राकेश कुमार तगाला
पानीपत (हरियाणा)
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बेटा, तेरी डाक मेज पर रखी है। पता नहीं यह लड़का क्यों कागज काले करता रहता है? मेरी तो कुछ भी समझ में नहीं आता। डाकिया भी रोज ही घर के चक्कर लगाता रहता है। कल ही तो कह रहा था, माँ जी प्रकाश को पढ़ने-लिखने का बहुत शौक है। वह बहुत सुन्दर कहानी-कविताएं लिखता है। यह बहुत अच्छी बात है। अच्छा माँ जी अब मैं चलता हूँ।
वह डाक में आए पत्रों को खोलकर पढ़ने लगा। ज्यादातर पत्रों में रचनाओं के प्रकाशन की सूचना थी और अति शीघ्र ही पत्रिका की प्रति भेजने का आश्वासन भी था।
उसके मन को तृप्ति मिलती थी कि उसके लेखन का प्रयास सफल हो रहा हैं, चाहे धीरे-धीरे ही सही। उसने आखिरी पत्र भी खोल ही लिया।वह हैरान था यह पत्र उसे किसी मिस कविता ने एक सुंदर लेटर पैड पर लिखा था। पत्र में से भीनी-भीनी खुशबू आ रही थीं। उसे मेरी रचनाएँ बहुत पसंद आई थी। खासकर कहानियाँ जो पारिवारिक विषयों पर आधारित थी। पत्र में कुछ खास नहीं लिखा था। बस एक आश्वासन दिया था। सर मैं आपकी कहानियाँ बहुत पसंद करती हूँ। मैं बीएससी में पढ़ती हूँ, आपकी रचनाओं से मुझे खास लगाव हैं। पत्र के आखिरी शब्द थे, आपकी अपनी कविता!
पर लेटर में कोई पता नहीं लिखा था। मैं अपने लेखन में डूबा रहता था। मैं पाठक भी बहुत अच्छा था। मुझें हर तरह का साहित्य लुभाता था।अलमारी में रखी किताबे मुझें अपनी तरफ आकर्षित करती रहती थी। मैं अखबारों में, पत्रिकाओं में लगातार छप रहा था। मेरी रचनाओं को पसंद करने वाले पाठकों की संख्या धीरे-धीरे बढ़ रही थी। मेरे मन को बड़ी आत्मसंतुष्टि मिलती थी।
पर माँ मेरे पढ़ने-लिखने के काम से बिल्कुल भी खुश नहीं थी। कभी-कभी तो माँ आवेश में आकर कह देती थी, बेटा सारा दिन कागजों को काला करता रहता है। कोई हुनर सीख ले जल्दी ही अपना रोजगार पा लेगा। कोशिश कर रहा हूँ, माँ जल्दी ही कोई ना कोई नौकरी मुझें मिल ही जाएगी। माँ ने निराश होकर कहा, कब से यही तो सुन रही हूँ? कोशिश कर रहा हूँ, जल्दी ही एक अच्छी नौकरी मिल जाएगी। पर पता, वह दिन कब आएगा? मैं जिन्दा भी रहूँगी या नहीं वह दिन देखने के लिए। माँ तुम ऐसा क्यों कहती हो, तुम तो सौ साल तक जिन्दा रहोगी।माँ मेरी बात सुनकर जोर से हँस पड़ी। अगले दिन कविता का पत्र घर के दरवाजे पर पड़ा मिला। माँ उस समय घर पर नहीं थी। मैं पत्र उठाकर खोलता हुआ अंदर चला गया।
मेरे प्रिय रचनाकार !
