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आईना

ममता श्रवण अग्रवाल (अपराजिता)
धवारी सतना (मध्य प्रदेश)
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सबने मुझे दिखाया आईना,
और, खुद न देखा उनने आईना।
पर, रूप मेरा निखार दिया,
दिखा, दिखा कर सबने आईना।।

जब मन में होता कोई चोर,
तब न भाता तनिक आईना।
पर, जब मन हो जाता निर्मल,
तब मन ही अपना होता आईना।।

सब कुछ भरा है मन के अंदर,
नित होता भले बुरे का सामना।
पर अगर मांज ले मन अपना,
तब, खिल जाए मन का आईना।।

देखो काँच का टुकड़ा दर्पण,
हमको सिखलाता यह भावना।
यह चूर-चूर हो जाये फिर भी
रूप दिखाता हमें आईना।।

आओ इससे हम यह सीखें
अपनी पीड़ा को पी लेना।
और, औरों को देने खुशियाँ,
निर्मल कर लें मन का आइना।।

विशेष :- आईना टूट कर बिखर जाता है पर अक्स दिखाना नही छोड़ता जो इसका गुण है। इसी तरह मनुष्य को चाहिए कि विपरीत परिस्थितियों में भी अपने गुणों को नही छोड़े।

परिचय :- ममता श्रवण अग्रवाल (अपराजिता)
निवासी – धवारी सतना (मध्य प्रदेश)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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