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बदलते परिवेश रो आयो जमानो

कालूराम अर्जुन सिंह अहिरवार
जगमेरी तह. बैरसिया (भोपाल)

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मेरा प्यारा गांँव कहां है १ प्यारा नादान बचपन कहां है
मां की लोरी दादा नानी के किस्से कहानी कहां है।

हंसते खेलते परिवार कहां है
हिल मिलकर रहने वाले वह प्यार लोग कहां हैं।
जिस पेड़ की छांव में बैठकर करते थे वार्तालाप
वह नीम का पेड़ कहां है ।
जहां मैं खेल कूद कर बड़ा हुआ
वह आंगन गलियां कहां है।

मेरे नादान बचपन पर प्यार दुलार लुटाने वाले
वह प्यारे लोग कहां हैं।
निस्वार्थ सेवा की भावना ऐसे आज मित्र कहां है।
बचपन में करते थे स्नान वह कल कल सी
बहती स्वच्छ शीतल नदी कहां है।
शिक्षा बनी व्यापार निस्वार्थ ज्ञान देने वाले
आज गुरु कहां है।

दूध देने जाने लगे डेरी पर घर में।
मटकी भर मक्खन कहां है।

पढ़ाई हो गई कंप्यूटर मोबाइल पर
मेरी प्यारी किताब कहां है।
फैशन रो आयो जमानो धोती कुर्ता
भारतीय नारी रो वस्त्र कहां है।
एक बीवी के लिए सच्चा प्रेम
ऐसे आज पति देव कहां है।

मोहब्बत बढ़ गई गली गली
अब एक दूसरे के प्रति रिश्ते में अटूट
विश्वास अमर प्रेम कहां है
घी दूध में हो गई मिलावट शुद्धता कहां है।
खाने पीने का सामान हुआ मिलावटी
अब ताकत वह तंदुरुस्ती कहां है।

बेरोजगारी का ऐसा मंजर छाया
मेरे प्यारे भारत में रोजगार कहां है।
गरीबी और आर्थिक तंगी से जूझ रहा है
देश ।
आज मेरा प्यारा वतन सोने की चिड़िया कहां है
आज मेरा प्यारा वतन सोने की चिड़िया कहां है।

परिचय :- कालूराम अर्जुन सिंह अहिरवार
पिता : जालम सिंह अहिरवार
निवासी : ग्राम जगमेरी तह. बैरसिया जिला भोपाल
शिक्षा : एम.ए. हिंदी साहित्य शासकीय हमीदिया कला एवं वाणिज्य महाविद्यालय भोपाल अध्ययनरत राष्ट्रीय सेवा योजना एन.एस.एस. स्वयंसेवक, सामाजिक कार्यकर्ता
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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