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पगली

माधवी मिश्रा (वली)
लखनऊ

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मैने उसे स्कूटर पर बैठाया और मुर्गीफार्म का पता पूछते परसुराम मन्दिर पहुच गयी। ये वही जगह थी जहाँ से मै उसे लेकर घर गयी थी। वापस लाते हुए उसकी मूक व्यथा का अनुमान लगाना एक भयावह कल्पना सी लगी वह नही जाना चाह्ती थी मेरा घर छोड़ किन्तु एक क्रूर निर्मम सामाजिक संरचना की अंग होने के कारण मुझे ये अपराध करना ही पडा। कुछ देर तक तो मुझे स्वयं पर ग्लानि की अनुभूति होती रही। सोचती रही की मै उसे ले ही क्यो गयी जब रख पाना कठिन था किन्तु ऐसा नहीं जब मैं अकेले इतने बड़े-बड़े निर्णय लेती हूँ तो ये निर्णय भी किसी के आदेश से थोड़े ही लेना था अतह ले गयी। एक गरीब दुखी भूखी प्यासी माँ के अंदर की चीत्कार ने मुझे हिला के रख दिया था। मैं सोचती गयी, सोचती गयी, पण्डित जी से मैने मन्दिर पर दुर्गा नवमी का हवन कराने के बाद किसी घरेलू नौकरानी दिलाए जाने की बात को कहा तो उन्होने थोड़ी दूर मन्दिर के प्रांगण मे बैठी एक विक्षिप्त सी स्त्री की तरफ कनखियों से इशारा कर ले जाने को कहा। मै उसके पास गयी। उस बूढ़ी औरत ने एक दर्द और कराह युक्त ठहाका लगाया फिर शान्त होकर स्वयं ही बुद बुदायी भूखे मर जाने से अच्छा है की पगली किसी अच्छे घर मे बरतन झाड़ू पोछे का ही काम कर लेगी। मै उसकी गंदी संदी बद्बूदार रूप रेखा देख विचलित हो रही थी। उम्र भी तो काम करने लायक नही थी। एक बार को उसे देख द्रवित हो सोचती चली गयी ७० से ८० के बीच की उम्र तो सिर्फ बिस्तर पर पड़े रहने की होती है, मैं इसे क्यों ले जाऊँ। किन्तु उसके शरीर की पीडा और पेट की भूख मेरे शरीर व मन मे उतर चुकी थी।
मैने उसे नर्म हाथों से सहलाते हुए कन्धे को छुआ और प्यार से पूछा चलोगी चाची, कुछ काम कर पाओगी? वह पण्डित जी की ओर देखती हुई बोली हम झाड़ू पोछा कर लेते हैं। मन्दिर मे हमी धोएंन है, मुझे लगा इनकी अंतरआत्मा कितनी पवित्र है, इसने तो उन्हे भी क्षमा कर दिया होगा जिन्होने इसे मन्दिर की शरण लेने को विवश कर दिया। किन्तु मुझे उसके आन्तरिक दुर्बलता का भी पता चल हुका था और मैं एक गुप्त परोपकार की भावना से सराबोर उसे साथ ले जाने को आतुर हो चुकी थी। इन्ही बातो का चिन्तन करते उसकी सारी बाते मस्तक मे गूंजने लगीं। मेरे पूछने पर की चाची आप के घर कौंन कौंन है? उसने बताया माँ, बाप, पति को छोड कर सब कोई। पुनः प्रश्न किया मैने फिर आप ऐसी बुरी स्थिति मे क्यों रहती हैं? बोली हमारा मन। मुझे उसके बेढंगे उत्तर पर कोई आश्चर्य नही हुआ क्योंकि उसके बारे मे पता चल चुका था की वह पगली है।

परिचय :- माधवी मिश्रा (वली)
जन्म : ०२ मार्च
पिता : चन्द्रशेखर मिश्रा
पति : संजीव वली
निवासी : लखनऊ
शिक्षा : एम.ए, बीएड, एलएल बी, पीजी डी एलएल, पीजीडीएच आर, एमबीए,।
प्रकाशन : तीन पुस्तकें प्रकाशित अनेक साझा संकलन, काव्य, लेख, कहानी विधा पत्र पत्रिकाओं रेडियो दूरदर्शन पर-प्रकाशन, प्रसारण,अनेक सामाजिक संस्थाओं व संगठनो मे सह भागिता। समाज सेवा
सम्प्रति : वर्तमान मे अंग्रेजी माडल स्कूल की प्रधान शिक्षिका।
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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