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टीस उभरती है

डॉ. कामता नाथ सिंह
बेवल, रायबरेली

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अंखुवाये सपने
मरते,
मन ऊसर,
परती है।
रह रहकर
चुभती है
कोई टीस
उभरती है।।

सदियों का
नदियों-सा
नाता
सुविधाओं से है,

बढ़ी चाहतों का
रिश्ता
सौ दुविधाओं
से है;

जाने क्या-क्या
सह जाती
भावों की
धरती है।।
रह-रहकर
चुभती है,
कोई टीस
उभरती है।।

प्रकृति
अछूती
कन्या जैसी,
छेड़े
पाप करे,
सौ आपदा
निमंत्रित करके
अपने आप
मरे।

बादल में
सागर-तल
की ही पीर
उबरती है ।।
रह-रहकर
चुभती है
कोई टीस
उभरती है।।

परिचय :- डॉ. कामता नाथ सिंह
पिता : स्व. दुर्गा बख़्श सिंह
निवासी : बेवल, रायबरेली
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।


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