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जब आता है श्राद्ध

दामोदर विरमाल
महू – इंदौर (मध्यप्रदेश)

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जब आता है श्राद्ध, तभी दिखते है श्रद्धा भाव।
जीते जी खिलाया नही, अब कहते हो खाओ।
ढूंढ़न से मिलते नही, करते कौए कांव कांव।
मिलते भी है एक दो, तो सुनते नही बुलाव।
समझो उनके अंदर है, उन पूर्वजो का ठांव।
वो देख आज पछता रहे, जो दिए आपने घाव।
चाहते थे वो आपसे, केवल श्रद्धा और भाव।
रखो हमेशा पास उन्हें, तुम रहो शहर या गांव।
घर का मुखिया था कभी, उनका सबसे लगाव।
वो घर मे दबके रहा, पड़ना था जिनका दबाव।
अब तुम मेरे हिस्से का, कौओं को ना खिलाओ।
खुदको समझो कौआ, और खुद बैठे बैठे खाओ।
करो ना बातें बड़ी बड़ी, मत झूठा प्यार दिखाओ।
जो रहते बृद्धाश्रम में, अब उनको भोज कराओ।
पछतावा करने में अब, समय ना और गंवाओ।
कहीं दान तो कहीं कहीं पर, हरा वृक्ष लगाओ।
समय के रहते तुम करो, पितरों का रख रखाव।
आशीर्वाद स्वरूप तुम्हें वो दे जाए चन्द्रमा छांव।
तर्पण श्राद्ध तो केवल भ्रम, है बुद्धि का अभाव।
ईश्वर से भी बड़ा है उनका मन वचन व स्वभाव।
जब आता है श्राद्ध, तब दिखते श्रद्धा भाव।
जीते जी खिलाया नही, अब कहते हो खाओ।

परिचय :- ३१ वर्षीय दामोदर विरमाल पचोर जिला राजगढ़ के निवासी होकर इंदौर में निवास करते है। मध्यप्रदेश में ख्याति प्राप्त हिंदी साहित्य के कवि स्वर्गीय डॉ. श्री बद्रीप्रसाद जी विरमाल इनके नानाजी थे। हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक २०२० राष्ट्रीय सम्मान एवं आपके द्वारा अभी तक कई कविताये, मुक्तक, एवं ग़ज़ल व गीत लिखे गए है, जो आये दिन अखबारों में प्रकाशित होते रहते है।  गायन के क्षेत्र कराओके गीत गाने में आप खासी रुचि रखते है।
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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