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आ अब लौट चले …

निर्मल कुमार पीरिया
इंदौर (मध्य प्रदेश)

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ना शेष रहा कहने सुनने को,
क्यो व्यर्थ ठिठौली करते हो ?

गर जाना ही था दुर समय से,
क्यो पल पल जीते मरते हो ?

हर पग पर बिछते स्वप्न मेरे,
क्यो राह कंटीली करते हो ?

चुन रहा नादा था कंकर पत्थर,
क्यो बाण शब्द से भेदते हो ?

था हिमशिखर-सा मौन ओढ़े,
बन रविकर क्यों बिखराते हो ?

हिम विचरता अपने जल में ही,
तत्वों को क्या पृथक कर पाते हो?

श्रद्धा-भक्ति-तप और मुक्ति,
जीव दर्शन किसको समझाते हो ?

प्रेम-तृषा प्रथम जग में प्रियवर,
पुर्ण आहुति विलय तभी पाते हो…

परिचय :- निर्मल कुमार पीरिया
शिक्षा : बी.एस. एम्.ए
सम्प्रति : मैनेजर कमर्शियल व्हीकल लि.
निवासी : इंदौर, (म.प्र.)
शपथ : मेरी कविताएँ और गजल पूर्णतः मौलिक, स्वरचित और अप्रकाशित हैं


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