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गुरु

दिनेश शर्मा ‘डीन सा’
भीलवाड़ा (राजस्थान)

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गुरु है तो हर मार्ग सुगम है
गुरु बिन ये जीवन दुर्गम है।
पाया है जो सब कुछ हमने
कर्म समर्पित सारे सपने।
दाता गुरु के सिवा कौन है
जग में गुरु सम ओर कौन है।

ईश्वर के अवतार श्रेष्ठ भी
राम कृष्ण से धर्म स्थापक।
गुरु के बिना नही सम्भव था
बन सकते दनुज कुल घातक।
आरुणि, उपमन्यु, एकलव्य
चन्द्रगुप्त से शिष्य महान।
धौम्य, द्रौण, चाणक्य ही थे
गुरुवर इनके श्रेष्ठ महान।

गुरु ‘समर्थ’ की कृपा से ही
शिवा हुए युद्ध प्रवीण।
लौटाया गौरव भारत का
मुगलो ने जो किया था क्षीण।
रामकृष्ण की ज्ञान भक्ति का
फैला अनुपम तेज पुनीत।
बन कर विश्व शांति की वाणी
विवेकानंद बने नवनीत।

अपने सिख को बिना मोल के
स्वार्थ त्याग सर्वस्व समर्पण।
दीन हीन की सेवा में रत
जीवन जीना जो सिखलाता।
ऐसे गुरु के चरणों मे ही
यह सारा त्रिलोक समाता।

भारत देश यह पावन अपना
गुरु शिष्य की अनोखी रीत।
वंदन करता यह जग सारा
इसके रज कण में पुनीत।
विश्व गुरु के सिंहासन पर
फिर इसको आरूढ़ करे।
स्व सँस्कृति स्व सभ्यता का
पुनः आचरण गान करे।

परिचय :- दिनेश शर्मा ‘डीन सा’
शैक्षिक योग्यता : स्नातकोत्तर (हिंदी, राजस्थानी), राष्ट्रीय पात्रता परीक्षा (UGC -NET) (हिंदी राजस्थानी), राज्य पात्रता परीक्षा (RAJSTHAN-SET) – हिंदी
सम्प्रति : प्राध्यापक (राजकीय सेवा) -हिंदी
निवासी : शास्त्रीनगर, भीलवाड़ा (राजस्थान)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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