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स्वाभिमान मरते देखा

विशाल कुमार महतो
राजापुर (गोपालगंज)
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इस दुनिया लोगों को हमनें,
पीठ पीछे बुराई बकते देखा।
ना जाने कैसा दौर आ गया,
जहाँ विश्वास भी ढहते देखा।
खुद की दुःख का परवाह नही,
दुसरो की सुख से जलते देखा।
यहाँ अभिमान को बढ़ते देखा,
और स्वाभिमान को मरते देखा।

यहाँ खुशियों के हकदार सभी,
पर दुःख में कोई साथ नही।
पैसों की बात है हर जगह,
और प्रेम की बात कही नहीं।
इस मीठे मन में हमने,
बुरे ख्वाब ख्याल को पलते देखा,
यहाँ अभिमान को बढ़ते देखा,
और स्वाभिमान को मरते देखा।

पूरी दुनिया जीत जाएंगे,
हम अपने संस्कार से।
और जीता हुआ भी हार जाएंगे,
बस थोड़ी सी अहंकार से।
जिसने की छोटी सी चूक,
हमने उसको हाथ मलते देखा,
यहाँ अभिमान को बढ़ते देखा,
और स्वाभिमान को मरते देखा।

परिचय :- विशाल कुमार महतो
निवासी : राजापुर (गोपालगंज)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।


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