विश्वनाथ शिरढोणकर
इंदौर म.प्र.
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ताराबाई के शरीर से प्राण निकले और आखिरकार इस भवसागर से उसको मुक्ति मिल गई। अब ताराबाई के शरीर से प्राण निकले जरुर पर उसकी आत्मा का क्या? भगवद्गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने कहा हैं, ‘जो मरता हैं वह शरीर। आत्मा कभी नहीं मरती। और प्रत्येक शरीर में एक अदद आत्मा भी तो होती ही हैं। अर्थात जिसे मृत्यु के मुख में जाना होता हैं वह शरीर और जिसका मृत्यु कुछ भी नहीं बिगाड सकती वह अजरामर आत्मा। इसीलिए हम सब को हमेशा यहीं बताया जाता हैं कि आत्मा हर जन्म में हमेशा शरीर रूपी कपडे बदलती रहती हैं और यह कि आत्मा अमर होती हैं ।
अब सवाल यह कि ताराबाई की मृत्यु के बाद ताराबाई का शरीर छोड़ने वाली और ताराबाई की अमर कहलाने वाली आत्मा अभी तक कहाँ भटक रही होगी? ज़रा ठहरिए। कहाँ भटकेगी? अभी तो इसी घर में, नहीं-नहीं इसी कमरें में भटक रहीं होगी? अभी तो ताराबाई की मृत देह जमीन पर ही पड़ी हुई हैं। आस-पडौस के बिलकुल धीमी आवाज में, यां यूँ कहें कि इशारों में बातचीत करते हुए एक दुसरें को समझाते हुए आगे की व्यवस्था में तत्परता से लगे हैं, और इसका सबको एहसास भी करा रहे हैं।
ताराबाई का इस दुनिया में कोई सगा सम्बन्धी हैं या नहीं यह किसी को भी मालूम नहीं। इस सोसायटी में ताराबाई को सब ने अकेला ही देखा था। एक बेडरूम के फ्लेट में ताराबाई अभी हाल ही में यहाँ रहने आई थी। अंदाजन पचास वर्ष की उम्र की ताराबाई क्या करती थी यह भी किसी को पता नहीं था। विवाहित थी या अविवाहित इस बारें में भी कोई नहीं जानता था। सोसायटी में रहनेवाला कोई भी व्यक्ति ताराबाई के यहाँ कभी गया ही नहीं था। और ताराबाई ने भी सबसे दूरी ही बनाए रखी थी। वह तो किसी से कभी मिली ही नहीं थी। अलबत्ता ताराबाई के घर एक कामवाली बाई जरुर आती थी और उसी ने सुबह सुबह बदहवास अवस्था में ताराबाई की मृत्यु की खबर सोसायटी के लोगों को दी और उसके बाद ही सोसायटी के सारे लोग ताराबाई के यहाँ एकत्रित हुए थे। अब आगे क्या करना यहीं सवाल सबके सामने था।
एक तरफ लोग आगे की व्यवस्था के बारे में सोच रहे थे तो दूसरी ओर ताराबाई की आत्मा इसी कमरें में पड़ी अपनी मृत देह के चारों ओर बदहवास सी मंडरा रही थी। अचानक हाड़मांस के शरीर से यूँ बाहर आना पड़ेगा इसका ताराबाई की आत्मा को अंदाज ही नहीं था। शरीर हल्का हुआ या भारी इस बात से ताराबाई की आत्मा को वैसे अब कुछ भी लेना-देना नहीं था। वह लगातार इस बात का विचार कर रही थी कि अब आगे क्या करे? कहाँ जाएं? किसके शरीर में प्रवेश करना होगा? कब करना होगा? इतना सच था कि ताराबाई की आत्मा को सब दिखाई दे रहा था। सब समझ में भी आ रहा था। पर हम सब को जैसे बताया जाता हैं और अनुभव भी हैं कि शरीर नश्वर होता हैं और वह आखिर तक सब को आँखों से दिखाई भी देता हैं और आत्मा जो अमर होती हैं वह अंत तक कहीं भी किसी को भी दिखाई तक नहीं देती। कोई उससे बोल भी नहीं सकता और आत्मा जो कुछ बोलती होगी वह किसी को सुनाई भी नहीं देता। वैसे यहाँ जिन्दा आदमी की कोई नहीं सुनता तो मृतात्मा की कौन सुने? कहने का मतलब यह कि परिस्थितयों में घिरी ताराबाई की आत्मा अपनी खुद की मिलकियत के एक बेडरुम के फ्लेट में इतने सारे अपरिचित आदमियों को देखकर हैरान-परेशान सी हो गई। ऊपर से उसके शरीर को जमीन पर निष्प्राण पड़ा देखकर वह कुछ घबरा भी गई। आखिर अभी तक ताराबाई की देह उसका निवास था। अब वह क्या करे…?
