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जिंदगी

पवन जोशी
रामगढ़- महूगांव महू (म. प्र.)

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नदी सी है ज़िंदगी,
बह रही है बहने दे।
मोड़ है चढ़ाव है उतार है,
बहाव है तो बहने दे।।

आज जी,
तु कल को कल पे छोड़ दे।
जीतले अतित को,
इक नया तु मोड़ दे।।

शुन्य हो जरा
हां ढीठ बन।
तु खुद से खुद
का मीत बन।।

लोक लाज रहने दे लानते
कह रही है कहने दे।
नदी सी है ज़िंदगी,
बह रही है बहने दे।।

है तय जीत हार तो
बस जूझना तो है।
खुद जवाब है
तु हर सवाल का
फिर भी बूझना तो है।।

व्यर्थ लगे भले,
तु कुछ नियति की
योजना तो है।
दर्पणो सा हो
घर तेरा क्या
पर खुद मे खुद को
खोजना तो है।।

कुछ बची
राख मे तपन अभी
ढक रही है रहने दे।
नदी सी है ज़िंदगी,
बह रही है बहने दे।।

क्या खुद बुना था
तन नहीं।
मिटा सकूं वो हक
पवन नहीं।।

स्थिति परिस्थिति
सदा सब के संग एक सी
रही।
बस सुरतें सीरतों के सगं
वक्त पे बदलती रही।

हुआ सिकंदर वही
जो उससा उसमे ढला।
मनो जीत के
रगंमचं वो फिर से चला।।

आस जीत की
जगी तक अभी,तो जगने दे।
नदी सी है ज़िंदगी,
बह रही है बहने दे।।

परिचय : पवन जोशी
निवासी : रामगढ़- महूगांव महू (म. प्र.)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।


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