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परछाई

रवि कुमार
बोकारो, (झारखण्ड)

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सुकून की तलाश मे
अकेले चल पड़े थे हम,
ना कोई आगे नजर आए
ना कोई पिछे।
नजर आती तो बस
एक लम्बी सी सड़क
जो मिलो तक फैली है,,
लगने लगा मानो सबने
साथ छोड़ दिया हो मेरा
जैसे सुकून की तलाश में
गुमनाम हो बैठे खुद से।
समय ढलने को आया
तलाशी जारी थी मेरी,
सुकून तो मिला नही पर
मिला कोई हमसफर,
चल रहा था साथ मेरे
मेने पुछा कोन हो आप?
विनम्रता से बोलीं…परछाई।।
परछाई है हम।।

परिचय : रवि कुमार
निवासी – नावाड़ीह, बोकारो, (झारखण्ड)
घोषणा पत्र : यह प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है।\


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