‘यह शरीर …. यह शरीर …. इसी देह के लिए तो कितने संकट …. कितने दु:ख … ताराबाई ने सहन किए? मैं सब जानती हूँ। और जिन्दगी से हार कर ना जाने कितनी बार ताराबाई ने इसी पापी देह को ख़त्म करने का प्रयास किया था पर नहीं ख़त्म कर पाई थी बेचारी इस शरीर को।और आज अचानक यह शरीर धोखा दे गया। ‘ताराबाई की आत्मा बडबड़ाई। सच तो यह था कि ताराबाई की देह को यूँ जमीन पर निर्जीव पडा देख उसकी आत्मा बेहद प्रसन्न थी। उसके मुंह से निकला, ‘अच्छा हुआ बहुत दु:ख दिया हैं। पड़ी रह ऐसे ही।‘
एक अनैतिक प्रेम संबंधों की उपज थी ताराबाई की यह नश्वर देह। न चाहते हुए भी ताराबाई की जन्मदात्री ने इस शरीर को आकार दिया। ताराबाई की इच्छा-अनिच्छा का तो सवाल ही नहीं था। खुद की जन्मदात्री माँ ने उसे अर्थात ताराबाई के इस शरीर को लोकलाज के डर के कारण पैदा करते ही उसी वक्त कचरे के ढेर में फेंक कर अपनी मुक्ति कर ली और ताराबाई को अनाथ कर दिया। सच तो यह था कि अपनी सभ्यता पर गर्व करने वाले समाज को और इस धरती को भी एक दिन की दुधमुंही बच्ची का शरीर पहले दिन ही भारी हो गया था। गली के आवारा कुत्ते और चूहें बिल्लियाँ अपना भोजन बनाने वाली थी ताराबाई का यह ताजा ताजा शरीर। किसी राहगीर को ताराबाई के रोने की आवाज सुनाई दी और उसने तुरंत पुलिस को खबर कर करदी। उसके बाद ताराबाई का यह शरीर पहले कुछ दिन अस्पताल में और उसके बाद एक अनाथाश्रम में आ गया। इस तरह जन्म के पहले दिन से ही ताराबाई के शरीर को जो यातनाएं सहन करनी पड़ी वह उसके जीते जी कभी ख़त्म नहीं हो सकी।
‘हमें पुलिस को तुरंत खबर करनी चाहिए।‘ सोसायटी में रहनेवालों में से किसी ने सलाह दी।
ताराबाई की आत्मा यह सुनते ही झल्ला उठी, ‘इसने अभी कुछ भी नहीं किया हैं। कितनी बार पुलिस को बुलाओगे? कमाठीपुरा में कई बार पुलिस के छापे पड़े हैं ताराबाई पर। मालूम हैं क्या तुम सब लोगों को? यह… शरीर ….यही शरीर … हाँ यही शरीर पुलिस के गुंडों ने कई बार वहां छापे के नाम पर मसला हैं। बदमाश … कहीं के .. . कम से कम मृत शरीर को तो पुलिस अब हाथ न लगाए। ‘ताराबाई की आत्मा ताराबाई के मृत देह के पैरों के पास थी। यहाँ का गोरखधंदा उसके समझ में नहीं आ रहा था। जीतेजी भी पुलिस और मरने के बाद भी पुलिस। ताराबाई की आत्मा ने एक बार फिर मृत शरीर की ओर देखा, ‘लेकिन अब पुलिस किस लिए?‘ फिर खुद ही बडबडाई, ‘जाओं … जाओं…. बुलाओं पुलिस को …. देखे अब क्या खेल करती हैं पुलिस इस निर्जीव देह से?‘ ताराबाई की आत्मा बोल जरुर रही थी पर उसका बोलना किसी को सुनाई नहीं दे रहा था।
‘हाँ ! थाने में तो खबर करनी ही पड़ेगी। पर घर में किसी परिचित या रिश्तेदार का पता मिलता हैं क्या वह भी ढूँढना पड़ेगा। कोई मोबाइल … या कोई डायरी …. देखें मिलती हैं क्या?‘ कोई एक बोला।
