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रजनी के दोहे

रजनी गुप्ता ‘पूनम चंद्रिका’
लखनऊ

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तुमसे है माँ शारदे, बस इतना- सा काम।
रचना मैं करती रहूँ, लेकर तेरा नाम।।


रचना के भीतर बसें, सदा हमारे इष्ट।
चले तीव्र जब लेखनी, कटें हमेशा क्लिष्ट।।


रचना के भीतर बसे, ऐसा सदा विचार।
जनमंगल की भावना, उर में करे विहार।।


रचना रसना एक- सा, करतीं सदा प्रहार।
इनसे बचना है कठिन, ऐसा इनका वार।।


रचना रसना बन कभी, करती जब ललकार।
बड़े- बड़े जो सूरमा, गिरें पछाड़ी मार।।


रचना की माया महा, गाते सूर कबीर।
इसमें मीरा की व्यथा, झाँके बनकर पीर।।


रचना के हित कर दिया, रत्ना ने दुत्कार।
तुलसी से हमको मिला, मानस का उपहार।।


रचना रचना से जले, यही आज की रीति।
रचना रचना से करे, कहाँ यहाँ पर प्रीति।।


बैठी रचना की सभा, कविवर हाँकें डींग।
घूमें सब पण्डाल में, यथा गधे बिन सींग।।

१०
रचना तेरी चाकरी, करते सब विद्वान।
तेरी महिमा से बनें, जग में सभी महान।।

परिचय : रजनी गुप्ता ‘पूनम चंद्रिका’
उपनाम :- ‘चंद्रिका’
पिता :- श्री रामचंद्र गुप्ता
माता – श्रीमती रामदुलारी गुप्ता
पति :- श्री संजय गुप्ता
जन्मतिथि व निवास स्थान :- १६ जुलाई १९६७, तहज़ीब व नवाबों का शहर लखनऊ की सरज़मीं
शिक्षा :- एम.ए.- (राजनीति शास्त्र) बीएड
व्यवसाय :- गृहणी
प्रकाशन :- राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर म.प्र. के  hindirakshak.com पर रचना प्रकाशन के साथ ही कतिपय पत्रिकाओं में कुछ रचनाओं का प्रकाशन हुआ है
सम्मान :- समूहों द्वारा विजेता घोषित किया जाता रहा है। दो बार नागरिक अभिनंदन पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। मंचों पर काव्य-पाठ व लघुकथा का पाठन करती रहती हूँ। सांस्कृतिक एवं सामाजिक योगदान हेतु सम्मान-पत्र प्रदान किया गया है। विद्यालय के समय भी अनेक पुरस्कार मिले हैं।
रचना की विधा :- अधिकतर दोहा सृजन, छंदमुक्त कविताएँ, मुक्तक, दोहा, गजल, छंद, हाइकु दोहा, गीत, गीतिका, लघुकथा, संस्मरण आदि….
घोषणा पत्र :- मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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