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नजर से नजर मिली तो

अख्तर अली शाह “अनन्त”
नीमच (मध्य प्रदेश)
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तू मिली तो जीने का बहाना मिल गया।
नजर से नजर मिली तो खजाना मिल गया।।

वो सुहाना वक्त था जब मिले नयन-नयन।
जब मिले अधर अधर जब मिले बदन-बदन।।
पंख लगे आरजूओं को हंसी गगन मिला।
पंछियों को पर यूँ फड़फड़ाना मिल गया।।
तू मिली तो जीने का बहाना मिल गया।
नजर से नजर मिलीतो खजाना मिल गया।।

हुस्न और इश्क का मिलन बड़ा अजीब है।
मरना जिंदगी के लिए हो गया करीब है।।
तीर तेज करके रखे थे वो अनायास ही।
मुस्कुराए छूने को निशाना मिल गया।।
तू मिली तो जीने का बहाना मिल गया।
नजर से नजर मिलीतो खजाना मिल गया।।

रूप का महल कहूँ या कहूँ कि ताज है।
मरमरी बदन तेरा, जो हंसता आज है।।
हट सकी नजर नहीं जम गई तो जम गई।
लड़खड़ाते कदमों को ठिकाना मिल गया।।
तू मिली तो जीने का बहाना मिल गया।
नजर से नजर मिलीतो खजाना मिल गया।।

जलती हुई हुस्नकी मशाल बाकमाल तू।
या कहूं कि अक्स कयामत का बेमिसाल तू।।
प्यार का बहा रही दरिया निगाहें तेरी।
मुझको करम से तेरे नहाना मिल गया।।
तू मिली तो जीने का बहाना मिल गया।
नजर से नजर मिलीतो खजाना मिलगया।।

हसरतों के गुल खिले हर तरफ बहार है।
थी जहां उदासियां अब वहां निखार है।।
होठ चुप भले रहें नजरें कह रही सभी।
चाहा जिंदगी ने जो तराना मिल गया।।
तू मिली तो जीने का बहाना मिल गया।
नजर से नजर मिली तो खजाना मिलगया।।

इश्क के उफनते समुंदर में मेरे जोश है।
तू ही तू दिखे फकत इतना मुझे होश है।।
“अनंत” तेरे प्यार में दीवाना यह कहे।
गूंगे मेरे लब थे गुनगुनाना मिल गया।।
तू मिली तो जीने का बहाना मिल गया।
नजर से नजर मिली तो खजाना मिल गया।।

परिचय :- अख्तर अली शाह “अनन्त”
पिता : कासमशाह
जन्म : ११/०७/१९४७ (ग्यारह जुलाई सन् उन्नीस सौ सैंतालीस)
सम्प्रति : अधिवक्ता
पता : नीमच जिला- नीमच (मध्य प्रदेश)


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