अख्तर अली शाह “अनन्त”
नीमच
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मानवता के महायज्ञ से,
उपजी अमिट निशानी को।
नहीं भुला पाएगी दुनिया,
भरत की कुर्बानी को।।
करी तेरहवी, तेरह दिन में,
बंगलादेश बनाया है।
हमने पाकिस्तानी सेना,
को घुटनों पर लाया है।।
‘विजय दिवस’ सोलह दिसंबर,
को यूँ देश मनाता है।
भारत की सेना के आगे,
कौन भला टिक पाया है।।
सजा मिली है इस दुनिया में,
हर हरकत शैतानी को।
नहीं भुला पाएगी दुनिया,
भारत की कुर्बानी को।।
इंदिरा की आँधी ने उसको,
दो टुकड़ों में बांट दिया।
बंगलादेश अलग करके धड़,
पाकिस्तानी काट दिया।।
दुनिया ने इंदिरा को समझा,
था नाजुक अबला नारी।
उसने ही दुनिया को अपना,
दिखला रूप विराट दिया।।
हमने लोगों बेमतलब की,
कुचल दिया मनमानी को।
नहीं भुला पाएगी दुनिया,
भरत की कुर्बानी को।।
सैनिक तानाशाह याहिया,
खां का सपना तोड़ दिया।
दुनिया के नक्शे में बंगला,
देश नया एक जोड़ दिया।।
तिराणवे हजार सिर खम थे,
जनरल नियाजी टूटगया।
युद्ध बंदियों को पर हमने,
कर समझौता छोड़ दिया।।
याद करें हम लिखी खून से,
अपनी अमिट कहानी को।
नहीं भुला पाएगी दुनिया,
भारत की कुर्बानी को।।
जश्न जीत का आज मनाएं,
मानवता के रेहबर हम।
अत्याचारों के दुश्मन हैं,
रहे प्रेम के सागर हम।।
अगर कहीं कोई दुख में हो,
हमसे सहा न जाएगा।
नहीं हटेंगे मदद करेंगे,
उसकीलोगों मरकर हम।।
नहीं “अनंत” कलंकित होने,
देंगे कभी जवानी को।
नहीं भुला पाएगी दुनिया,
भारत की कुर्बानी को।।
परिचय :- अख्तर अली शाह “अनन्त”
पिता : कासमशाह
जन्म : ११/०७/१९४७ (ग्यारह जुलाई सन् उन्नीस सौ सैंतालीस)
सम्प्रति : अधिवक्ता
निवासी : नीमच जिला- नीमच (मध्य प्रदेश)
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