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बचपन हमारा

सपना
दिल्ली

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कितना प्यारा होता है, बचपन हमारा
न किसी बात की फ़िक्र हमें,
न किसी से ड़र हमें,
न कोई टेंशन
जो जी में आए करते
जिसे करने का मन न
उससे कोसों दूर भागते।

पापा की परी कहलाती
माँ की गुड़िया होती
भाई की लाड़ो
बहन की चुटकी
दादा-दादी के आँखों का तारा।

जब पापा पूछते, सबसे प्यारा कौन?
तो पापा की साइड हो जाती,
और जब यही प्रश्न माँ करती
तो माँ के आंचल से लिपट जाती
और कहती सबसे प्यारी आप!

माँ जिसे करने से मना करें
वही करने को मन बाए
औ’ पकड़े जाने पर,

भाई, दीदी को आगे कर
ख़ुद पीछे छिप जाती।

मन करता तो पढ़ती
वरना न पढ़ने के सौ बहाने बनाती
अपना काम दीदी से करवाती
औ’ ख़ुद छोटी होने का फ़ायदा उठाती।

सबसे अपनी बात मनवाती
छोटी-छोटी बातों पर रूठ जाती
और फिर पल-भर में ही मान जाती।

सखियों संग मिलकर शोर से
कॉलोनी सिर पर उठा देती
तब न भूख लगती,
न प्यास,
खेल में सब कुछ भूल जाती।

……वह बारिश में भीगना
कागज़ की किश्तियों से खेलना
आकाश में उड़ते पक्षियों को देख
ख़ुद भी हाथ फैलाकर
उनकी नकल करना!

माँ का, अरबी को
आलू बतलाकर खिलाना
सेवई को मैंगी बताना
चाप के नाम पर
सोया चंक्स खिलाना
लड्डू के नाम पर,
उसमें ड्राई फ्रूट छिपाना
ठंड में आइसक्रीम की जिद्द करने पर
पापा से बचाकर वह, हमें खिलाना।

छुट्टियों में नानी के
घर जाने की खबर
से मन आतुर होना
माँ के डांटने पर
उनकी शिकायत नानी से करना
नानी, जब माँ को डांटती तो
उन्हें डांटते देख
ख़ुद मंद-मंद मुस्कराती!

बीमार होने पर,
कड़वी दवा पहले दीदी को
पिलाने की जिद्द करती
बीमार न होने पर भी उन्हें
कड़वी दवा पिलाकर
उन्हें टॉचर करती।
काश, लौट आता
प्यारा बचपन मेरा
मेरा बचपन!

परिचय :- सपना
पिता- बान गंगा नेगी
माता- लता कुमारी
शैक्षणिक योग्यता- एम.ए.(हिंदी), सेट, नेट, जेआर. एफ. अनुवाद में डिप्लोमा ( अंग्रेज़ी से हिंदी), पी.एचडी. (ज़ारी)
साहित्यिक उपलब्धियां- १५ से अधिक राष्ट्रीय और अन्तरराष्ट्रीय संगोष्ठियों में सहभागिता तथा प्रपत्र वाचन एवं विभिन्न पत्रिकाओं/ संपादित पुस्तकों में विभिन्न विषयों पर शोधालेख प्रकाशित। साथ ही साहित्य सिनेमा सेतु वेबसाइट पर कुछ कविताओं का प्रकाशन।
निवासी- दिल्ली
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।

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