आशीष तिवारी “निर्मल”
रीवा मध्यप्रदेश
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यह विचारणीय तथ्य है मित्रों कि जब हमारा जन्म होता है तब हम वस्त्र विहीन होते हैं और जब आखिरी समय पर लाश चिता पर लिटाई जाती है तब भी जिस कफ़न से शरीर ढका जाता है वह कफ़न आग की लपटों में पहले ही जल जाता है और इंसान का शरीर फिर वस्त्र विहीन हो जाता है। अर्थात दुनिया में बिना लिबास के आए और बिना लिबास चलते बने फिर समझ नहीं आता कि सारी उम्र इंसान ये तमाशाई दुसाले ओढ़ कर आखिर किसको भरमाने की कोशिश करता है
खुद को या औरों को ?
ये गाड़ी, बंगला, धन, दौलत, गुरुर, घमंड, सोना, जवाहरात, जमीन, परिवार? जब तन को ढँके कपड़े भी पहले जले, धर्म-अधर्म, नीति-अनीति धन दौलत जतन-जतन कर पाई-पाई जोड़ी लड़ाई-झगड़ा भी किया। कोर्ट कचहरी थाना तहसीली दुनिया भर के स्वांग रचे इस धरती पर आकर तुम ने।
पर क्या मिला? ना जाने कितने लोगों का दिल दुखाया, अपनों का खून बहाया माँ के गर्भ से जैसे निकला ठीक उसी तरह अंतिम विदा भी,
ये भाई बंधु मित्र सब मरघट तक संग जाते हैं, स्वारथ के दो आंसू रोकर लौट के घर को आते हैं, कंचन जैसी काया तुरंत जलाई जाती है। जिस नारी से प्रीत घनेरी वो भी देख डर जाती है।
जब पैदा हुआ वही चार छः लोग अंतिम समय भी वही चार छः लोग तेरे साथ कौन आया अब कौन गया कोई नही! सिवाय तेरे कर्म के न तब कोई था न अब कोई है।
पर नही मानेंगे धन दौलत के लिए अपने पराये घर परिवार कोई भी हो लड़ेंगे मरेंगे जोड़-जोड़ कर रखेंगे पर सत्य को देखना स्वीकार नही कर सकते। जिंदगी सबको मिलती है पर जिंदगी जीना हर किसी को नहीं आता।
परिचय :- आशीष तिवारी निर्मल का जन्म मध्य प्रदेश के रीवा जिले के लालगांव कस्बे में सितंबर १९९० में हुआ। बचपन से ही ठहाके लगवा देने की सरल शैली व हिंदी और लोकभाषा बघेली पर लेखन करने की प्रबल इच्छाशक्ति ने आपको अल्प समय में ही कवि सम्मेलन मंच, आकाशवाणी, पत्र-पत्रिका व दूरदर्शन तक पहुँचा दीया। कई साहित्यिक संस्थाओं से सम्मानित युवा कवि आशीष तिवारी निर्मल वर्तमान समय में कवि सम्मेलन मंचों व लेखन में बेहद सक्रिय हैं, अपनी हास्य एवं व्यंग्य लेखन की वजह से लोकप्रिय हुए युवा कवि आशीष तिवारी निर्मल की रचनाओं में समाजिक विसंगतियों के साथ ही मानवीय संवेदनाओं से परिपूर्ण, भारतीय ग्राम्य जीवन की झलक भी स्पष्ट झलकती है, इनकी रचनाओं का प्रकाशन एवं प्रसारण विविध पत्र-पत्रिकाओं एवं दूरदर्शन-आकाशवाणी के विविध केंद्रों से निरंतर हो रहा है। वर्तमान समय पर हिंदी और बघेली के प्रचार-प्रसार में जुटे हुए हैं।
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।
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