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मैं हूँ सुदामा तो मैं ही कृष्ण हूँ

अभिषेक शुक्ला
सीतापुर (उत्तर प्रदेश)
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मैं हूँ सुदामा तो मैं ही कृष्ण हूँ
मेरा मित्र सखा तो मैं ही स्वयं हूँ,
मैं हूँ सुदामा तो मैं ही कृष्ण हूँ।
मैं ही सुख-दुख का संयोग हूँ,
मैं हूँ मिलन तो मैं ही वियोग हूँ।
मैं माँ की ममता-सा शान्त हूँ,
मैं ही द्रोपदी का अटूट विश्वास हूँ।
मैं प्रलय का अन्तिम अहंकार हूँ,
मैं ही भूत, भविष्य और वर्तमान हूँ।
मैं नित्य ही प्रभु का वन्दन करता हूँ,
परिश्रम से स्वेद को चंदन करता हूँ।
विपरीत परिस्थितियों में हिम्मत रखता हूँ,
जुनून से अपने उनका सामना करता हूँ।
जब कभी कुण्ठा अत्यधिक व्याप्त होती है,
अन्तर्मन में सुदामा से मुलाकात होती है।
स्वयं ही स्वयं से स्वयं का आकलन करता हूँ,
स्वयं सुदामा बन कृष्ण का अभिनंदन करता हूँ।
अपनी परिस्थितियों का मैं ही कर्णधार हूँ,
मैं हूँ पुष्प तो मैं ही तीक्ष्ण तलवार हूँ।
मेरा मित्र सखा तो मैं ही स्वयं हूँ।
मैं हूँ सुदामा तो मैं ही कृष्ण हूँ।।

परिचय : अभिषेक शुक्ला
निवासी : सीतापुर (उत्तर प्रदेश)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।


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