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मेरी बूढ़ी माँ

बबली राठौर
पृथ्वीपुर टीकमगढ़ (म.प्र.)

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कभी हँसता खेलता बचपन
था उनका भी सखि
हर विपता से दूर बिन चिंता के
उनके थे लम्हें सखि
समय होता है बहुत ही
बलवान कभी-कभी सखि
वक्त ने ली करवट व्याह हुआ
दुल्हन बनी मेरी बूढ़ी माँ

ससुराल में पाई गईं सबसे बड़ी
छोटे थे देवर और ननदें सखि
फिर भी नहीं घबराई घर को लेकर
सास संग वो चली सखि
फिर वो दिन भी आया उन्हें माँ
बनने का सौभाग्य मिला सखि
जिसमें उन्होंने ढूँढ़ा अपना
बालपन जब माँ बनी मेरी बूढ़ी माँ

जीवन के पन्ने पलटे और वो
बन गईं चार बच्चों की माँ सखि
पालन-पोषण किया सबके
व्याह भी रचाए उन्होंने सखि
उस पर विधाता को भी दया
ना आई उनपर सखि
सुहाग छूटा और पिता का
साथ छूटा विधवा बनी मेरी बूढ़ी माँ

जिन्दगी अब भी वही है नाती,
पोते हैं पर कभी-पिता की
कमी भी खलती है सखि
पिता की पेंशन है हर सुख से
लदी है पर तन्हाई उनके साथ है सखि
कभी वो (पिता) याद आए तो
आँखों में होते हैं आँसू भी सखि
बिताए उनके साथ के पल की
साथिन और विरह की बनी मेरी बूढ़ी माँ

हर कर्त्तव्य निभाती चली है
अभी तक मेरी जन्म जननी माँ सखि
घर-आँगन उनका महँकता है
पोती-पोतों की किलकारी से सखि
अब तो रम गईं हैं वो राम भजन में
भी जपती हैं माला भी सखि
मंदिर जा कभी-भी गाती हैं
भजन मीरा बनी मेरी बूढ़ी माँ

परिचय :- बबली राठौर
निवासी – पृथ्वीपुर टीकमगढ़ म.प्र.
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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