‘डायरी?‘ ताराबाई की आत्मा कुछ असहज हुई। वह अपने आप ही बडबडाने लगी, ‘डायरी … ? डायरी … मिल गई तो अनेक मंत्री ….सासंद …. विधायक …. और ना जाने कितने बड़े रसूकदार लोग मुसीबत में आ जाएंगे … बिलकुल पवित्र आत्मा और पवित्र देह लेकर घूमने वाले पाखंडी धर्मगुरु भी ….. और हाँ सबकों सुधारने का दावा करने वाले कई समाज सुधारक भी संकट में आ जाएंगे।‘ अब ताराबाई की आत्मा तैश में आगई और लोगों को चिल्ला-चिल्लाकर बताने लगी, ‘इस शरीर को किसी ने भी नहीं छोड़ा हैं। इसलिए कह रही हूँ कि डायरी ढूंढने के फंदे में मत पडो। डायरी भले मिल जाए पर ताराबाई का अपना ऐसा कोई भी नहीं मिलेगा। सब नोंच-खसोट वाले गिद्ध ही मिलेंगे, पर अनर्थ जरुर हो जाएगा। यह शरीर …. यह शरीर … कितनी यातनाएं भोगी हैं इस देह ने। जिन लोगों ने ताराबाई के शरीर को लुहलुहान किया हैं और जिन लोगों ने ताराबाई के मन को न मिटने वाले घाव दिए हैं उन सब के नाम सबको पता पड जाएंगे। पर किसी का भी कुछ बिगड़ने वाला नहीं हैं। पूरा समाज बड़े रसूकदार लोगों के दुष्कर्म ख़ामोशी से सहन कर लेगा। व्यवस्था तो नपुसंक ही होती हैं। और व्यवस्था के लिए पुलिस? पुलिस के लोग तो वह डायरी ही गायब कर देंगे और डायरी से कई गुना कीमत भी वसूल कर लेंगे। पर बदनाम तो ताराबाई ही होगी ना? यही तो व्यवस्था हैं इस देश की। जो पीड़ित हैं उसे ही सब धिक्कारेंगे। इसीलिए कहती हूँ …. डायरी ढूंढने का प्रयास मत करों तो बेहतर होगा।‘ ताराबाई की आत्मा लोगों से बड़ी वेदना से अनुरोध सा कर रही थी पर उसकी बातें वहां किसी को सुनाई देने का सवाल ही नहीं था। आत्मा की आवाज भला कौन सुनता हैं यहाँ?
‘पर इसका पति …. बाल बच्चे … नाते रिश्तेदार … कोई तो होगा?‘ किसी के मन में बार-बार यह शंका आ रही थी इसलिए वह बोल पड़ा,‘ किसी को भी ताराबाई के घर आते किसी ने भी नहीं देखा। कौन जाने कोई हैं भी या नही? जानकारी मिलने का कोई साधन ही नहीं है।‘
‘पति…!!!‘ ताराबाई की आत्मा अब व्यथित हो गई वह फिर बडबडाने लगी,‘ … नपुंसक … महामूर्ख, पापी और नाकारा था ताराबाई का पति अनाथाश्रम के उस प्रभारी ने उम्र के पन्द्रहवें साल ही ताराबाई का विवाह पैतालीस वर्ष के नि:संतान विधुर से जबरन लगा दिया। उससे अच्छे खासे रूपयें ऐठ लिए। पहिली रात ही वो नामर्द ताराबाई से बोला, ‘मैं कुछ भी नहीं कर सकता।‘ फिर क्या था ताराबाई का यह शरीर …. और शरीर ही क्या मन भी सूखा ही रहा रात भर। फिर तो यह रोज का ही सिलसिला था। एक दिन वह नामर्द ताराबाई से बोला, ‘माँ-बाप के लिए मैंने विवाह किया। माँ-बाप और समाज के लिए हम पति पत्नी हैं पर मेरी ओर से तू आजाद हैं। ‘उस रात ताराबाई ने उसके मुंह पर थूक दिया था। ताराबाई ने उससे पूछा था, ‘यह शरीर … यह शरीर कहाँ ले जाऊं?