Thursday, November 7राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर आपका स्वागत है... अभी सम्पर्क करें ९८२७३६०३६०

टीस उभरती है

डॉ. कामता नाथ सिंह
बेवल, रायबरेली

********************

अंखुवाये सपने
मरते,
मन ऊसर,
परती है।
रह रहकर
चुभती है
कोई टीस
उभरती है।।

सदियों का
नदियों-सा
नाता
सुविधाओं से है,

बढ़ी चाहतों का
रिश्ता
सौ दुविधाओं
से है;

जाने क्या-क्या
सह जाती
भावों की
धरती है।।
रह-रहकर
चुभती है,
कोई टीस
उभरती है।।

प्रकृति
अछूती
कन्या जैसी,
छेड़े
पाप करे,
सौ आपदा
निमंत्रित करके
अपने आप
मरे।

बादल में
सागर-तल
की ही पीर
उबरती है ।।
रह-रहकर
चुभती है
कोई टीस
उभरती है।।

परिचय :- डॉ. कामता नाथ सिंह
पिता : स्व. दुर्गा बख़्श सिंह
निवासी : बेवल, रायबरेली
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।


आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर अणु डाक (मेल) कीजिये, अणु डाक करने के बाद हमे हमारे नंबर ९८२७३ ६०३६० पर सूचित अवश्य करें …🙏🏻

आपको यह रचना अच्छी लगे तो साझा जरुर कीजिये और पढते रहे hindirakshak.com राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच से जुड़ने व कविताएं, कहानियां, लेख, आदि अपने चलभाष पर प्राप्त करने हेतु हिंदी रक्षक मंच की इस लिंक को खोलें और लाइक करें 👉 👉 hindi rakshak manch  👈… हिंदी रक्षक मंच का सदस्य बनने हेतु अपने चलभाष पर पहले हमारा चलभाष क्रमांक ९८२७३ ६०३६० सुरक्षित कर लें फिर उस पर अपना नाम और कृपया मुझे जोड़ें लिखकर हमें भेजें..

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *