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तुम्हे अब भूल ही जाऐं तो अच्छा है।

दामोदर विरमाल
महू – इंदौर (मध्यप्रदेश)

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तुम्हे अब भूल ही जाऐं तो अच्छा है।
ये फासले और भी बढ़ जाऐ तो अच्छा है।
तुम्हारी चाहतें तो हमको नही हुई हासिल,
तू अब गैर ही बन जाए तो अच्छा है।

हमारी तो उम्र गुज़र गई तेरी चाहत में,
अब तू इस आग में ना जले तो अच्छा है।
बरसों से थी दुआ की तू मेरे साथ रहे,
शुक्र है तू अब मेरे करीब नही तो अच्छा है।

क्या फर्क पड़ता है तुझे कि मैं कैसा हूँ,
तुझे मेरी याद ही ना आये तो अच्छा है।
वैसे भी तूने मुझे कहीं का तो छोड़ा नही,
तू अब मेरे सामने ही ना आये तो अच्छा है।

दिन किये थे खर्च खराब की थी रातें,
ऐसा वक्त तुम्हारा ना आये तो अच्छा है।
तुमने जो किया वो सरासर गलत था,
प्यार का अर्थ कोई धोखा बताए तो अच्छा है।

रहता था तेरी मोहब्बत का साया मेरे साथ।
अबतो तेरी परछाई भी ना हो तो अच्छा है।
मोहब्बत की सज़ा तो जहन्नुम से बत्तर है,
अब तो बस मौत ही मिल जाए तो अच्छा है।

परिचय :- ३१ वर्षीय दामोदर विरमाल पचोर जिला राजगढ़ के निवासी होकर इंदौर में निवास करते है। मध्यप्रदेश में ख्याति प्राप्त हिंदी साहित्य के कवि स्वर्गीय डॉ. श्री बद्रीप्रसाद जी विरमाल इनके नानाजी थे। हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक २०२० राष्ट्रीय सम्मान एवं आपके द्वारा अभी तक कई कविताये, मुक्तक, एवं ग़ज़ल व गीत लिखे गए है, जो आये दिन अखबारों में प्रकाशित होते रहते है।  गायन के क्षेत्र कराओके गीत गाने में आप खासी रुचि रखते है।
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