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सखी

डॉ. सर्वेश व्यास
इंदौर (मध्य प्रदेश)

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कहते हैं तीन चीजें ईश्वर एक साथ कभी नहीं देता-
१ सुंदरता/ रूप- रंग
२ सादगी/ सरलता/सहजता/विनम्रता और
३ तीव्र मस्तिष्क/ मति/ पढ़ने में तेज।

अगर किसी के जीवन में यह तीन चीजें हो तो उस पर तथा उससे जुड़े हुए लोगों पर ईश्वर की असीम कृपा होती है। आज की कहानी ऐसी ही एक लड़की की है, जिसका नाम है- सखी। सखी एक छोटे से शहर में रहने वाली एक सुंदर, सुशील और विनम्र लड़की है। उसकी सुंदरता की बात करें तो चंद्रमा के समान मुख वाली एवं शीतलता लिए हुए, हिरनी सी आंखों वाली एवं चंचलता लिए हुए, गज गामिनी एवं हथिनी सी गंभीरता लिए हुए। सादगी की प्रतिमूर्ति, अहंकार रहित, लेश मात्र भी घमंड नहीं, ना पढ़ाई का और न ही अपने रूप रंग का। मानो विनम्रता शब्द उसके लिए ही बना हो, वाणी शहद सी मीठी और मुस्कान जीवन रस का संचार कर दे। अत्यंत संकोची एवं शर्मिली, लेकिन सखी साधारण परिवार में जन्मी अपने दायित्वों को पूर्ण करने वाली, निष्ठावान, धीर-गंभीर लड़की थी। परिस्थितियों की चुनौती को स्वीकार करना, उनका डटकर सामना करना एवं जीतना मानो उसकी प्रवृत्ति थी । अपने अध्ययन काल में स्वयं पढ़ती थी, साथ ही छोटे बच्चों को पढ़ा कर अपना तथा अपने छोटे भाई-बहनों का भी व्यय वहन करती थी। अपनी कक्षा में हमेशा प्रथम आती थी। चूंकि वह छोटे नगर में रहती थी, अतः उसके समाज में तथा नगर में उसकी पढ़ाई एवं उसकी सादगी के चर्चे आम थे। छोटी सी उम्र में उसकी अपने कर्मों के दम पर समाज में सात्विक छबि एवं अच्छी पैठ बन गई थी। उसी शहर में एक लड़का रहता था, उसका नाम था – विश्वास। विश्वास सीधा-साधा, आध्यात्मिक प्रवृत्ति से ओतप्रोत, धीर-गंभीर, रिश्तो के प्रति निष्ठावान और पढ़ने में तेज लड़का था, लेकिन बोल नहीं पाता था, बात करने में उससे शब्द मानो खो से जाते थे, बस हल्की सी मुस्कुराहट उसके मुख पर रहती थी, वह अंतर्मुखी था। सखी और विश्वास एक दूसरे को जानते तो थे, लेकिन कभी बात नहीं हुई थी। दोनों ने १२वीं की परीक्षा उत्तीर्ण की एवं नगर के महाविद्यालय में प्रवेश लिया। सखी लड़कियों के समूह में महाविद्यालय आती-जाती थी एवं कक्षा में प्राध्यापक के संग कालांश के समय अंदर आती एवं कालांश की समाप्ति के पश्चात प्राध्यापक के साथ ही लड़कियों के लिए आरक्षित कमरे (गर्ल्स कॉमन रूम) में चली जाती थी, यही क्रम चलता रहता था। उधर विश्वास अंतर्मुखी होने के कारण स्वयं अकेले ही महाविद्यालय आता, अध्ययन करता और चला जाता। संबंध तो उसके सबसे मधुर थे, लेकिन गहरी दोस्ती किसी से नहीं। छोटा शहर होने के कारण लड़कों की लड़कियों से दोस्ती तो दूर उनसे बात करना भी नगर में चर्चा का विषय हो जाता था। अतः लड़कियां लड़कों से