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पिताजी का महत्व

रागिनी मित्तल
कटनी, मध्य प्रदेश
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पिता के साथ वो बाजार जाना।
आगे-आगे उछल के थोड़ा जल्दी आना।
हर चीज की तरफ उंगली दिखाना।
पापा का चुपचाप दिलवाना।
बाजार में हम खुद को समझते सम्राट थे।
जब पिताजी थे तो बड़े ठाट बाट थे।

पाठशाला में जब पिता के साथ जाते।
अध्यापक जी मेरी शिकायत लगाते।
आंखों ही आंखों में मुझको धमकाते।
पर हम तब नहीं आंखें झुकाते।
क्योंकि, पिता जो होते हमारे साथ थे।
जब पिताजी थे तो बड़े ठाट-बाट थे।

भाई बहनों में होती लड़ाई थी।
मैं उससे कभी नहीं जीत पाई थी।
वह मुझ को मार कर भाग जाता था।
पापा से ना कहना वह धमकाता था।
लगे ना लगे मैं तब तक रोती थी,
जब तक ना आ जाएं पिता जी पास थे।
जब पिताजी थे तो बड़े ठाट-बाट थे।

थी नौकरी छोटी सी, फरमाइशें सबकी।
पूरा करते थे फिर भी ख्वाइशें सबकी।
कोशिश करते थे कोई रह ना जाए।
इसीलिए स्कूल के साथ वो ट्यूशन पढ़ाएं।
काम कर-कर उनके खस्ता हालात थे।
जब पिताजी थे तो बड़े ठाट-बाट थे।

मां डांटती थी, हम रूठ जाते थे।
तब आकर पापा मनाते थे।
खाना ना खाऊ, वो खुद खिलाते थे।
झूठ मूठ वो मम्मी को हड़काते थे।
हम खुश होते, ना समझते अंदर की बात थे।
जब पिताजी थे तो बड़े ठाट-बाठ थे।

बीमार जब पड़ती वो पास में आते।
सिर में हाथ वो रखते और हम सो जाते।
धीरे से कंबल ओढ़ाकर वो चले जाते।
सुबह उठकर सबसे पहले मेरे पास आते।
सोए नहीं है रात भर, चिन्ह चेहरे में साफ थे।
जब पिताजी थे तो बड़े ठाट-बाठ थे।

पढ़ाते थे वह सब नीति ज्ञान से।
वास्ता नहीं था उनका कोई विज्ञान से।
सहयोग करते सबका चलते ईमान से।
मानव सेवा करते थे विधि विधान से।
हमको भी पढ़ाते यही पाठ थे।
जब पिताजी थे तो बड़े ठाठ-बाठ थे।

अब भी जब कोई मुझे मिल जाता है।
पूछता है कौन तेरा जन्मदाता है।
बताती हूं नाम उनका बड़े अभिमान से।
जिंदगी भर जिये हैं, वे पूरे स्वाभिमान से।
फिर अदब से वह भी कहता, बड़े सज्जन बड़े पाक थे।
जब पिताजी थे तो बड़े ठाठ-बाट थे।

परिचय :-  रागिनी मित्तल
निवासी : कटनी, म.प्र.
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।


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