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नारी की वेदना… नदी से

रागिनी सिंह परिहार
रीवा म.प्र.
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सरिता सी सर-सर बहती हो,
जाने कितनी वेदना सहती हो,
जब सागर से जा मिलती हो।
तब नारी की उपमा बनती हो।।
सुख-दुःख भी तुझमे सारा है,
जीवन की तु परिभाषा है,
हर नारी की तुम आशा हो।
सुख-दुःख जीवन का साया है।।
नारी ममता की धारा है,
तीनो पक्षो को लेकर जब चलती है,
सात पुस्तो का नाम रोशन करती है।
हे, तटिनी, तरंगिणी, निर्झरिणी,
कुलंकषा, अपगा तुमसे मेरी ये विनती है,
जीवन की धार नदी करदो,
सागर से जाकर मिल जाऊं।
साहिल में जाकर लग जाऊं।।
ये झील सी आँखों में लेकर पीड़ा,
मीरा की वेदना बन जाऊं,
गिरधर गोपाला मैं गाऊ।
नदियाँ हूँ सागर से मिल जाऊं।।
तेरे प्यार के रंग में रंग जाऊं।।।

परिचय :- रागिनी सिंह परिहार
जन्मतिथि : १ जुलाई १९९१
पिता : रमाकंत सिंह
माता : ऊषा सिंह
पति : सचिन देव सिंह
शिक्षा : एम.ए हिन्दी साहित्य, डीएड शिक्षाशात्र, पी.जी.डी.सी.ए. कंप्यूटर, एम फील हिन्दी साहित्य, पी.एचडी अध्ययनरत


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