‘ वह बोला था, ‘मेरा एक मित्र हैं। उससे तुम्हारी जान पहचान करा देता हूँ। मेरे ऊपर उसका बहुत कर्ज हैं और मैं वह नहीं चुका सकता।‘ इस तरह अनाथाश्रम में ताराबाई के लिए प्रभारी को दी हुई रकम वह पहिले ही मित्र से वसूल कर चूका था। और उसके मित्र ने ताराबाई के शरीर से अपना मूल ब्याज समेत वसूल कर लिया।
ताराबाई की आत्मा अपनी मृतदेह के पास बैठे विलाप कर रही थी। पर सब व्यर्थ था .. उसका आर्त किसी को भी सुनाई नहीं दे रहा था।
‘मोबाइल नहीं ….डायरी भी नहीं मिली ..सारा घर छान मारा। कैसे ढूंढें किसी नजदीकी व्यक्ति को?‘ किसी ने अब तक पूरे घर की तलाशी ले ली थी और उसके हाथ कुछ भी नहीं लगा था। पर ताराबाई की आत्मा यह सुनकर परेशान हो गई। इतने वर्षों से ताराबाई के शरीर में रहने से उसकों भी तो बहुत कुछ सहना पड़ा था। आज पूरी भड़ास बाहर आगई। ताराबाई की आत्मा फिर से बडबडाने लगी, ‘कौन किसके नजदीक होता हैं रे? तेरे को कुछ पता भी नहीं हैं। यह शरीर …. यह शरीर …. इसी देह की गंध से तो वासना के भेडियें नजदीकियां बनाते हैं और फिर वहीँ नाते-रिश्तेदार कहों, देह के ठेकेदार कहों, सब कुछ बन जाते हैं। मृत देह में अब कहाँ से आएगी सुगंध? कौन पहचानेगा अब इसको? ताराबाई का पति? ताराबाई का वह बेटा जिसे उसके पतीने उससे छिन लिया? अनाथालय का वह प्रभारी जिसने ताराबाई को बेचा था? उसके पति का मित्र? जिसने ताराबाई के पति से ताराबाई को ख़रीदा। ऐसे पति के मित्र की भौजाई बनकर समाज में सबकों प्रसन्नता का आभास दे रही थी ताराबाई। परन्तु पति के मित्र को भी तो वास्तव में ताराबाई का यही शरीर ही तो चाहिए था। यह शरीर …. यह शरीर …. आग लगे इस शरीर में। ताराबाई के इकलौते पुत्र का बाप उसके नामर्द पति का यही नालायक मित्र ही तो था। पर घर बाहर और समाज में ताराबाई के नामर्द पति को उसके द्वारा जन्म दिए उसके कलेजे के टुकड़े का बाप होने का सन्मान प्राप्त था। नाम मिला, घराने का चिराग मिला, इसलिए ताराबाई का नामर्द पति भी ताराबाई का यह शरीर अपने मित्र को सौपकर आनंदित था। ताराबाई के पुत्र को किसी ने कचरे के ढेर में नहीं फेंका इसलिए ताराबाई खुश थी। अपने बेटे के भविष्य के लिए आश्वस्त थी। मुसीबत की मारी, अत्याचार झेल रही ताराबाई इसी एक बात से संतुष्ट थी। पर ताराबाई की व्यथा और वेदनाओं का क्या? वह अपनी कहानी किसी को भी बता नहीं सकती थी। यहाँ तक कि वह अपने इकलौते पुत्र को भी तमाम उम्र यह नहीं बता सकती थी कि उसका असली बाप कौन हैं?
