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ढिलाई बनी बुराई

विजय गुप्ता
दुर्ग (छत्तीसगढ़)

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बचपन की ढिलाई ने जीवन राह बताई
सबको ही सिखलाई,कितनों ने अपनाई।

समयचाल ने कर्म ज्ञान महिमा समझाई
बेफिक्री लापरवाही ने निज सूरत दर्शाई

परिणाम साक्षी खुद की कुशल चतुराई
बचपन की ढिलाई ने जीवन राह बताई

सबको ही सिखलाई कितनों ने अपनाई।
समझदार को इशारा या चपत चिपकाई

मानव चले यथेष्ट अथवा हार गई खुदाई
भ्रमित परिवार चुकाता जिसकी भरपाई

बचपन की ढिलाई ने जीवन राह बताई
सबको ही सिखलाई कितनों ने अपनाई।

बिन पैरों चलकर सच बन जाए वरदाई
सच सुन पाने का साहस सत्व सुखदाई

बुराई रूपी रावण का अंत करे अच्छाई
बचपन की ढिलाई ने जीवन राह बताई

सबको ही सिखलाई कितनों ने अपनाई।
श्रेष्ठ मार्ग में निरंतर मिलती है कठिनाई

प्रभु ‘राम-कृष्ण’ जीवन झलक प्रभुताई
दर द्वार के दामन दहके दारुण हरजाई

बचपन की ढिलाई ने जीवन राह बताई
सबको ही सिखलाई कितनों ने अपनाई।

कहा सुना ‘समरथ को नहीं दोष गोसाई’
किसी समय में समर्थ सांसें भी बलखाई

चुपके अनजाने समाहित जब हुई बुराई
बचपन की ढिलाई ने जीवन राह बताई

सबको ही सिखलाई कितनों ने अपनाई।
व्याप्त बुराई की अंतिम दौर से हाथापाई

‘कोरोना’ सिद्ध करे अब तक नहीं दवाई
नहीं दवाई जब तक नामंजूर कोई ढिलाई

बचपन की ढिलाई ने जीवन राह बताई
सबको ही सिखलाई कितनोंने अपनाई।

परिचय :- विजय कुमार गुप्ता
जन्म : १२ मई १९५६
निवासी : दुर्ग छत्तीसगढ़

उद्योगपति :१९७८ से विजय इंडस्ट्रीज दुर्ग
साहित्य रुचि : १९९७ से काव्य लेखन, तत्कालीन प्रधान मंत्री अटल जी द्वारा प्रशंसा पत्र
काव्य संग्रह प्रकाशन : १ करवट लेता समय २०१६ में, २ वक़्त दरकता है २०१८
राष्ट्रीय प्रशिक्षक : (व्यक्तित्व विकास) अंतराष्ट्रीय जेसीस १९९६ से
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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