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तेरे ही सपने आते हैं

अख्तर अली शाह “अनन्त”
नीमच
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रात दिवस सोते जगते बस,
तेरे ही सपने आते हैं।
तू क्या रूठी रूठ गए सब,
नैना सावन बरसाते हैं।।

तेरी आदत पड़ी हुई है,
पीछा नहीं छुड़ा पाता हूँ।
पलपल-पगपग पर तेरे ही,
साए से मैं बतियाता हूँ।।
अधर लिए पर अमृत तेरे,
मुझे दूर से तरसाते हैं।
तू क्या रूठी रूठ गए सब,
नैना सावन बरसाते हैं।।

अभी यहां थी, अभी वहां थी,
मन कैसे समझाऊं अपना।
छलिया वक्त छल गया मुझको,
चैन कहां से लाऊं अपना।।
पीछे दौड़ न नश्वर जीवन,
के नश्वर पल समझाते हैं।
तू क्या रूठी रूठ गए सब,
नैना सावन बरसाते हैं।।

ख्वाबों में तू राह बताती,
जो चाहे वो करवाती है।
जिस्म भले दो होकर रह लें,
जान जुदा कब हो पाती है।।
यादों के बादल आ आकर,
के दिश-दिश से टकराते हैं,
तू क्या रूठी रूठ गए सब,
नैना सावन बरसाते हैं।।

कहां छुपाऊं मैं पागलपन,
तुझे देखती आंखें मेरी।
मेरी आंखों में तुझको पा,
खोज खबर पा लेती तेरी।।
अब भी छूने को, अदृश्य को,
कर “अनंत” ये पगलाते हैं।
तू क्या रूठी रूठ गए सब,
नैना सावन बरसाते हैं।।

परिचय :- अख्तर अली शाह “अनन्त”
पिता : कासमशाह
जन्म : ११/०७/१९४७ (ग्यारह जुलाई सन् उन्नीस सौ सैंतालीस)
सम्प्रति : अधिवक्ता
पता : नीमच जिला- नीमच (मध्य प्रदेश)


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