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जिंदगी का ताना बाना

प्रियंका पाराशर
भीलवाडा (राजस्थान)
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एक-दूसरे पर छींटाकशी छोड़कर
कल जो था वो भूलकर
नहीं रहे मन मसोस कर
संभले आज को जीकर
मन के भाव सँवार कर
तृप्त हो जाए हम प्यार परोसकर
प्यार के एहसासो को चुनकर
संग-संग जिंदगी का ताना बाना बुनकर
जो बिखरा है उसे समेटकर
और कुछ उधडा है तो उसे सीकर
मिलन की आस को पूरा कर
खुशियों के रंग बिखेरकर
एक दूजे की सुनकर
चले समझ कर सँभाल कर
पहले से हो जाए ओर भी बेहतर
दिल का हर जख़्म जाए भर
क्योंकि समय का पहिया चले निरंतर
कितना भी हो जाए अगर मगर
बीच राह मे छोड़, न जाना ठहर
रूह से रूह का आलिंगन कर
जन्मो जन्मो तक चले संग,
बनकर हमसफर

परिचय :- प्रियंका पाराशर
शिक्षा : एम.एस.सी (सूचना प्रौद्योगिकी)
पिता : राजेन्द्र पाराशर
पति : पंकज पाराशर
निवासी : भीलवाडा (राजस्थान)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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