बात करने से बचती थी, बहुत ज्यादा ही आवश्यक होने पर एक-दो मिनट बात बड़ी मुश्किल से होती थी। इसी क्रम में घटनाक्रम चल रहा था। कक्षा एवं दैनिक जीवन के क्रियाकलापों को देखते हुए, सखी के मन में विश्वास के प्रति एवं विश्वास के मन में सखी के प्रति, बड़ा आदर सम्मान का भाव था लेकिन दोनों कभी बात नहीं करते थे। कभी-कभी आमना सामना हो भी जाए तो हल्की सी मुस्कुराहट, वह भी संकोच के साथ। महाविद्यालय में इन दोनों की सात्विकता, स्वभाव, व्यवहार एवं पढ़ने के चर्चे आम थे। उनके लिए दूसरे विद्यार्थी शर्त लगाते थे कि कौन ज्यादा अंक प्राप्त करेगा, विश्वास या सखी ? इन बातों से दूर, यह दोनों अपने ही कार्यों में लगे रहते थे, कोई प्रतिस्पर्धा नहीं वरन एक दूसरे के प्रति सद्भाव एवं सम्मान का भाव था। सखी, जिस मंदिर में पूजा करने के लिए जाती थी, उसी रास्ते पर विश्वास का घर था। कभी-कभी उनका आमना-सामना हो जाता था। यह दोनों दूर से ही एक-दूसरे को देख कर, नीचे गर्दन कर निकल जाते थे, दोनों आंखें भी नहीं मिलाते थे। महाविद्यालय के वार्षिकोत्सव में विश्वास में वाद-विवाद प्रतियोगिता में भाग लिया, उनके भाषण पर सखी ने सबसे ज्यादा तालियां बजाई थी और जब विश्वास ने प्रथम स्थान प्राप्त किया, तब सखी ने दौड़कर उनके पास जाकर उन्हें बधाई दी थी। शायद यह पहला अवसर था, जब दोनों ने खुलकर बात की। उस दिन से जब वे एक दूसरे को देखते थे, तो उनकी आंखों में चमक आ जाती थी और चेहरे पर एक हल्की सी मुस्कान देकर दोनों अपने अपने कार्य में लग जाते थे। कारण शहर छोटा था, उनकी एक गलती लोगों के बीच चर्चा का विषय बन सकती थी। दोनों अपनी मर्यादा भी जानते थे, अतः दोनों बहुत ही संयमित व्यवहार करते थे। सखी की एक सहेली थी- खुशी, उसने कई बार ऐसी कोशिश की कि विश्वास और सखी आपस में बात करें तथा उनकी दोस्ती हो जाए। वह इस कार्य हेतु दोनों को प्रेरित भी करती रहती थी, लेकिन दोनों अपने कार्यों में ही लगे रहते थे। देखते ही देखते परीक्षा आ गई, सखी के कठोर परिश्रम, निष्ठा एवं समर्पण को देखकर, विश्वास ने सोचा कि अगर वह ज्यादा लिखेगा और अगर उसे ज्यादा अंक आ जाएंगे तो कहीं सखी दूसरे नंबर पर ना आ जाए अतः वह अपना प्रश्न पत्र बिगाड़ देता है, परिणाम स्वरूप सखी प्रथम स्थान प्राप्त कर लेती है और विश्वास दूसरे स्थान पर आ जाता है, लेकिन विश्वास के चेहरे पर ऐसी चमक थी मानो उसने प्रथम स्थान प्राप्त किया हो। सखी यह बात समझ जाती है, उसका मन विश्वास के प्रति और अधिक आदर से भर जाता है । अगले वर्ष सखी यही कार्य करती है और विश्वास प्रथम स्थान प्राप्त करता है। देखते ही देखते अंतिम वर्ष भी समाप्ति की ओर चलता गया। दोनों में केवल औपचारिक बातचीत ही होती थी। परीक्षा हो गई दोनों अपने अपने जीवन में रम गए। रास्ते पर दोनों का कभी-कभी आमना-सामना हो भी जाता तो चेहरे पर