ताराबाई के पति को वंश चलाने के लिए खानदान का चिराग मिल गया था इसलिए ताराबाई की उसको जरुरत ही नहीं थी। खुद का भांडा न फूटे और मित्र के पारिवारिक जीवन में भी कोई संकट ना आए इसलिए एक दिन दोनों मित्र ताराबाई को यात्रा के बहाने इस शहर में ले कर आए और यहाँ इस कमाठीपुरा में, भेड बकरी की तरह ताराबाई की यह देह बेच कर चलते बने। ताराबाई का आसरा उसका इकलौता बेटा भी छिन लिया दरिंदों ने। यह शरीर ….. यह शरीर … ताराबाई का यही शरीर यहाँ इतनी बड़ी देह की मंडी में बिकने के लिए रोज कई बार सजधज कर तयार होने लगा। रोज-रोज कई-कई बार सजधज कर तैयार हुई इस देह की गंध उन दिनों राहगीरों को बेचैन कर जाती। ताराबाई की वहीँ सुगंधित देह …. यह शरीर ….. यह शरीर …. आज यहाँ पडा हैं जमीन पर धूल खाते हुए। देखें यहाँ के लोग अब इस देह को और कितना सता सकते हैं? कितनी वेदनाएं और दे सकते हैं?‘ ताराबाई की आत्मा जोर-जोर से रो रही थी। पर उसका रोना और उसके आंसू किसी को भी दिखाई नहीं दे रहें थे।
पुलिस आई। पंचनामा हुआ। किसी भी नजदीकी रिश्तेदार के नहीं मिलने के कारण पुलिस ने आखिर सोसायटी के लोगों को ही ताराबाई की अंतिम क्रिया करने की इजाजत दे दी। ‘रामनाम सत्य हैं‘ बोलते हुए अर्थी लेकर सोसायटी के लोग बाहर निकले। ताराबाई की आत्मा यह सब देख रही थी। ‘इस शरीर को अब जलाओगे? जलना ही चाहिए इस देह को। कितने लोगो ने अपवित्र किया हैं इस शरीर को मेरे पास तो हिसाब ही नहीं हैं। आज तक ताराबाई को एक भी भला आदमी नहीं मिला यह ताराबाई के और मेरे दुर्भाग्य के सिवाय और क्या?‘ ताराबाई की आत्मा अब ताराबाई की अर्थी के साथ स्मशानघाट की ओर अंतिम यात्रा में थी।
ताराबाई की मृत देह श्मशान में लाई गई। मृत देह को लकड़ियों पर रखा गया। किसी ने अग्नि दी और ताराबाई की मृत देह धू-धू कर जाने लगी।
ताराबाई की आत्मा अपने इस जन्म के शरीर को यूं जलते हुए देख रही थी। उसने अपने आप से कहा, ‘अब यह चक्र यहीं थमना चाहिए। अमर होने का क्या मतलब? ताराबाई के शरीर ने इतनी यातनाएं सहन की हैं, तो कम से कम उसका नाम तो इस संसार में अमर होना चाहिए था। ताराबाई के शरीर में मेरे रहते ताराबाई को एक गुमनाम लावारिस मौत मिली इससे ज्यादा वेदना मेरे लिए कुछ भी नहीं। ताराबाई के इस शरीर ने पचास वर्षों में जो यातनाएं भोगी हैं उसकी वेदनाएं आत्मा को भी तो सहन करनी ही पड़ी हैं ना? फिर अकेले ताराबाई के शरीर को ही जलाने की सजा क्यों? ‘ताराबाई की आत्मा ने स्मशान में ही एक निर्णय लिया,‘ बस ! अब बहुत हो गया। यह जन्म जन्मांतर का चक्र यहीं थम जाए तो बेहतर। नहीं चाहिए ऐसा जन्म और नहीं चाहिए अब और कहीं काया प्रवेश। ताराबाई के शरीर के साथ ही मैं भी अपने आप को नष्ट करूँगीं। ‘इतना कह कर उदिग्न होकर ताराबाई की आत्मा ने अचानक ताराबाई की जलती चिता में छलांग लगा दी। पर यह क्या, वह तुरंत ही बाहर फेंक दी गई। ‘मुझे ताराबाई के शरीर के साथ खुद को भी नष्ट करना ही है।‘ यह कहते हुए ताराबाई की आत्मा दुगनी ताकत से ताराबाई की धधकती चिता में फिर से कूद पड़ी। परन्तु फिर उसी गति से वह बाहर फेंक दी गई। कोई अद्रश्य शक्ति उसे बाहर फेंक रही थी।ताराबाई की आत्मा ने जिद में आकर कई बार जलती चिता में छलांग लगाईं पर हर बार वह उतने ही जोर से बाहर फेंक दी जाती।
