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अबला नहीं सबला

राकेश कुमार तगाला
पानीपत (हरियाणा)

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सोनी की तबीयत अचानक बिगड़ गई थी। वह जोर-जोर से रोए जा रही थी। सभी इसका कारण जानना चाहते थे। पर वह चुपचाप आँसू बहा रही थी। रुखसाना इस दुनिया में होती तो अपनी लाडली को खुद ही संभाल लेती। पर जो चले जाते हैं वह देखने थोड़े ही आते हैं।सब जीते जी का झगड़ा है। मरने वाले का नाता इस संसार से तभी तक रहता है, जब तक तन में प्राण होता है। उसके बाद दोनों के रास्ते अलग हो जाते हैं। मरने वाले की अंतिम यात्रा शुरू हो जाती है। यह सब बातें ग्रन्थों में लिखी है। और संत महात्मा भी ऐसा ही बताते हैं। कल ही एक प्रचारक कह रहा था कि मरने के बाद आत्मा अपनी दूसरी राह पर निकल जाती हैं। यह यात्रा हजारों वर्षों तक चलती रहती हैं। फिर आत्मा का हिसाब-किताब होता है। फिर दोबारा जन्म होता है। मैं भी क्या लेकर बैठ गई? यह धर्म- कर्म की बातें हैं। यह कोई समय है इन बातों को कहने-सुनने का। वह स्वयं हो को ही समझा रही थी।
सोनी का रोना बंद नहीं हो रहा था। वह पड़ोसन होने के नाते उसे लगातार समझा रही थी। अब एक-एक करके सारी महिलाएं उठ रही थी, बस उसे छोड़कर। बेटी मैं रुखसाना की जगह तो नहीं ले सकती। पर तुम मुझें अपनी माँ ही समझो। क्या बात है बिटिया, क्या तुम्हारे कारखाने में कुछ बात हुई है? सोनी अब और जोर से बिलख-बिलख कर रोने लगी। चुप हो जा मेरी बेटी। आंटी में एक अबला नारी हूँ। कारखाने में सभी मुझे तंग करते हैं। वह मुझें जबरदस्ती अपना बनाना चाहते हैं। हमेशा मौके की तलाश में रहते हैं। पर बेटी तुम्हारे कारखाने में तो बहुत लड़कियाँ काम करती हैं। फिर वह तुम्हारे ही साथ ऐसा क्यों कर रहे हैं? मुझे नहीं पता वह मम्मी के बारे में भी अच्छी बुरी बात करते हैं। कहते हैं जैसी माँ अबला थी वैसे ही बेटी भी अबला है।
तुम अबला नहीं हो और तुम्हारी माँ भी अबला नहीं थीं। तुम्हें क्या पता तुम्हारी माँ के बारे में? मेरा तो पूरा जीवन उसके साथ बीता था। उसने कभी अपने चरित्र पर दाग नहीं लगने दिया। ना ही वह अबला थी। कारखाने में कितने ही लोगों ने उसे अपना बनाना की कोशिश की? पर मजाल है, वह टस से मस हुई हो। जितना मुझें पता है तुम भी उसी बहादुर माँ की बेटी हो।
सोनी तुम्हारी माँ की दूसरी शादी हुई थी। पहली शादी कुछ ही सप्ताह तक चली थी। लड़का बहुत सुंदर था। जोड़ी कमाल की थी। पर वह आवारा किस्म का था। वह औरत के पीछे लगा रहता था। उसे औरतों का नशा था। एक, दो नहीं आगे वह कुछ नहीं बोल सकी। वह मानसिक रोगी था।जब तुम्हारी माँ को उसकी हरकतों चला तो उससे बर्दाश्त नहीं हुआ। उन्होंने उसे छोड़ दिया। उसे भी कोई फर्क नहीं पड़ा। वह एक नंबर का घटिया आदमी था। तुम्हारी माँ ने उसकी परवाह नहीं की। और उसे लात मार कर घर से निकाल दिया। फिर कभी उसने पीछे मुड़कर नहीं देखा। आंटी तो क्या मैं उसी मनचले की बेटी हूँ? नहीं बेटी तुम्हारी माँ, दोबारा शादी नहीं करना चाहती थी। पर पारिवारिक दबाव के कारण उसने दूसरी शादी के लिए हाँ कर दी थी।
