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हे राम!

मनोरमा पंत
महू जिला इंदौर म.प्र.

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हे राम!
मर्यादा सिखाने क्यों अवतार लिया
इस धरा पर?
क्यों महामानव बने तुम, क्यों हर समय
त्याग मूर्ति बने रहे ?
क्यों विमाता की अनुचित माँग
का नहीं किया प्रतिकार
इक्ष्वाकु वंश की मर्यादा का,
निरन्तर करते रहे निर्वाह
अहिल्या मारिच, गरूड़ सबका
उद्धार करते रहे,
असुरो को मार मुनियों को
जीवन दान देते रहे
केवल लोक निंदा के कारण किया
अपनी प्राण प्रिया का त्याग

एक अँगुली उठने पर,
सीता ने किया अग्नि दाह
यह सब करते सहते तुम
बन गये स्वयं पत्थर,
जिसमें था
एक रक्तरंजित मन
तुम तो साधारण जन की तरह
रो भी नहीं सकते थे,
खुद की कोई इच्छा भी
पूरी नहीं कर सकते थे
हे राम! तभी तो बन सके
तुम मर्यादा पुरूषोत्तम।

परिचय :-  श्रीमती मनोरमा पंत
सेवानिवृत : शिक्षिका, केन्द्रीय विद्यालय भोपाल
निवासी : महू जिला इंदौर
सदस्या : लेखिका संघ भोपाल जागरण, कर्मवीर, तथा अक्षरा में प्रकाशित लघुकथा, लेख तथा कविताऐ
उद्घोषणा : यह प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है।

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