भीमराव झरबड़े ‘जीवन’
बैतूल (मध्य प्रदेश)
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गीतिका
आधार छंद – चौपाई
विधान – कुल १६ मात्राएँ, आदि में द्विकल त्रिकल त्रिकल वर्जित, अंत में गाल वर्जित
समांत – ओली, अपदांत

हँसी, खुशी, मस्ती की टोली।
प्रेम रंग ले खेले होली।।१

चुन्नू-मुन्नू के मुखड़े अब,
लगे उकेरी है रंगोली।।२

लाल हुआ है किंशुक का तन,
सुन बसंत की हँसी ठिठोली।।३

महुए पर चढ़ दाग रहा है,
फागुन पिचकारी से गोली।।४

हरिया धनिया देख चहकते,
अटी अन्न से खाली खोली।।५

हुए पड़ोसन के स्वर मीठे,
कोकिल ने मुख मिश्री घोली।।६

सरस लेखनी कहती है बस,
‘जीवन’ के भावों की बोली।।७

परिचय :- भीमराव झरबड़े ‘जीवन’
निवासी : बैतूल मध्य प्रदेश
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।

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