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पीड़ा की हांडी

भीमराव झरबड़े ‘जीवन’
बैतूल मध्य प्रदेश

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उबल रही पीड़ा की हांडी,
घर के कोने में।
मिला दर्द का हिस्सा ज्यादा,
हमको दोने में।।

फटी हुई किस्मत की पत्तल,
पर चावल पसरे।
दाल मित्रता करके जल से,
दिखलाती नखरे।।

नमक मिर्च ने हाथ बटाया,
जादू टोने में।
मिला दर्द का हिस्सा ज्यादा,
हमको दोने में।।१

चिन्ता के उपलों ने धुआँ,
ठूँस दिया घर में।
रोगी चूल्हा खाँस खाँस कर,
दुबका बिस्तर में।।

घात लगाकर बैठा है घुन,
स्वर्ण भगोने में।
मिला दर्द का हिस्सा ज्यादा,
हमको दोने में।।२

सुख की सँकरी पगडंडी पर,
है भव के बंधन।
दूध दही घी से तर पत्थर,
घर भूखें नंदन।।

सुख मिलता ढोंगी संतों को,
दुखड़े बोने में।
मिला दर्द का हिस्सा ज्यादा,
हमको दोने में ।।३

माल मुफ़्त का खा पघराये,
कुर्सी एसी में।
हम तो अपनी जान लुटाते,
सस्ते देशी में।।

‘जीवन’ उल्टा सुख दोनों का,
मन भर सोने में।
मिला दर्द का हिस्सा ज्यादा,
हमको दोने में।।४

परिचय :- भीमराव झरबड़े ‘जीवन’
निवासी- बैतूल मध्य प्रदेश
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।

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