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बस एक रात की बात

राकेश कुमार तगाला
पानीपत (हरियाणा)
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साक्षी सड़क के किनारे बने चबूतरे पर बैठी लगातार इधर-उधर देख रही थी, पता नहीं वह किसका इंतजार कर रही थी? पप्पू लगातार उसे देख रहा था, उसे देखकर पप्पू को अतीत की कुछ यादें स्मरण हो आई, जब पप्पू सोलह साल का था, वह घर से भागकर मुंबई जैसे शहर में आ गया था। उसके पास कोई ठोर ठिकाना नहीं था। उसे चारों तरफ इंसान ही इंसान दिखाई दे रहे थे। दिन हो या रात उसे भीड़ ही भीड़ दिखाई दे रही थी। वह मन ही मन में सोच रहा था, क्या यहाँ रात भी नहीं होती? रात को भी दिन से अधिक चकाचौंध रहती है। पर उसने सुन रखा था कि महानगरों में रात को भी लोग काम करते हैं। उनके के लिए दिन और रात एक समान होते है।
पर हमारे गाँव में तो आठ बजे रात हो जाती है। पूरे गाँव में सन्नाटा पसर जाता है। आदमी तक दिखाई नहीं देता। वह अक्सर रात को घर से बाहर निकलने से घबराता था। वैसे भी उसे दादी माँ की भूत की कहानियाँ भयभीत करती थी। वह तो दिन में भी कई बार खेतों में जाने से साफ मना कर देता था। दादी की गालियाँ उसे प्रसाद स्वरूप मिलती थी। यह मुआ दिन में भी डरता था।
अरी, इसे क्या खाकर पैदा किया था। दादी के साथ, माँ भी मुझ पर बरस पड़ती थी। तुम ही तो इसे रात भर कहानी सुनाती रहती हो।
पर यह भी इसका कसूर है, इसे नींद नहीं आती, मुझें भी इसका सहारा मिल जाता है। जब से इसके दादा जी मरे हैं, मैं भी कहाँ सो पाती हूँ? आप तो चले गए, साथ में मेरी नींद भी ले गए। माँ, क्या तुम भी बाबू जी को बहुत याद करती हो? इसलिए तुम बेचैन रहती हो। बहूँ कहे की बेचैनी। यह तेरा लौंडा एक नंबर का पाजी है, छिछोरा कहीं का। इसे अलग ही सुलाया कर तू, मेरी खटिया पर चढ़ जाता है, रात भर इस चादर ढकते रहो, इसे कुछ सिखा दे, वरना यूं ही ढोलता रहेगा जिंदगी भर। हाँ, अम्मा इसने घर में सभी का खून पी रखा है। पर अम्मा ये तुम्हारे बिना नहीं रह सकता। ये भी अपने बाप पर ही जाएगा।
वह भी तो तुझे भरी जवानी में छोड़ कर भाग गया था। आज तक नहीं लौटा। पप्पू सोलह साल का हो गया है। दादी, रुला दिया ना माँ को। जब कोई चला जाता है वह वापस नहीं आता। आग लगे तेरे मुँह को, जब देखो भांड ही बकता है। अम्मा तुम पप्पू के मुँह ना लगा करो। यह तो अपने बाप से चार चंदे ऊपर निकलेगा। हाँ, पूत के पाँव पालने में ही दिख जाते हैं। मेरा तो जी बैठा जाता है। मैंने अपने लल्ला को तो खो दिया।पर पप्पू को कभी बाहर नहीं जाने दूंगी। हाँ अम्मा, तुम ठीक कह रही हो, इसे यही रखेंगे अपने पास बांध के।
अम्मा- नदी, तूफान कभी रुके हैं, जो इसे रोक कर रखोगे। तभी तो इसे रोज भूत-प्रेतों की कहानियाँ सुनाती हूँ, डर कर यहीं पड़ा रहेगा। ऐसे तो अम्मा यह डरपोक बन जाएगा। अरे तू चिंता ना कर, जब समझदार हो जाएगा, तो खुद ही समझ जाएगा। अम्मा बात तो तुम्हारी सही लग रही है। काश ऐसा ही हो जाए। अच्छा इसकी रोज स्कूल में छुट्टी होती है। यह स्कूल में भी नहीं जाता है, या यूं ही आवारागर्दी करके लौट आता है। नहीं अम्मा स्कूल में कुछ दिनों से मरम्मत चल रही है।