अब ताराबाई की आत्मा को भगवद्गीता में बताया भागवान श्रीकृष्ण का उपदेश याद आया, ‘आत्मा कभी नहीं मरती। आत्मा अमर होती हैं।‘ ताराबाई की आत्मा को अपने आप पर हंसी आगई। वह सोचने लगी, ‘मतलब शरीर अलग और आत्मा अलग बिलकुल रेल की दो पटरियों की तरह। कभी भी मिल ना पाए और ना ही एक दूसरे के लिए कुछ कर पाए। अगर ऐसा होता तो शायद मैं ताराबाई की कुछ मदद कर सकती थी। ‘इतने वर्ष ताराबाई के शरीर में रहने के लिए ताराबाई की आत्मा को अब बेहद अफ़सोस हो रहा था और ताराबाई की कोई मदद ना कर पाने के लिए वह बेहद व्यथित भी हुई। जो कुछ भी हो पर ताराबाई की आत्मा ने एक अग्नि परीक्षा दी और वह एक अग्निदिव्य से वह बाहर भी आगई। थक हार कर ताराबाई की आत्मा, अग्निपरीक्षा से बहुत व्यथित और निराश होकर स्मशान में ही लगे एक पीपल के पेड़ पर जाकर बैठ गई।
पचास वर्ष दिन रात साथ रहे ताराबाई के शरीर को अपने सामने राख होते हुए देखने के अलावा ताराबाई की आत्मा के पास कोई चारा ही नहीं था। शरीर जल कर भस्म हो गया। अब ताराबाई की आत्मा को सवालों ने घेरा, ‘अब आगे क्या? अब कहाँ जाऊं?‘ फिर ताराबाई की आत्मा ने खुद से ही संवाद साधा, ‘कितने जन्म लूं? अब थक गई हूँ। आराम करना चाहिए। ताराबाई की मृत्यु का सुख थोड़े दिन भोगना चाहिए। ‘फिर ताराबाई की आत्मा ने ईश्वर से प्रार्थना की, ‘हे ईश्वर, मुझे ताराबाई का शरीर क्यों दिया? उसके शरीर के अन्दर रहते हुए भी मैं उसके किसी भी संकट में उसकी मदद नहीं कर सकी। वास्तव में स्त्री जन्म बहुत कष्टप्रद ही हैं। हे ईश्वर, अब हाल फिलहाल मुझे पुनर्जन्म नहीं चाहिए।थोड़े दिन मुझे ताराबाई की मृत्यु का सुख भोगने दो….।‘ (रवीना प्रकाशन, दिल्ली से प्रकाशित लेखक के कहानी संग्रह “हजार मुंह का रावण” कथा संग्रह में प्रकाशित)
परिचय : विश्वनाथ शिरढोणकर इंदौर म.प्र.
इंदौर निवासी साहित्यकार विश्वनाथ शिरढोणकर का जन्म सन १९४७ में हुआ आपने साहित्य सेवा सन १९६३ से हिंदी में शुरू की। उन दिनों इंदौर से प्रकाशित दैनिक, ‘नई दुनिया’ में आपके बहुत सारे लेख, कहानियाँ और कविताऍ प्रकाशित हुई। खुद के लेखन के अतिरिक्त उन दिनों मराठी के प्रसिध्द लेखकों, यदुनाथ थत्ते, राजा-राजवाड़े, वि. आ. बुवा, इंद्रायणी सावकार, रमेश मंत्री आदि की रचनाओं का मराठी से किया हुआ हिंदी अनुवाद भी अनेक पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुए। इंदौर से ही प्रकाशित श्री मध्यभारत हिंदी साहित्य समिति की प्रसिध्द मासिक पत्रिका ‘वीणा’ में आपके द्वारा लिखित कहानियों का प्रकाशन हुआ। आपकी और भी उपलब्धियां रही जैसे आगरा से प्रकाशित ‘नोंकझोंक’, इंदौर से प्रकाशित, ‘आरती’ में कहानियों का प्रकाशन। आकाशवाणी इंदौर तथा आकाशवाणी भोपाल एवं विविध भारती के ‘हवा महल’ कार्यक्रमों में नाटको का प्रसारण। ‘नईदुनिया’ के दीपावली – २०११ के अंक में कहानी का प्रकाशन। उज्जैन से प्रकाशित, “शब्द प्रवाह” काव्य संकलन – २०१३ में कविता प्रकाशन। बेलगांव, कर्नाटक से प्रकाशित काव्य संकलन, “क्योकि हम जिन्दा है” में गजलों का प्रकाशन। फेसबुक पर २०० से अधिक हिंदी कविताएँ विभिन्न साहित्यिक समूहों पर पोस्ट। उपन्यास, “मैं था मैं नहीं था” का फरवरी – २०१९ में पुणे से प्रकाशन एवं काव्य संग्रह “उजास की पैरवी” का अगस्त २०१८ में इंदौर सेर प्रकाशन। रवीना प्रकाशन, दिल्ली से २०१९ में एक हिंदी कथासंग्रह, “हजार मुंह का रावण” का प्रकाशन लोकापर्ण की राह पर है।