तुम्हारी माँ इस दूसरी शादी से बहुत खुश थी। वह एक नेक दिल का आदमी था। फिर तुम्हारा जन्म हुआ। सभी कुछ ठीक चल रहा था। पर तुम्हारे परिवार को पता नहीं किसकी नज़र लग गई। तेरे पापा गाँव जा रहे थे। वह रेलगाड़ी के दरवाजे पर खड़े थे। किसी ने उन्हें धक्का मार दिया। वह रेल से नीचे गिर पड़े। गिरते ही उनकी मृत्यु हो गई। हमें तो एक सप्ताह बाद पता चला तब तक उनका अंतिम संस्कार भी कर दिया गया था। लावारिस लाश समझकर। अखबार में फोटो छपी थी, तुम्हारे पापा की फ़ोटो के साथ ही दुर्घटना का कारण भी था। उस फोटो को देखकर ही हम भागे थे। पर तब तक बहुत देर हो चुकी थी। देर क्या बेटी अंधेर हो चुका था? रूकसाना तो संभाले नहीं संभल रही थी। पर वक़्त अपना काम कर चुका था।
तुम्हारा हँसता चेहरा देखकर उसने सब्र कर कर लिया था। वह तुम्हें साथ ले जाती। घर-घर काम करती। मुझें हमेशा कहती थी। सोनी ही मेरा सहारा है। इसी के सहारे दिन काट लूंगी। मुझें अब किसी की जरूरत नहीं है। वह तुम्हारा पालन-पोषण बड़ा मन लगाकर कर रही थी। तुम्हें एक पल के लिए भी आँखो से ओझल नहीं होने देती थी। मुझें आज भी याद है, तुम्हारे स्कूल का पहला दिन। कितनी चहक रही थी वह। उसका रोम-रोम खुश था। सुबह से ही तुम्हें तैयार कर दिया था। उसने रुमाल, कॉपी- किताबें, खाने का छोटा सा टिफिन तुम्हारे बैग में रख दिया था। तुम्हें समझा रही थी। अपना काम करना। मैडम की सारी बातें मानना। समय पर टिफिन खाना। मैं तुम्हारी तरफ देख कर मुस्कुरा रही थी। मैं बोले बिना नहीं रह सकी थी। बस कर रूकसाना, क्या सारा कुछ आज ही समझा दोगी?
हाँ, भाभी समझाना तो पड़ेगा ही उसे। वैसे भी इसका ध्यान खेल में रहता है सारा दिन। अरे बच्ची हैं खेले-कूदेगी नहीं क्या? तुम लगातार चहक रही थी। बार-बार अपना बैग खोल रही थी। तुम्हारी मम्मी तुम्हें समझा रही थी। पर बचपन तो बचपन ही होता है।
समय कैसे बीत गया पता ही नहीं चला? मुझें आज भी याद है,जब तुम सोलह साल की हुई थी। तुम्हारा रूप भी बिल्कुल तुम्हारी माँ जैसा ही था। तुम माँ बेटी लगती ही कहाँ थी? तुम्हारी कद-काठी एक जैसी थी। तुम्हें देखकर हर कोई बहने ही समझता था। मैं तो उसके मुँह पर ही कहती थी। रुखसाना सोनी तुम पर गई है। तुम दोनों बहन लगती हो। जैसे-जैसे तुम बड़ी होती जा रही थी। तुम्हारी रंगत भी खिलती जा रही थी। जब तुमनें दसवीं की परीक्षा पास की थी। कितनी खुश थी तुम्हारी माँ, उसके चेहरे की रंगत फूलों की तरह खेल रही थी। मैंने पूछा था, आज तुम बहुत खुश नजर आ रही हो। हाँ, भाभी मैं तो अनपढ़ हूँ। पर सोनी पढ़-लिख रही है।
अनपढ़ आदमी के लिए तो काला अक्षर भैंस बराबर होता है। और सोनी तुम कहती हो। लोग तुम्हारी माँ को अबला कहते हैं। उसने तो कभी किसी के आगे हाथ-पाँव नहीं पसारे। वह अपने घर में रूखी-सूखी खा कर खुश रहती थी। मैं तो उसे अबला नहीं मानती थी।