हल्की मुस्कान, आंखों में चमक लेकिन नीचे गर्दन पर दोनों निकल जाते थे। यही क्रम चलता रहा। एक बार विश्वास के घर पर एक पारिवारिक कार्यक्रम था, जिसमें परिवार के सदस्यों के अलावा कोई और ना था। उस दिन विश्वास को न जाने क्या हुआ, वह सखी के घर गया एवं उसे अपने घर आने का निमंत्रण दिया। सखी भी तय समय से पहले ही विश्वास के घर पहुंच गई एवं दिनभर विश्वास के घर रही और बहुत दौड़-दौड़ कर कार्य किया। विश्वास के मन की हालत को शब्दों में बयां नहीं कर सकते, वह बहुत खुश था, मानो उसे संसार की सारी खुशी मिल गई हो। शायद उसे पहली बार महसूस हुआ कि सखी उसके लिए क्या स्थान रखती है और सखी के मन में भी उसके प्रति कितना अपनत्व है ? उस दिन के बाद विश्वास के जीवन में बहुत परिवर्तन आया, वह सुबह-शाम कुछ न कुछ सोचने लगा, वह किसी न किसी संशय में रहने लगा, उसकी हंसी, उसकी मुस्कान कहीं खो गई। विश्वास की बहन की सहेली निष्ठा, जो कि विश्वास को अपना छोटा भाई मानती थी एवं विश्वास की अच्छी दोस्त भी थी,उसके सामने विश्वास हमेशा सखी की बढ़ाई प्रशंसा किया करता था। जब विश्वास सखी की प्रशंसा करता था, तो वह उसके मुुख एवंं उसकी आंखों में देखा करती थी। उसने विश्वास के मन मे संशय को देखा और उसकी समस्या का हल करने की सोची। निष्ठा सखी के समाज की थी और दोनों मंदिर में मिलती थी, अतः एक दिन निष्ठा सखी को अपने घर लेकर आई और पूछा क्या तुम्हारे मन में विश्वास के प्रति कुछ है ?तुम विश्वास को किस रूप में देखती हो ? यह सुनकर सखी अवाक रह गई एवं अचंभित हो गई। वह एक शब्द भी नहीं बोल पाई, घबरा गई और कुछ नहीं बोलकर चली गई। निष्ठा ने विश्वास को बुलाकर सारी बात बताई। उसकी बात से विश्वास बहुत शर्मिंदा हुआ। उसके बाद उसने कभी सखी से नजर नहीं मिलाई। यदि वह सामने से आ भी जाती तो वह रास्ता बदल देता। इधर सखी ने एक निजी विद्यालय में शिक्षक के पद पर नौकरी कर ली, उस विद्यालय में उसके साथ एक साथी मनोज कार्य करता था, वह बाजार में आकर सखी की छवि खराब करने हेतु अपना संबंध, अपना नाम सखी के साथ जोड़कर बताता था। जब विश्वास को यह बात मालूम पड़ी तो उसने कहा कि जैसा कि मेरा नाम विश्वास है उतना ही विश्वास मुझे सखी के चरित्र और उसके स्वभाव पर है, और इस बात को लेकर विश्वास और मनोज में अच्छी-खासी बहस हुई। शायद यह पहला अवसर था जब किसी के लिए विश्वास ने किसी से बहस की। जो लड़का खुद के लिए कुछ नहीं बोलता था, उसने सखी के लिए बहस की। लगभग दो वर्ष बाद विश्वास बस से कहीं जा रहा था, उसी बस में सखी भी आई और विश्वास के पास वाली सीट पर बैठ गई। लगभग २ घंटे के सफर में दोनों में खूब बातें हुई। बस से उतर कर दोनों अपने-अपने रास्ते चले गए । शाम को जब विश्वास घर आया और बाजार गया, तब मनोज अपने दोस्तों से बात कर रहा था कि आज सखी उससे मिलने शहर गई थी और दिन में