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शरमा जाते है

संजय जैन
मुंबई (महाराष्ट्र)
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रोज सजने संवरने को
दर्पण के समाने आते हो।
देख कर तेरा ये रूप
दर्पण खुद शरमा जाता हैं।।

रोज बन संवरकर तुम
घर से जब निकलते हो।
देख कर कुंवारे लड़के
बहुत शरमा जाते हैं।।

अपने आँखो से तुम
जब निगाहें घूमाती हो।
तब कुंवारों का दिल
डगमगाने लगता है।।

हँसते हुए चेहरे पर
जब चश्मा लगाती हो।
देखकर ये अदाये तेरी
लड़को की आँखे शर्माती है।

होठों की तेरी लाली
तेरे चेहरे पर खिलती हैं।
बोलती हो तुम कुछ भी
मानो फूल झड़ रहे हो जैसे।

खूबसूरती में तुम मेनका
जैसी सुंदर लगती हो।
तभी तो विश्वामित्रों की
तपस्या भंग हो जाती हैं।।

जिस पर भी तुम अपना
ये हुस्न लूटाओगी।
उसको साक्षात जन्नत
जिंदगी में मिल जायेगी।।

परिचय :- बीना (मध्यप्रदेश) के निवासी संजय जैन वर्तमान में मुम्बई में कार्यरत हैं। करीब २५ वर्ष से बम्बई में पब्लिक लिमिटेड कंपनी में मैनेजर के पद पर कार्यरत श्री जैन शौक से लेखन में सक्रिय हैं और इनकी रचनाएं राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच (hindirakshak.com) सहित बहुत सारे अखबारों-पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहती हैं। ये अपनी लेखनी का जौहर कई मंचों पर भी दिखा चुके हैं। इसी के चलते कई सामाजिक संस्थाओं द्वारा इन्हें सम्मानित किया जा चुका है। आप मुम्बई के नवभारत टाईम्स में ब्लॉग भी लिखने के साथ-साथ मास्टर ऑफ़ कॉमर्स की शैक्षणिक योग्यता रखने वाले संजय जैन कॊ लेख,कविताएं और गीत आदि लिखने का बहुत शौक है, आप लिखने-पढ़ने के ज़रिए सामाजिक गतिविधियों में भी हमेशा सक्रिय रहते हैं।
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