डॉ. पंकजवासिनी
पटना (बिहार)
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(अंँग्रेजी के पोस्टरों से सजे एक कार्यालय का दृश्य)
पहला कर्मचारी : ये सारे अंँग्रेजी के पोस्टर हटाओ और इनकी जगह सुंदर-सुंदर सूक्तियों से सजे हिंदी के पोस्टर लगाओ।
दूसरा कर्मचारी :क्यों-क्यों? इन्हें क्यों हटाएँ?
पहला कर्मचारी : अरे! तुम जानते नहीं, आज “हिंदी दिवस है… १४ सितंबर”! आज एक बहुत बड़ी अधिकारी मुख्य अतिथि के रूप में हमारे यहां हिंदी दिवस में भाग लेने आ रही हैं।
(दोनों मिलकर सारे अंग्रेजी के पोस्टर हटाकर उनकी जगह हिंदी के पोस्टर लगाते हैं)
दूसरा कर्मचारी: चलो अपने बाॅस से आज की तैयारी का निरीक्षण करवा लें।
(अधिकारी के साथ दोनों का प्रवेश)
अधिकारी : अरे वाह! तुम लोगों ने तो बहुत ही अच्छी तरह से सजा दिया है यहाँ! अब तो यहाँ का सारा परिवेश ही हिंदीमय हो गया है!! यह सब देख कर मुख्य अतिथि को यही समझेंगे कि यहाँ वर्ष भर सारे कार्य हिंदी में ही होते होंगे। चलो, अब प्रवेश द्वार पर चलें। मुख्य अतिथि आती ही होंगी। सारी तैयारी तो हो चुकी है। उनके आने भर की देर है! उनके आते ही कार्यक्रम शुरू कर दिया जाएगा।
तीसरा कर्मचारी : (इधर मंच पर) अरे! आज जरा हिंदी भाषा को भी सिंघासनारूढ़ कर दें! हिंदी भाषा की सुसज्जित मूरत को ससम्मान मंच के विशिष्ट सिंहासन पर बैठाता है !
(तभी दोनों कर्मचारी सहित अधिकारी का मुख्य अतिथि डॉक्टर एम. पुरोहित के साथ मंच पर प्रवेश और उनका स्वागत भाषण)
अधिकारी का भाषण : आदरणीय मुख्य अतिथि महोदय एवं मेरे प्यारे मित्रो! मैं अपनी संस्था के सभी कर्मचारियों की ओर से मुख्य अतिथि डॉक्टर एम. पुरोहित का हार्दिक अभिनंदन करता हूँ। (एक व्यक्ति द्वारा मुख्य अतिथि को बुके प्रदान किया जाता है)। साथ ही, हम उनसे प्रार्थना करते हैं की आज हिंदी दिवस के परम पुनीत अवसर पर वे अपने बहुमूल्य उद्गारों से हमें लाभान्वित करें।
मुख्य अतिथि का भाषण : आदरणीय राम चंद्र बाबू एवं उपस्थित विद्वान सज्जनो! आज का दिन बड़ा ही महत्वपूर्ण है। इसी दिन यानी १४ सितंबर, सन १९४९ ईस्वी में हमारे भारतीय संविधान में हिंदी भाषा को भारत गणराज्य की राजभाषा की गरिमामयी पदवी दी गई। सच पूछें तो हिंदी वाकई इस गरिमामयी पद पदवी की अधिकारी है। पराधीनता की बेड़ियों से मुक्ति पाने हेतु संघर्षरत संपूर्ण भारत को एक सूत्र में पिरोनेवाली गुरु गंभीर भाषा रही है हमारी हिंदी…. ऐसा गुरुदेव कवीन्द्र रवींद्रनाथ टैगोर ने कहा था। हम इसके उज्जवल भविष्य की कामना इस संकल्प के साथ करते हैं कि हम सभी अपने दैनिक जीवन में हिंदी का अधिकाधिक प्रयोग करेंगे।
जय हिंद! जय हिंदी!!
एक कर्मचारी माइक संभालता है।
मंच संचालक : बहुत बहुत धन्यवाद डॉ पुरोहित! हम आपकी उम्मीदों पर खरे उतरने की पूरी कोशिश करेंगे। अब आपके समक्ष श्री सुजीत पराशर हिंदी दिवस पर अपनी कविता लेकर प्रस्तुत हो रहे हैं आपके उच्च स्तरीय मनोरंजन के लिए।
सुजीत पराशर : विद्वद् मंडली के समक्ष ससम्मान मैं अपनी कविता देववाणी हिंदी के साथ प्रस्तुत हूँ ….