बेटी सोनी रोना-धोना छोड़ कर आगे बढ़ाने का प्रयास करो। अपने काम में खुद को डूबा लो समझी। लोग क्या कहते हैं? इन बातों पर ध्यान देना बंद कर दो। सोनी ने अपने आँसू पोंछ डाले। उसने अपनी माँ की तरह बनने का विचार अपने मन में बिठा लिया। पर यह इतना आसान नहीं था। सोनी के कारखाने के मनचले अब उसे चुप देखकर और अधिक भोंकते। वह उस पर तरह-तरह के कटाक्ष करते। अरे यह साली यूं ही चुप नहीं है। किसी के चक्कर में फंसी है चिड़िया। कोई आशिक पाल रखा होगा इसने। मन में आता था, उन्हें नोंच डालू। चप्पल उतार के—–। पर वह चुप रहती थी। अपने काम में मगन रहती थी। अगर उसे हंसी आती थी तो आंटी के पास बैठकर। वह भी उसका मन बहलाने के लिए कुछ हंसी के किस्से उसे सुना दिया करती थी। सोनी भी खुल कर हंसती थी।
आंटी क्या माँ आप से मेरे भविष्य के बारे में कुछ कहती थी? हाँ वह तुम्हारे भविष्य को लेकर बहुत चिंतित रहती थी। पर आंटी मैंने तो कभी उनके चेहरे पर उदासी नहीं देखी थी। हाँ तुम सच कह रही। वह कभी नहीं चाहती थी कि उसकी उदासी तुम पर बुरा असर डाले। इसलिए तुम्हारे सामने खुश रहती थी।
एक दिन तुम्हारी माँ शाम को देर से आई। उसके कपड़े अस्त-व्यस्त थे। मुझें किसी अप्रिय घटना घटी लगी। मैंने उसे घर के बाहर ही रोक दिया। उसकी आँखे नम थी। मेरे बहुत पूछने पर, उसने कहा रोज मेरा रास्ता रोक कर खड़े हो जाते थे वे मनचले। आज मुझसे सहन नहीं हुआ। मैं हैरान हो गई। क्या हुआ तुम्हारे साथ? भाभी यह पूछो उनके साथ क्या हुआ? मैं समझी नहीं तुम्हारा मतलब। मैंने तीनों को बजा कर रख दिया। आगे से किसी को बुरा समझने की भूल नहीं करेंगे। कौन थे रुखसाना? मुझें क्या पता, जब भी कारखानों से बाहर निकलती थी? कुछ ना कुछ कहना चालू कर देते थे। मेरी सहनशक्ति जवाब देने लगी थी। इन मनचलों ने बाप का माल समझ रखा था मुझें। पता था उन्हें विधवा हूँ।कोई आगे-पीछे नहीं है।
आज मैं भी भरी बैठी थी। कुछ कहे तो सही, छठी का दूध याद दिला दूंगी। फिर क्या हुआ रुखसाना? मेरा गला सुख रहा था, सवाल करके। भाभी मैं भीड़ गई थी तीनों से। उन्होंने मुझें काबू करने की बहुत कोशिश की। पर आज मैंने ठान लिया था। किसी भी कीमत पर उन्हें उनके मकसद में कामयाब नहीं होने दूंगी। भाभी, मैंने लात घुसो की बरसात कर दी। दो तो पहले ही भाग खड़े हुए। तीसरा भी बोला अरे यार, यह औरत नहीं है। चंडी है, काली है। और वह भी दुम दबाकर भाग गया।
इसलिए आज देर हो गई। मेरी तो सांस सुन कर ही फूल रही थी। इतनी हिम्मत, इतना तो पता था कि रुखसाना डरपोक नहीं है। वह अकेले ही सघर्ष कर रही थी। उसे किसी प्रकार के सहारे की जरूरत नहीं थी। पर यह कभी नहीं सोचा था कि वह किसी अप्रिय घटना को हराने के लिए काली का रूप धारण कर लेगी। वह अबला नहीं थी। वह सच्चे अर्थों में सबला थी।
बेटी सोनी तुम उसी सबला माँ की बेटी हो, समझी। अपना भविष्य खुद बनाओ। यहाँ कोई किसी का सहारा नहीं होता। समझ रही हो ना मेरी बात। हाँ आंटी मेरी माँ अबला नहीं सबला थी। मैं भी उमकी तरह ही बनूंगी। शाबाश मेरी बेटी। सोनी के मन में आज नया उत्साह था। वही अपनी माँ की तरह सबला बनेगी, हाँ सबला….

परिचय : राकेश तगाला
निवासी : पानीपत (हरियाणा)
शिक्षा : बी ए ऑनर्स, एम ए (हिंदी, इतिहास)
साहित्यक उपलब्धि : कविता, लघुकथा, लेख, कहानी, क्षणिकाएँ, २०० से अधिक रचनाएँ प्रकाशित।
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।


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