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वे सब नारी थीं

मित्रा शर्मा
महू – इंदौर

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वे सब नारी थीं
फिर भी मर्दानी कहलाई
कभी लक्ष्मीबाई
कभी दुर्गावती के रूप में
शत्रुओं को मुँह की खिलाई।

तलवार लेकर खड़ी हो गई
कोई भय उसे बाँध न पाया
रणचंडी कहो या दुर्गा कहो
कोई राक्षस बच न पाया।

पन्ना धाय बन जन्मी तो
पुत्र का बलिदान किया
कोई क्या उससे छीनता
पद्मावती ने जौहर किया।

स्वतंत्रता की वीरांगना
चलती रही बलि पथ पर
गाती रही आग के गीत
लाठी गोली से ना घबराई।

भारत भूमि की वीर बेटियाँ
आसमान से टक्कर लेती हैं
आंधी, तूफान से खेलती
देश की आन पर मरती हैं।

परिचय : मित्रा शर्मा – महू (मूल निवासी नेपाल)


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