वहीँ मराठी में इंदौर से प्रकाशित, ‘समाज चिंतन’, ‘श्री सर्वोत्तम’, साप्ताहिक ‘मी मराठी’ बाल मासिक, ‘देव पुत्र’ आदि के दीपावली अंको सहित अनेक अंको में नियमित प्रकाशन। मुंबई से प्रकाशित, ‘अक्षर संवेदना’ (दीपावली – २०११) तथा ‘रंग श्रेयाली’ (दीपावली २०१२ तथा दीपावली २०१३), कोल्हापुर से प्रकाशित, ‘साहित्य सहयोग’ (दीपावली २०१३), पुणे से प्रकाशित, ‘काव्य दीप’, ‘सत्याग्रही एक विचारधारा’, ‘माझी वाहिनी’,”चपराक” दीपावली – २०१३ अंक, इत्यादि में कथा, कविता, एवं ललित लेखों का नियमित प्रकाशन। अभी तक ५० कहानियाँ, ५० से अधिक कविताएँ व् १०० से अधिक ललित लेखों का प्रकाशनI फेसबुक पर हिंदी/मराठी के ५० से भी अधिक साहित्यिक समूहों में सक्रिय सदस्यता। मराठी कविता विश्व के, ई – दीपावली २०१३ के अंक में कविता प्रकाशित।
एक ही विषय पर लिखी १२ कविताऍ और उन्ही विषयों पर लिखी १२ कथाओं का अनूठा काव्यकथा संग्रह, ‘कविता सांगे कथा’ का वर्ष २०१० में इंदौर से प्रकाशन। वर्ष २०१२ में एक कथा संग्रह, ‘व्यवस्थेचा ईश्वर’ तथा एक ललित लेख संग्रह, ‘नेते पेरावे नेते उगवावे’ का पुणे से प्रकाशन। जनवरी – २०१४ में एक काव्य संग्रह ‘फेसबुकच्या सावलीत’ का इंदौर से प्रकाशन। जुलाई २०१५ में पुणे से मराठी काव्य संग्रह, “विहान” का प्रकाशन। २०१६ में उपन्यास ‘मी होतो मी नव्हतो’ का प्रकाशन , एवं २०१७ में’ मध्य प्रदेश आणि मराठी अस्मिता” का प्रकाशन, मध्य प्रदेश मराठी साहित्य संघ भोपाल द्वारा मध्य प्रदेश के आज तक के कवियों का प्रतिनिधिक काव्य संकलन, “मध्य प्रदेशातील मराठी कविता” में कविता का प्रकाशन। अभी तक मराठी में कुल दस पुस्तकों का प्रकाशन।
८६ वे अखिल भारतीय मराठी साहित्य सम्मेलन, चंद्रपुर (महाराष्ट्र) में आमंत्रित कवि के रूप में सहभाग। पुस्तकों में मराठी में एक काव्य संग्रह, ‘बिन चेहऱ्याचा माणूस खास’ को इंदौर के महाराष्ट्र साहित्य सभा का २००८ का प्रतिष्ठित ‘तात्या साहेब सरवटे’ शारदोतस्व पुरस्कार प्राप्त। राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच इंदौर म. प्र. (hindirakshak.com) द्वारा हिंदी रक्षक २०२० राष्ट्रीय सम्मान, मराठी काव्य संग्रह “फेसबुक च्या सावलीत” को २०१७ में आपले वाचनालय, इंदौर का वसंत सन्मान प्राप्त। २०१९ में युवा साहित्यिक मंच, दिल्ली द्वारा गैर हिंदी भाषी हिंदी लेखक का, बाबूराव पराड़कर स्मृति सन्मान वर्ष २०१९ हेतु प्राप्त। दिल्ली, इंदौर, भोपाल, ग्वालियर, इटारसी, बुरहानपुर, पुणे, शिरूर, बड़ोदा, ठाणे इत्यादि जगह काव्यसंमेलन, साहित्य संमेलन एवं व्याख्यान में सहभागीता।
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