मास्टर जी कह रहे थे, एक हफ्ते की छुट्टी रहेगी। इसकी क्या छुट्टी करनी थी? इसे तो वही रख लेते अपने पास कुछ काम करवा लेता। तुम भी ना अम्मा इसके पीछे पड़ गई हो। अच्छा तो तुम्हारा दूध उमड़ आया है। इसके मास्टर साहब कह रहे थे,इसका दिमाग बहुत अच्छा है।सारा पाठ याद कर लेता है। पढ़ने में अव्वल आता है। बस थोड़ा मन का मौजी है। इसका बाप क्या कम मन मौजी था। तुमसे शादी करने की जिद पकड़ ली थी। और करके ही माना था। क्या अम्मा तुम भी पुरानी बातों को पकड़ कर बैठ जाती हो? नहीं बहूँ जो बात होगी, कही तो जाएगी ना। इसके बाप ने सारा जीवन मोज ही तो की थी। स्कूल के नाम पर वह इतने बहाने बनाता था। बस तुम पूछो ना, अम्मा क्या तुम सच कह रही हो? हाँ-हाँ सौ आने सच।
पप्पू का ध्यान अभी भी सड़क पर लगा था। वह उसे ही देख रहा था। साक्षी को भी अहसास था। रात हो रही थी। और सर्दियों में रात बहुत जल्दी काली हो जाती है। पर क्या करती? माँ-बाप की इज्जत तो उसने मिट्टी में मिला दी थी। उस आवारा गोलू के चक्कर में घर से भाग आई थी। नौकरी का झांसा देकर ले आया था। सुबह से यहाँ-वहाँ दौड़ रहा था। थक गई थी, तो यहाँ बिठा के चला गया। पर अभी तक नहीं लौटा ।कहता था बड़ी जान-पहचान है। हाय, कितना झूठा निकला!
घर भी नहीं जा सकती। रात यहाँ कैसे गुज़रेगी?
कोई ठोर ठिकाना नहीं दिख रहा था। मिलने दे इस गोलू के बच्चें को छोडूंगी नहीं, वह मन ही मन बड़बड़ा रही थीं। फिर खुद ही शांत होकर सोचने लगी। इसमें उसका क्या कसूर था? मै ही उसके प्यार में लट्टू थी। घर पर ही खुसर-फुसर थी। लड़की हाथ से निकल रही है। इसे संभाल लो नहीं तो किसी दिन मुँह काला करवा देगी, पूरे खानदान का। पिता जी माँ को समझाते थे अभी छोटी है, समझ जाएगी। छोटी है, ऊँट जैसी लंबी हो गई है। इसका खेत-खलियान में आना-जाना बंद कर दो। गोलू के साथ ही इसका मिलना-जुलना मुझें बिल्कुल पसंद नहीं है। सारा दिन उसी का गुणगान करती रहती है। पता नहीं क्या घोल के पिला दिया मेरी बच्ची को?
पहले तो साक्षी ऐसी नही थी।
अब तुम चुप भी करोगी, दीवारों के भी कान होते है। अपने हाथों अपने बेटी को बदनामी कर रही हो। कितना सख्त किया था, माँ को उस दिन बापू ने। बापू दिल के बड़े अच्छे हैं। शराब पीकर तो और भी अच्छे बन जाते थे। दो-चार घूंट अंदर गई, फिर तो बापू ज्ञानी-ध्यानी बन जाते थे।प्रवचन देना शुरू कर देते थे। संसार माया है, मोह दुःखों का कारण है, और पता नहीं क्या-क्या कहते थे? मेरी तो समझ में नहीं आता था कुछ।माँ उन्हें चुप करवाने लग जाती थी। पर वो माँ को भी धर्म, ज्ञान की बातें समझाने लग जाते थे। माँ भी कौन सा कम थी, उनकी इज्जत उतार कर रख देती थी?दो घूंट पीकर बड़े संत बने फिरते हो,तुम्हें शर्म नहीं आती। घर में जवान लड़की है,और तुम्हें अपने गुलछरो से फुर्सत नही है।चुप हो जा साक्षी की माँ, क्यो सारा नशा उतार कर रख दिया हैं? नशा तो मैं उनका उतारूँगी, जो तुम्हें मुफ्त में पिलाते हैं। इस धमाल-चौकड़ी का जुलूस निकाल कर रखूंगी।
साक्षी की माँ किसी का जुलूस निकालने की बात मुँह से मत निकाला करो। पता नहीं कब कोई हादसा हो जाए? और हमारा जुलूस निकल जाए। क्या अनाप-शनाप बोलते रहते हो?
