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प्रश्न पूछती धरती

डॉ. कामता नाथ सिंह
बेवल, रायबरेली

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बहुत दिनों से बन्जर,
परती, काई पडी़ हुई |
प्रश्न पूछती धरती,
ले अँगडा़ई खडी़ हुई ||

तुम्हीं बताओ कब तक
हमें रुखाई टोंकेगी,
मिलने से कब तक हमको
परछाईं रोकेगी;

कब तक पीछा छोडे़गी,
रुसवाई अडी़ हुई ||
प्रश्न पूछती धरती,
ले अँगडा़ई खडी़ हुई||१||

कभी अँटरिया चूम-चूम
बदरा झूमे, बरसे ,
आखिर कब तक बूँद-बूँद
को,प्यासा मन तरसे ;

सपने अँखुवायें, अब तो
अँगनाई बड़ी हुई ||
प्रश्न पूछती धरती,
ले अँगडा़ई खडी़ हुई||२||

सुधियों की बैसाखी लेकर
जब मिलते हो तुम,
सोनजुही की कलियों जैसे,
कब खिलते हो तुम;

बीच हमारे सौतन-सी
तनहाई अडी़ हुई ||
प्रश्न पूछती धरती,
ले अँगडा़ई खडी़ हुई||३||

तिल-तिल मर-मरके,
जीवन दे देके ऊब गई,
सागर तक क्या पहुँचे
नदिया खु़द में डूब गई;

खु़द की, खु़द से कितनी बार
लडा़ई बडी़ हुई ||
प्रश्न पूछती धरती,
ले अँगडा़ई खडी़ हुई||४||

परिचय :- डॉ. कामता नाथ सिंह
पिता : स्व. दुर्गा बख़्श सिंह
निवासी : बेवल, रायबरेली
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।


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