दोनों साथ थे। विश्वास आग बबूला हो गया और मनोज से उसकी अच्छी खासी बहस हुई। हालांकि बस की मुलाकात के बाद सखी और विश्वास की कोई बात नहीं हुई और ना कभी मुलाकात। कुछ समय पश्चात सखी की शादी हो गई और वह अपने बच्चों के साथ अपने जीवन में व्यस्त हो गई । इधर विश्वास नौकरी की तलाश में शहर चला गया । वहां उसकी भी शादी हो गई और वह भी अपने बीवी बच्चों के साथ अपने जीवन में रम गया। लगभग २० वर्ष पश्चात अचानक सखी को मालूम पड़ता है कि विश्वास जिस शहर में रहता है, वहां महामारी फैली हुई है, सखी घबरा जाती है, बड़ा शहर विश्वास जैसा सीधा-साधा व्यक्ति, कैसे गुजर- बसर कर रहा होगा ? उसकी खबर कैसे मिले ? उसका हाल कैसे जाने ? किससे पूछें ? सखी का मन कई शंकाओं से भर गया, लेकिन जैसा कि पहले बताया गया था कि वह हार मानने वाली लड़की नहीं थी, परिस्थितियों से लड़ना और उससे जीतना उसे आता था। “जहां चाह वहां राह”। लगभग २ महीने के कठिन परिश्रम से आधुनिक संचार के साधनों का प्रयोग कर, बिना किसी की मदद लिए, उसने विश्वास को ढूंढ निकाला। दोनों में बात हुई, दोनों की प्रसन्नता का ठिकाना नहीं रहा। सखी और विश्वास ने ढेर सारी बातें की। दोनों ने कभी नहीं सोचा था कि २० वर्ष पश्चात अचानक ऐसा वक्त आएगा कि दोनों में बात हो पाएगी, यह दोनों के मन में एक दूसरे के प्रति सद्भाव आदर एवं आत्मीयता ही थी कि जिस प्रकार मिट्टी में दबा हुआ बीज अंकुरित हो जाता है, वैसे ही दोनों ने एक दूसरे का हाल जाने एवं अचानक बातें होने लगी। वह कहते हैं – “ना दूर रहनेेे से रिश्ते टूूट जाते है, और ना पास रहने से रिश्तेे जुड़ जातेे हैं। यह तो एहसास के पक्केे धागे है, जो समय के साथ और मजबूत हो जाते हैं।” कहने का मतलब यही है कि महत्वपूर्ण यह नहीं है कि हम कितना समय किसी को दे रहे हैं? किसी से कितनी बातें कर रहे हैं? किसी के कितनेेे संपर्क में हैं? महत्वपूर्ण यह है कि हमने अपना जीवन कैसे जीया है? अगर आपका जीवन संयमित, आदर्शवादी, उच्च सिद्धांतों को लिए हो, तो जो दूर से भी आपके जीवन को देख रहा है, वह आप के प्रति सद्भाव रखेगा और आपकी कुशलता एवं समृद्धि हेतु प्रार्थना करेगा। जो रिश्ते निरपेक्ष रूप से दृष्टा बनकर आपके गुणों, आपके चरित्र, आपके स्वभाव, आपके व्यवहार, आपकी जीवनशैली, आपके क्रियाकलापों को देखकर निर्मित होते हैं, वह अटूट होते हैं और अमर होते हैं। अतः जीवन में हमेशा सादगी, सदाचार एवं सात्विकता को धारण करना चाहिए।

परिचय :-  डॉ. सर्वेश व्यास
जन्म : ३० दिसंबर १९८०
शिक्षा : एम. कॉम. एम.फिल. पीएच.डी.
निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश)
लेखन विधा : व्यंग्य, संस्मरण, कविता, समसामयिक लेखन
व्यवसाय : सहायक प्राध्यापक
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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