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भूख

रुचिता नीमा
इंदौर म.प्र.

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कभी मन्दिर की सीढ़ियों पर…
तो कभी मज्जिद के बाहर…
कभी गुरुद्वारे के लंगर में…
तो कभी चर्च के गलियारों में…

कुछ चेहरे हर जगह नजर आ जाते है
जिनके पेट की भूख,
उन्हें हर जगह ले आती है…
ये वो लोग होते है,
जिनका कोई धर्म नही,
कोई मज़हब नही होता।।

जो उन्हें कुछ दे दे,
बस वही इनका भगवान होता है
इनके लिये हर धर्म का भी
बस ‘रोटी’ नाम होता है।

दुनिया इन्हें भिखारी कहे, या कहे बेचारे
लेकिन ये है सब किस्मत के मारे।।
मज़हब के लिये लड़ना सिर्फ हम जानते है,
जो भूख से तरसते है, वो सबको मानते है।।

हम इंसान तो भगवान से भी महान हो गए
जब मज़हब के नाम पर लाखों कुर्बान हो गए।।
कभी भेद न किया उसने किसी पीर में फकीर में,
और हम खींचते चले गए धर्म पर धर्म की लकीरें।।

इस दुनिया में भूख का कोई मजहब नही होता
और इंसानियत से बड़ा कोई धर्म नही होता।।

परिचय :-  रुचिता नीमा जन्म २ जुलाई १९८२ आप एक कुशल ग्रहणी हैं, कविता लेखन व सोशल वर्क में आपकी गहरी रूचि है आपने जूलॉजी में एम.एस.सी., मइक्रोबॉयोलॉजी में बी.एस.सी. व इग्नू से बी.एड. किया है आप इंदौर निवासी हैं।
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।


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