रात के नौ बज रहे थे, और गोलू का कुछ पता नहीं था। पता नहीं कहाँ आवारागर्दी कर रहा होगा? मैं इस के चक्कर में क्यों आ गई थी? तभी एक अनजानी आवाज में मुझें चौका दिया था। आप किसी का इंतजार कर रही हो। जी, वो आगे कुछ ना बोल पाई थी। क्या कहती भाग कर आई हूँ? उससे प्यार करती हूँ। मैं ये सोच रही थी कि रात बहुत हो गई है। इस तरह यहाँ कब तक अकेली बैठी रहोगी? यही पास में मेरा कमरा है। चाहो तो वहाँ चल सकती हो, अगर भरोसा हो तो।यहाँ रहने की जगह नहीं मिल सकती क्या? गरीबों की बस्ती है।
माहौल भी ठीक नही है। आप मेरे साथ चलो, चिंता की कोई बात नहीं है। चिंता की तो बात है, रात भर किसी गैर के कमरे में रहना। पता नहीं क्या हो जाए? क्या आप मेरे साथ नहीं चलना चाहती? नहीं-नहीं मैं मना नहीं कर रही हूँ। पर यहाँ भी तो नहीं बैठी रह सकती। कितने शराबी घूम रहे हैं? पता नहीं कितना बड़ा हादसा हो जाए। इज्जत खराब करके मुझें यहीं काट कर फेंक देंगे। घर वालों को मेरी लाश भी नहीं मिलेगी।वैसे भी गोलू बताता था, अकेली लड़की महानगरों में सुरक्षित नहीं है। रातो-रात कुछ भी हो सकता है। बस और आगे याद नहीं करना चाहती थी। इस रेहड़ी वाले पर भरोसा करने के सिवाय मेरे पास और कोई चारा नहीं था। उसने मेरा नाम पूछा? तो मैंने नाम बता दिया, साक्षी। वह बोला बहुत ही अच्छा नाम है। क्या सोचा मेरे साथ चलना है या सारी रात यहीं गुजारनी है?
मन में डर लगातार बढ़ रहा था। पर कर भी क्या सकती थी? उसके साथ चल पड़ी। वह तंग गलियों में जा रहा था। चारो तरफ गंदगी ही गंदगी थी। बदबू में सांस लेना भी मुश्किल हो रहा था। तुम यहाँ रहते हो, इतनी गंदी जगह में। साक्षी जी, महानगरों की बहुत बड़ी आबादी इन गंदी बस्तियों में ही रहती है। चाहकर भी यहाँ से निकल नहीं पाती। यही जीती है और यही मर जाती है। वैसे तो यहाँ रहने वाले लोग रोज ही मरते हैं।
क्यों लोग इन शहरों के सपना देखते रहते हैं? और यहाँ आकर उनके सारे सपना धुंए की तरह उड़ जाते हैं। जब यथार्थ के धरातल से सामना होता है। कितना फर्क है, गोलू और इसकी सोच में। चलो आ गया, कमरा। अरे मैंने तुम्हारा नाम नहीं पूछा? क्या करोगी मेरा नाम पूछ कर, “एक रात की बात है” फिर कौन किसे पहचानेगा? पता नहीं फिर दोबारा मिलना हो पाएगा या नहीं। अरे आप ऐसा क्यों कह रहे हो? भगवान ने चाहा तो हम दोबारा मिलेंगे। यह दुनिया इतनी बड़ी नही है। आइये, अन्दर चले, कमरा क्या था? बस एक रात गुजारने का ठिकाना था। चारों तरफ कपड़ों का ढेर था। उसने मुझें पुराने स्टूल पर बैठने को कहा, जो लगभग पूरा हिल रहा था।
उसने बिस्तर लगाया और बोला कि आप यहाँ सुरक्षित है। मैं कुछ खाने को बनाता हूँ। क्या खुद खाना बनाते हो? हाँ यहाँ कौन-सा मेरी अम्मा बैठी है? और वह हँस पड़ा। जैसे अतीत की कोई बात याद आ गई हो। आप आलू की सब्जी तो खा लोगी। आप चाहो तो फल भी खा सकती हो। मेरी रेहड़ी पर बहुत फल है। केला, सेब, अनार, आप कहो तो एक अनार छिल दूँ।
आप परेशान ना हो, मैं खुद ही ले लेती हूँ। रात का खाना खाकर, मैं बिस्तर से चिपक गई। पता ही नहीं चला कब सुबह के सात बज गए थे।पप्पू सामने से चाय के कप लेकर आ रहा था, लीजिए चाय। रात को नींद आ गई थी ना, पर मै बाहर जाने की जल्दी में थी। गोलू ढूंढ रहा होगा। मैंने स्थिति भाँपते हुए कहा, अब मैं चलती हूँ। उसने कहा ठीक है। मैं चल कर दोबारा चबूतरे पर बैठ गई। और पप्पू अपनी रेहड़ी पर ग्राहकी करने लगा। वह पूरी तरह अपने काम में व्यस्त हो गया। गोलू भागता हुआ नजर आया। वह मुझें भागने का इशारा कर रहा था। मन में आया कि पप्पू का आभार प्रकट कर दूँ। गोलू के इशारो के कारण उठकर चल पड़ी।
