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मां काश आप होती

अनुराधा बक्शी “अनु”
दुर्ग, छत्तीसगढ़

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                बचपन में मां को पिता से छोटी-छोटी बात पर झगड़ते और बहस करते देखा है। मां के प्रति उस वक़्त कभी-कभी गुस्सा और अनादर का भाव आ जाता था। जैसे-जैसे बड़ा हुआ तो उनके गुस्से को समझा कि वह पिता के लिए नहीं उन परिस्थितियों के लिए था जिसमें मां हमें जो देना चाहती थी और नहीं दे पाती थी। अभाव से भरे जीवन की मजबूरी ने मां को चिड़चिड़ा बना दिया था। बड़े होते हुए मां को बहुत सी बातों के साथ समझौता करते देखा। हमें बड़े स्कूल में पढ़ाने का सपना अक्सर मैं उनकी आंखों में देखता। वो हर संभव प्रयास किया करती कि एक स्तर बरकरार रख सकें ताकि हमारी परवरिश में कोई कमी ना हो। उनके प्रयास सफल भी होते। मां का जीवन हमारे लिए साधन जुटाते गुजरा। उन्होंने ये जिम्मेदारी स्वयं उठा की और पिता से अपेक्षाएं कम कर दी। मैंने भी उनके प्रयास में उनका साथ दिया और एक अच्छे सरकारी ओहदे पर काम करने लगा। मां की कमरतोड़ मेहनत ने मुझे तो सब कुछ दे दिया लेकिन वो अपना शरीर ना बचा सकी और एक दिन हमें छोड़ चल बसी। वक्त आगे बढ़ने के साथ मैंने घर, गाड़ी ऐसो आराम की चीजों से घर भर लिया। अब मैं सभी प्रकार से साधन संपन्न हो गया था। मेरे आगे पीछे नोकरों की कमी ना थी। पर यह सब जीने अब मां नहीं थी। मन में खालीपन आ जाता है। मां बहुत जल्दी साथ छोड़ गईं थीं। खुदको समझता सोचता कि काश मां आज होती और जो जीवन आप हमें देना चाहते थे खुद जी पाती। जो आपने हमारे लिए देखा था उस सुख को हमें जीते देख पाती। मैं आज बड़ा हो गया हूं साधन संपन्न हो गया पर मां मुझसे बहुत दूर थी। काश मां आज आप होती….।

परिचय :- अनुराधा बक्शी “अनु”
निवासी : दुर्ग, छत्तीसगढ़
सम्प्रति : अभिभाषक
घोषणा पत्र : मैं यह शपथ लेकर कहती हूं कि उपरोक्त रचना पूर्णतः मौलिक है।


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