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संयोग

सुधीर श्रीवास्तव
बड़गाँव, जिला-गोण्डा, (उ.प्र.)
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                            अब इसे संयोग नहीं तो और क्या कहूँ आप ही बताइए कि आभासी संचार माध्यमों ने कुछ ऐसे नये रिश्तों को जन्म दे दिया कि कल्पना करना कठिन लगता है कि इन रिश्तों के मध्य उपजे आत्मिक संबंध कहीं से भी वास्तविक रिश्तों से कम महत्वपूर्ण अहसास नहीं कराते। बहुतों के साथ हुआ होगा, हो रहा होगा या आगे भी होता ही रहेगा। जहाँ आपको रिश्तों की मिठास, अपनापन, प्यार, तकरार, एक दूसरे की चिंता और वो सब कुछ मिलता है, जो कभी कभी वास्तविक रिश्तों में भी नहीं मिलता, तो ऐसा भी होता है कि जिस रिश्ते का अधूरापन आपको सालता रहता है, वह आभासी माध्यम से बने रिश्तों से पूरा हो जाता है। हालांकि ये कहने में भी कोई संकोच न कि हर जगह कुछ न कुछ गलत भी हो जाता है, लेकिन ऐसा वास्तविक रिश्तों में भी तो होता है।
अक्सर आभासी दुनियाँ में प्रथम संबोधन रिश्तों की गंभीरता का बोध करा देते हैं, जिसमें आप इस हद तक बँध जाते हैं, जहाँ से आप खुद को छुड़ाना भी नहीं चाहते। जहाँ आप प्यार, दुलार, मान, सम्मान, शिकवा, शिकायत, रुठना, चिढ़ाना, छेड़ना, मनाना, चिंता, खुशियां बाँटना और वो सब करते कराते हैं, जो उस पवित्र पावन रिश्ते की जरूरत है।
और तो और बहुत बार तो आप उससे डरते भी, आपको भी पता है कि सामने वाले से न डरकर भी कुछ नहीं होने वाला, फिर भी आप डरते ही नहीं उसके आज्ञाकारी भी होते हैं, क्योंकि सामने वाला/वाली आपके लिए जो सोचता/सोचती, कहता/बताता/बतातीऔर अधिकार जताता/जताती है, उसके लिए आपके मन में लगाव, सम्मान, श्रद्धा जो हो जाती है। उसके पीछे भी कारण है कि कोई आप में सिर्फ अच्छाइयाँ नहीं ढूंढता, बल्कि समाज में आपको अच्छे इंसान के रूप में देखना चाहता है। तभी तो आप अपनी हर छोटी बड़ी बात उसके सामने रखते जाते हैं और वहीं से वो आप में वह सब देखना चाहता/चाहती है, जो आपको औरों से अलग दिखाने/दिखाने की चाह रखता/रखती हो। आपके लिए उसके मन में माँ, बाप, भाई, बहन, बेटी, शुभचिंतक, मार्गदर्शक, मित्र जैसे भाव महसूस होते हैं। तभी तो वो आपको निर्देशित, आदेशित, प्रेरित करते/करती हैं।
आभासी संबंधों में उम्र बहुत मायने नहीं रखती, तभी तो बड़ा होकर भी आप छोटा और छोटा होकर भी बड़ा बन जाते ही नहीं उसी अनुरूप व्यवहार भी करते हैं और खुश भी होते हैं।
बहुत बार आभासी दुनियां के रिश्ते को निभाने/खुशियों के लिए खून, किडनी तो क्या जान भी देकर रिश्तों की पवित्रता, मर्यादा को अमरत्व प्रदान कर जाते हैं।

परिचय :- सुधीर श्रीवास्तव
जन्मतिथि : ०१.०७.१९६९
पिता : स्व.श्री ज्ञानप्रकाश श्रीवास्तव
माता : स्व.विमला देवी
धर्मपत्नी : अंजू श्रीवास्तव
पुत्री : संस्कृति, गरिमा
पैतृक निवास : ग्राम-बरसैनियां, मनकापुर, जिला-गोण्डा (उ.प्र.)
वर्तमान निवास : शिवनगर, इमिलिया गुरूदयाल, बड़गाँव जिला-गोण्डा, उ.प्र.
शिक्षा : स्नातक, आई.टी.आई.,पत्रकारिता प्रशिक्षण (पत्राचार)
साहित्यिक गतिविधियाँ : विभिन्न विधाओं की कविताएं, कहानियां, लघुकथाएं, आलेख, परिचर्चा, पुस्तक समीक्षा आदि का १०० से अधिक स्थानीय से लेकर राष्ट्रीय स्तर की पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित। दो दर्जन से अधिक संकलनों में रचनाओं का प्रकाशन।
सम्मान : एक दर्जन से अधिक सम्मान पत्र।
विशेष : कुछ व्यक्तिगत कारणों से १७-१८ वषों से समस्त साहित्यिक गतिविधियों पर विराम रहा। कोरोना काल ने पुनः सृजनपथ पर आगे बढ़ने के लिए विवश किया या यूँ कहें कि मेरी सुसुप्तावस्था में पड़ी गतिविधियों को पल्लवित होने का मार्ग प्रशस्त किया है।
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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