भाषाओं के नभ में शोभित
शशि-सम तेजस्विनी हिंदी
संस्कृत इसकी दिव्य जननी
यशश्विनी इ दुहिता हिंदी
राष्ट्र की संस्कृति-वाहक
भारत की सिरमौर हिंदी
सरस्वती वीणा से झंकृत
देववाणी है यह हिंदी
व्याकरण इस का वैज्ञानिक
परिष्कृत प्रांजल है हिंदी
हर अभिव्यक्ति में सक्षम सशक्त
सरल संप्रेषणीय हिंदी
स्वर-व्यंजनों से सुसज्जित
अयोगवाह अलंकृत हिंदी
रस छंद अलंकार से मंडित
बह चली सुर-सरिता हिंदी
विश्वस्तरीय औ कालजयी
साहित्य-सृजन-सक्षम हिंदी
तुलसी सूर मीरा निराला
के हृदय की रानी हिंदी
हिंद की साँस में बसती यह
जन जन की प्यारी हिंदी
कश्मीर से कन्याकुमारी
श्वास-श्वास-बसी हिंदी
बहुभाषा भाषी हैं हम, तो
सबको मान देती हिंदी
सभी भाषाओं को एक ही
सूत्र में पिरोती हिंदी
दोनों ही बाँहें फैलाए
सभी को अपनाती हिंदी
अंँग्रेजी उर्दू सब बोली को
बिन दुर्भावना वरे हिंदी
सबकी है यह राज दुलारी
मन पर राज करती हिंदी
सबके मन को भाती है यह
गुड़-सी मीठी लगे हिंदी
सबकी है आत्मीया बड़ी
धमनियों में बसी इ हिंदी
हिंदी है उत्थान देश का
राष्ट्र का कल्याण हिंदी
हमें गौरव दिलायगी यही
हमारी त पहचान हिंदी
अति स्वर्णिम है इसका भविष्य
विश्व पाँव पसारे हिंदी
आज देश विदेश में चहुँदिशि
डंका बजा रही इ हिंदी
भारत-भाल की दीप्त बिंदी
भाषा-गौरव-शिखर हिंदी
विश्व की भाषा में पा गई
सर्व प्रथम स्थान हिंदी
विश्व पटल किए आच्छादित
पा रही भव-प्यार हिंदी!!
धन्यवाद! जय हिंद!! जय हिंदी!!!
मंच संचालक : धन्यवाद सुजीत जी! आपने बहुत ही सुंदर, सारगर्भित, गरिमामयी और अभिनंदनीय कविता का हम सभी को आस्वादन कराया।
अब हमारे समक्ष विमलेश जी अपनी एक छोटी सी कविता प्रस्तुत करने जा रहे हैं! विमलेश जी का मंच पर स्वागत।
विमलेश जी : सभी का हार्दिक अभिनंदन!
मैं आपके समक्ष एक आह्वान-कविता प्रस्तुत करने जा रहा हूँ…
सुनो भारत के हुक्मरानो !
हृदय से अपनाओ हिंदी
बिन निजभाषा अभिमान बिना
शासन में न होगी हिंदी
राष्ट्र गूंँगा होगा हिंद
जो न आज्ञा भाषा हिंदी
शत्रुओं की बातों में आकर
हीनता से देखें हिंदी
षड्यंत्रों को समझ ना पाय
अंग्रेजी घन वरे तज हिंदी
रोको सभी, अब ये मूर्खता
देश का स्वाभिमान हिंदी
भारतेंदु की बात है मूल
निजभाषा मिटाय हिय-शूल!
धन्यवाद! जय हिंद!! जय हिंदी!!!
मंच संचालक : बहुत-बहुत धन्यवाद विमलेश जी! आपने अपनी सुंदर, यथार्थपरक कविता से हमें प्रबोधित किया।
साथ ही, आज के कार्यक्रम की समाप्ति की विधिवत घोषणा करने के पूर्व आज के आदरणीय मुख्य अतिथि को हार्दिक साधुवाद देता हूँ कि उन्होंने अपना बहुमूल्य समय निकालकर हमारे कार्यक्रम की शोभा में चार चांँद लगाया। हम कृतज्ञ हैं अपने उन सभी सहयोगियों के प्रति भी जिन्होंने आज के हिंदी दिवस के सफलतापूर्ण आयोजन में प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से हमारा सहयोग किया।
जय हिंद! जय हिंदी!!
(एक कर्मचारी द्वारा अपने अधिकारी के कान में मुख्य अतिथि के जलपान की व्यवस्था की सूचना दी जाती है और वे दोनों उठ कर वहाँ से चले जाते हैं।)
दूसरा कर्मचारी : बड़ी बेरुखी भरी आवाज में कहता है : चलो सारा तमाशा खत्म हुआ! हटाओ इन पोस्टरों को!! (हिंदी पोस्टरों को हटाते हुए) वह हिंदी भाषा बनी प्रतीक के पास जाता है और उसे कुर्सी से उठाकर यह कहते हुए धकेल देता है….
चलो भागो यहाँ से….. अब तुम्हारा भी महिमामंडन खत्म हुआ !
और अपने दुर्भाग्य पर सिसकती हुई रह जाती है हिंदी !!
: पटाक्षेप :
परिचय : डॉ. पंकजवासिनी
सम्प्रति : असिस्टेंट प्रोफेसर भीमराव अम्बेडकर बिहार विश्वविद्यालय
निवासी : पटना (बिहार)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।
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