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ज़िंदगी…”एक मधुशाला”

निर्मल कुमार पीरिया
इंदौर (मध्य प्रदेश)

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चकाचौंध हैं मदिरालय में,
बरपाते हंगामा हमप्याला,
खींचतान पैमानों का ज़ोर,
बिखर रही हैं जीवन हाला,
बन साकी वो भटक रहा हैं,
ख़ातिर औरो खुद को भूला,
भर-भर मधुघट हैं पिला रहा,
पर कम ना होती तृषा हाला…

छलक रहे पैमानें फिर क्यू,
रिक्त रहा है उसका प्याला?
बज़्म भरी हैं रिंदों से पर,
हैं तन्हा क्यू वो मतवाला?
घुट घुट सब पी रहे पर,
बुझती नही उर की ज्वाला,
और और का शोर चहु ओर,
रहा प्यासा क्यू फिर मतवाला?

मन्दिर भटका मस्जिद छाना,
कहलाया तब भी पीने वाला,
लाख जतन किये समझाने को,
उतरीं नही पर मन से हाला,
उफ़न रही जीवन वारुणी, पर
अब शेष रहा ना कुछ पीने को,
ज्ञान सुरा के दो घुट लू चख मैं,
मिल जाये कही “निर्मल” मधुशाला…

परिचय :- निर्मल कुमार पीरिया
शिक्षा : बी.एस. एम्.ए
सम्प्रति : मैनेजर कमर्शियल व्हीकल लि.
निवासी : इंदौर, (म.प्र.)
शपथ : मेरी कविताएँ और गजल पूर्णतः मौलिक, स्वरचित और अप्रकाशित हैं


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