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रात-रात भर

डॉ. कामता नाथ सिंह
बेवल, रायबरेली

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रात-रात भर जगते रहना
भी है बुरी बला !!

एक छौंछियाहट-सी
बनी हुई क्यों रहती है,
किर्च-किर्च शीशे सी
व्यथा कथानक कहती है;

पल-पल यूँ ही दहते रहना
भी है बुरी बला !!
रात-रात भर जगते रहना
भी है बुरी बला !!१!!

कचनारों-से बिम्ब उभरते
मौसम, बेमौसम,
मन में सौ तूफान मचलते
रहते हैं हरदम;

भितरमार यूँ सहते रहना
भी है बुरी बला!
रात-रात भर जगते रहना
भी है बुरी बला!!२!!

मन, अनन्त के अन्त तलक
उसकी राहें ताके,
जिसने मीठी सुधियों तक के
बन्द किये नाके;

सपनों में यूँ बहते रहना
भी है बुरी बला!!
रात-रात भर जगते रहना
भी है बुरी बला !!३!!

अब कोई कौतूहल नहीं
कहानी-किस्से में,
ठहरी झीलों के जल-सा
जीवन है हिस्से में;

इससे, उससे कहते रहना
भी है बुरी बला !!
रात-रात भर जगते रहना
भी है बुरी बला !!४!!

परिचय :- डॉ. कामता नाथ सिंह
पिता : स्व. दुर्गा बख़्श सिंह
निवासी : बेवल, रायबरेली
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।


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