सप्रेम नमस्कार।
कल ही आपकी नई कहानी पढ़ी। पढ़ कर मैं आत्म-विभोर हो गई। ‘सात फेरों का बंधन’ मैंने उस कहानी को कई बार पढ़ा। क्या सच में आप सात फेरों के बंधन को इतना मजबूत मानते हैं? पर मेरा विचार आप से भिन्न हैं। मुझें लगता हैं, बहुत से स्त्री और पुरुष इसे सामाजिक तौर पर ही निभाना अपनी मजबूरी समझते हैं। हमारे आस-पास ऐसे बहुत से उदाहरण मिल जाते हैं। मुझे तो ऐसा ही लगता है। आप मेरी किसी बात को अन्यथा ना ले। यह मेरी राय है, आप इससे असहमत हो सकते हैं। मैं आपकी हर रचना पर कोई ना कोई प्रतिक्रिया देती हूँ। मैं जल्दी ही अपना पता आपको भेज दूँगी। ताकि आप मेरे पत्रों का जवाब दे सके। मैं आपसे मिलना भी चाहती हूँ। मुझें ऐसा लगता है आपका मेरा मिलन एक दिन अवश्य होगा। पत्र के साथ इस बार भी एक पीला फूल था। जो सूखा होने के बावजूद भी महक रहा था। पत्र के अंत में वही पंक्तियां दोराही गई थी।
आपकी अपनी कविता।
मैंने पत्र पढ़कर एक तरफ रख दिया। आखिरी पंक्ति अभी तक मेरे दिमाग में घूम रही थी। हमारा मिलन एक दिन अवश्य होगा। मैं एका-एक ही इस कल्पना पर हँस पड़ा। हमारा मिलन संभव नहीं हैं। पर पत्रों का सिलसिला यूँ ही चलता रहा पूरे तीन वर्ष तक। फिर पत्र आने कम हो गए, मैं भी मन मार कर रह गया था। मन ही मन विचार करता था वह सिर्फ मेरी एक पाठिका थी। उसे मेरी रचनाओं से प्रेम था, मुझसे नहीं। पर कविता तो कहती थी, हमारा मिलन जरूर होगा। वह हमेशा कहती थी सच्चा प्यार हमें जरूर मिला देगा एक दिन।
अब यह सब अतीत हो गया था।
माँ:- प्रकाश-बेटा अब तुम्हारे पास एक अच्छी नौकरी भी है। शादी कर लो, अब मुझे भी सहारे की जरूरत हैं। मुझसे घर का काम-काज भी नहीं होता। माँ, जैसा तुम ठीक समझो। बेटा मैंने तुम्हारे लिए एक लड़की देख ली हैं। प्रकाश का रिश्ता तय हो गया। दिल्ली की पढ़ी-लिखी लड़की से। जल्दी ही शादी भी हो गई। सरिता के रूप में उसे एक परी जैसी सुन्दर पत्नी मिल गई थी।
प्रकाश:- सरिता- हम अपनी जिंदगी की नई शुरुआत कर रहे हैं। मैं तुम्हें अपने बारे में सब कुछ बताना चाहता हूँ। मेरी एक पेन-फ्रेंड थी। मैं उसे बहुत पसंद करता था। कहते-कहते वह चुप हो गया। उसका चेहरा पूरी तरह लाल हो गया।
ओह!अच्छा, क्या तुम उस लड़की से मिलना चाहोगे, मेरे प्यारे रचनाकार? अगर मैं आपको कविता से मिलवा दूँ तो। यह कैसे सम्भव हैं, मैंने हैरान होते हुए पूछा? मैंने कहा था ना कि अगर प्यार सच्चा हो, तो मिलन अवश्य होता है। मैं ही आपकी अपनी कविता हूँ। तुम्हारी कहानियों की पाठिका, तुम्हारी अर्धांगिनी। पर ये कैसे सम्भव हुआ….।ये सब अपनी प्यारी माँ से पूछना। सच कविता….। प्रकाश ने सरिता को अपनी आगोश में भर लिया। ओह, सरिता? क्यों अब अपनी कविता को भूल गए? तुम सच ही कहती थी, एक दिन हमारा मिलन अवश्य होगा। दोनों एक-दूसरे की आगोश में समा गए।
परिचय : राकेश तगाला
निवासी : पानीपत (हरियाणा)
शिक्षा : बी ए ऑनर्स, एम ए (हिंदी, इतिहास)
साहित्यक उपलब्धि : कविता, लघुकथा, लेख, कहानी, क्षणिकाएँ, २०० से अधिक रचनाएँ प्रकाशित।
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।
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