डाॅ. दशरथ मसानिया
आगर मालवा म.प्र.
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मेवाड़ राज शिरोमणि, राणा वीर प्रताप।
सूखी रोटी खाय के, धरम संभाला आप।।
जय हो राणा जय महाराणा।
जय मेवाड़ा राजपुताना।।१
धीर वीर प्रण के रखवारे।
मा भारत के राज दुलारे।।२
राजस्थाना बसते भूपा।
दिखते वैभव किला अनूपा।।३
जौहर पद्मा जगत बखानी।
राणा वंशी वीर कहानी।।४
बलिदानी ममता की माता।
पन्नाधाया जग विख्याता।।५
उदयपुर उदेसिंह बसाया।
गढ़ चित्तोड़ा दुर्ग बनाया।।६
मातु पिता तुम्हरे जस पाई।
उदय सिंह जसवंता बाई।।७
नौ मई पंद्रह सौ चालीसा।
जन्में राणा हिन्दू ईशा।।८
कुंभलगढ़ में बजी बधाई।
महलों में भी खुशियां छाई।।९
पूत अमरसिंह अजबद नारी।
चेतक घोड़ा करी सवारी।।१०
लम्बी भुजा लोह शरीरा।
माथे तिलक मिवाड़ी वीरा।।११
तन अंगरखा लम्बी धोती।
सुंदर सूरत ध्वजा करोती।।१२
तुम्हरा भाला ढाल कृपाणा।
हरते रण में अरिदल प्राणा।।१३
दो तलवारे कटि सुहाती।
भाला भारी घात लगाती।।१४
जून अठारह सन छिहत्तर।
राजपुताना बड़ा नखत्तर।।१५
दो सेना की छिड़ी लड़ाई।
राणा सम्मुख अकबरआई।।१६
हल्दी घाटी के मैदाना।
हाथी घोड़ा पैदल सेना।।१७
भिड़ते पुरुषारथ बल नाना।
तुम्हरे बल को सबने जाना।।१८
नायक ने दुश्मन ललकारा।
शत्रु दल मे हाहा कारा।।१९
राणा सेना पड़ती भारी।
गरजे सैनिक तोप अगाड़ी।।२०
भाला से जब करे प्रहारा।
शत्रु मरते लाख हजारा।।२१
लेकिन चेतक धोखा खाया।
दुश्मन को वो समझ न पाया।।२२
जब भाई ने धोखा दीना।
अकबर लाभा तुरतहिं लीना।२३
चेतक की जग करे बढ़ाई।
आसमान पे उड़ता भाई।।२४
नीला घोड़ा सरपट दौड़े।
विश्वासी संगी कंधे चौड़े।।२५
शत्रुदल की नारिन को पकड़ा।
बहिन मान के सबको छोड़ा।।२६
रहीम कवी पर दया दिखाई।
केदखाने से मुक्त कराई।।२७
अरावली में कीन पयाना।
विपदा काटी राम समाना।।२८
देश धरम हित वनवन भटके।
फिर भी काम कभी न अटके।२९
खाई घास पात की रोटी।
रो रो हिम्मत देती बेटी।।३०
तात कभी ना शीश झुकाना।
दुश्मन को तो मार भगाना।।३१
रजपूती पे न दाग लगाना।
चाहे प्राण रहे या जाना।।३२
साहस सेवा देश भलाई।
जनजन तुमसे आस लगाई।३३
जबजब धन की कमी सताई।
दानी दाता देते भाई।।३४
युद्धवीर अरु सैनिक एका।
कोषालय का करता लेखा।।३५
भामाशह ने थैली खोली।
राणा के चरणों में मेली।।३६
शेर दिलेरा राणा बांका।
अकबर तुमसे थरथर कांपा।।३७
सकल समाजा जनम मनाता।
आज जगत तुम्हरा जस गाता।३८
मेवाड़ी केशरिया जामा।
सब जग करता तुम्हे प्रणामा।३९
जय जय करते देत दुहाई।
कवि मसान ने कविता गाई।।४०
भारत भूमी वीरता, जग करता सम्मान।
मर्यादा रण धीरता, कहत हैं कवि मसान।।
परिचय :- आगर मालवा के शासकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय आगर के व्याख्याता डॉ. दशरथ मसानिया साहित्य के क्षेत्र में अनेक उपलब्धियां दर्ज हैं। २० से अधिक पुस्तके, ५० से अधिक नवाचार है। इन्हीं उपलब्धियों के आधार पर उन्हें मध्यप्रदेश शासन तथा देश के कई राज्यों ने पुरस्कृत भी किया है। डॉं. मसानिया विगत १० वर्षों से हिंदी गायन की विशेष विधा जो दोहा चौपाई पर आधारित है, चालीसा लेखन में लगे हैं। इन चालिसाओं को अध्ययन की सुविधा के लिए शैक्षणिक, धार्मिक महापुरुष, महिला सशक्तिकरण आदि भागों में बांटा जा सकता है। उन्होंने अपने १० वर्ष की यात्रा में शानदार ५० से अधिक चालीसा लिखकर एक रिकॉर्ड बनाया है। इनका प्रथम अंग्रेजी चालीसा दीपावली के दिन सन २०१० में प्रकाशित हुआ तथा ५० वां चालीसा रक्षाबंधन के दिन ३ अगस्त २०२० को सूर्यकांत निराला चालीसा प्रकाशित हुआ।
रक्षाबंधन के मंगल पर्व पर डॉ दशरथ मसानिया के पूरे ५० चालीसा पूर्ण हो चुके हैं इन चालीसाओं का उद्देश्य धर्म, शिक्षा, नवाचार तथा समाज में लोकाचार को पैदा करना है आशा है आप सभी जन संचार के माध्यम से देश की नई पीढ़ी को दिशा प्रदान करेंगे।
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