हम दोनों लगभग दौड़ रहे थे। चलो घर वापस चलते हैं, साक्षी। क्यों, क्या हुआ? यहाँ काम मिलना मुश्किल है। तो मजदूरी करके खा लेंगे। नहीं बस चलो, वापस घर। पर माँ जान से मार देंगी। तुम्हें चलना है तो चलो। पर मैं तुम्हें बहुत प्यार करती हूँ। मै तुम्हे प्यार नही करता, तुम सिर्फ मेरी दोस्त हो। पर सारा दिन मेरे पीछे पड़े रहना, मुझें तंग करना, मेरे साथ फिर खेत-खलियानों में इकट्ठे घूमना। वो सब क्या था? साक्षी, तुम पागल हो। मैं बहुत पछता रही थी। गोलू मुझें गाँव के बाहर छोड़कर भाग गया। तुम नहीं चलोगे मेरे साथ। नहीं, उसने संक्षिप्त सा उत्तर दिया और आगे बढ़ गया।
घर में कोई नहीं था, वह अंदर जाकर फूट-फूट कर रोने लगी। मैंने अपने परिवार के साथ कितना बड़ा विश्वासघात किया था? उसकी सुब्कियाँ बढ़ रही थी, माँ आते ही डंडा लेकर पीछे पड़ गई। और उस पर गालियों की बरसात कर दी। कहाँ गई थी….।
अपने यार के साथ भाग गई थी। चला गया ना तुम्हें छोड़कर। बापू ने माँ का हाथ पकड़ लिया था। अब छोड़ो आगे की सोचो, जो होना था हो गया। अब कौन करेगा इससे ब्याह, माँ चिल्लाई? आज नहीं तो कल गाँव वालों को पता चल ही जाएगा। चुप कर अपनी जुबान को ताला लगा ले। एक जगह इसके रिश्ते की बात चला दी है। शायद बात बन जाए, पर तुम शांति बनाए रखना, गलती इंसान से ही होती है। आगे बढ़ना ही जीवन है। समझी क्या? बंद करो अपने प्रवचन माँ चिल्लाई। मैं ना कहती थी इसे संभालो।
अम्मा, पप्पू का फोन है। ला दे मुझें, पप्पू बेटा, अब जल्दी घर आ जाओ। मरने से पहले तेरा ब्याह देख लूं। कल ही तेरे रिश्ते की बात की है। ठीक है, दादी मैं घर आ रहा हूँ। तुम अपना ख्याल रखना। बड़ा समझदार हो गया है, मेरा पोता। हाँ, दादी जिंदगी के थपेड़े इंसान को समझदार बना देते हैं। माँ तो फोन पर ही रो पड़ी थीं। आजा मेरे लल्ला, ठीक है। फोन रखता हूँ।
साक्षी बड़ा अच्छा लड़का है। महानगर में काम करता है। पंकज नाम है उसका। चट मंगनी पट ब्याह कर देंगे तेरा। शादी की तैयारी हो रही थी।वह शुभ घड़ी भी आ गई थी। बरात आ गई है, दूल्हा बहुत सुंदर है। खूब जोड़ी जमेगी। पापा की बात याद आ रही थी। आगे बढ़ना ही जीवन है।फ़ेरे लेकर पंकज के घर चली आई।
आज पहली रात थी, मिलन की। तभी दादी की आवाज सुनाई पड़ी। पप्पू अब आ जाओ, घर में बहूँ इंतज़ार कर रही है। पप्पू का दिमाग थोड़ा थम सा गया था। पंकज, पप्पू, चल अब बहूँ के पास। अब वही तुम्हें भूतों की कहानियाँ सुनाएगी।
जैसे ही पप्पू ने मेरा घूंघट उठाया। मैंने उसे बाहों में भर लिया और वह हँसकर बोला। साक्षी एक रात की तो बात है। हम दोनों एक-दूसरे में समा गए। तुम्हें पता था कि मैं…। इससे पहले कुछ और बोल पाती। पप्पू ने मेरे होंठों को अपने होंठों से बंद कर दिया था।

परिचय : राकेश कुमार तगाला
निवासी : पानीपत (हरियाणा)
शिक्षा : बी ए ऑनर्स, एम ए (हिंदी, इतिहास)
साहित्यक उपलब्धि : कविता, लघुकथा, लेख, कहानी, क्षणिकाएँ, २०० से अधिक रचनाएँ प्रकाशित।
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।


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