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खुशी की चाहत

राजकुमार अरोड़ा ‘गाइड’
बहादुरगढ़ (हरियाणा)

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                                               हर समय खुश रहना कौन नहीं चाहता! खुशी हमारी चाहत है! खुशी हमारी चाहना है पर सिर्फ चाहने से क्या होता है? खुशी को अपना नैसर्गिक स्वभाव बनाना होगा, यह कहना जितना आसान है, इस पर अमल करना उतना ही अधिक मुश्किल! जब बरसों से सँजोई अपेक्षायें कुछ ही समय में टूट जाये, अपनों से ही उपेक्षा, तिरस्कार मिले, बहुत मेहनत करने के बाद अपेक्षित सफलता न मिले या किसी स्वजन का साथ एकाएक छूट जाये तो ख़ुशी बरकरार रखने के लिये स्वयँ को अन्दर से मज़बूत कर इसे प्रभु की मर्ज़ी स्वीकार कर अपने अन्दर की खिलखिलाहट को फिर से बाहर लाना होगा। खुशी तो हमारे मन का एहसास है, भावनाओं की अभिव्यक्ति है। अपने ही सामर्थ्य के प्रति भ्रामक धारणा ववास्तविकता को स्वीकार न करने की प्रवर्ति खुशी की राह में सबसे बड़ी बाधा है कोई कभी भी सर्वगुणसम्पन्न नहीं हो सकता।
अपनी क्षमता का आकलन हमें खुशी देता है व एक भी अक्षमता का एहसास खुशी से दूर कर देता है, गर इसी को स्वीकार कर लें या दूर कर लें तो खुशी फिर से वापस! यह समय निराश होने का नहीं है, आशा चाहे कितनी भी कम हो, निराशा से बेहतर होती है। परछाई से कभी मत डरिये, उसकी उपस्थिति का अर्थ है कि कहीं रोशनी है। साँप-सीढ़ी के खेल में निन्यानवे पर साँप काट तो भी जीत की गुंजाइश ख़त्म नहीं होती।
जब सहसा उत्पन्न परिस्थितियां अपने बस में ही नहीं हैं, तो उनमें खुशी ढूंढने का, उसे अच्छे से मनाने का अवसर समझ लेंगे, तो हमारे जीवन में बस खुशियाँ ही खुशियाँ होंगीं। खुशियां सहेजने में समय लगता है बिखरने में कुछ क्षण। खुशी तो हमारे मन की ही उपज है, उपजती भी अंदर से ही है। यदि तेज़ मिर्च लग रही हो थोड़ा सा गुड़ उसके एहसास को शांत कर देता है, बस अपने अंदर से किसी के प्रति घृणा, नकारात्मक विचार नहीं रखे तो खुद को भी अच्छा लगेगा व क्रोध भी नहीं आयेगा। मन खुशी के एहसास से भर जाएगा। जब तक जीवन है तब तक जीना है तो उदास हो के क्यों रहना। योग, मेडिटेशन, पूजा और धार्मिक-साहित्यिक पुस्तकों के पठन, लेखन की अभिरुचि को पूरा कीजिये न! टी वी पर न्यूज़ व मनोरंजन वाले कार्यक्रम देखिये, सोशल मीडिया पर ज्ञानवर्धक जानकारी का लाभ लीजिये। अपने हमउम्र साथियों के साथ मिलते जुलते, बतियाते व घूमते रहिये, समय तो यूँ ही पंख लगा कर उड़ जाएगा व मन खुशी से चहचहाने लगेगा।

खुशी, प्रसन्नता व उल्ल्लास की यह सीढ़ी तो हर एक के पास है, बस पहला पग पहली सीढ़ी पर रख, उसे हर हाल में कायम रखते हुए मस्त व आनन्दमग्न होने का अभिनय नहीं करना अपितु रहना है, ऐसे में अभिनय कभी भी लम्बे समय तक नहीं रह सकता और अन्दर ही अन्दर कचोटता है सो अलग। खुशी शब्द ही खुशी का एहसास कराता है चेहरे पर मन्द मुस्कान, मन में उमंग सी महसूस होती है, हर परिस्थिति में अपने को सयंत रखते हुए, सब्र के साथ खुशी का मन की गहराइयों से अनुभव करना है। कुछ न कुछ कमी तो प्रत्येक में होती है, आसमाँ के पास भी तो जमीं नहीं है, ऊँची-ऊँची अट्टालिकाओं में रहने वाला चिंतित दिखाई देता है, नींद उससे कोसों दूर होती है, एक दिहाड़ी मज़दूर व उसका परिवार मस्त हो किसी बात पर ठहाका लगा रहा होता है, जमीन पर लेटते ही गहरी नींद के आगोश में चला जाता है।

हमें हर हालमें अपनी खुशियों का हनन नहीं होने देना, मनन कर उसे कई गुना बढ़ाना है। यही बात मेरी एक कविता के अंश में इंगित है -“मंगल पर जीवन सब ढूंढते हैं, जीवन में मंगल ढूंढे तो कोई बात बने, मिल जाये अपार वैभव भी तो क्या, खुशी भी संग मिले, तो कोई बात बने।”

परिचय :- राजकुमार अरोड़ा ‘गाइड’ कवि, लेखक व स्वतंत्र पत्रकार
निवासी : बहादुरगढ़ (हरियाणा)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।


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