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रायता

विजय गुप्ता
दुर्ग (छत्तीसगढ़)

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कार्यगति का नहीं ठिकाना, बातें ज्यादा कर जाते हैं
रायता आजकल खाते कम, ज्यादा ही फैलाते हैं।

अभिमान दिलों में ज्यादा है, विरोध भाव समाया है
समूह संगठन शक्ति को ही, गर्त में पहुंचाया है
अकूत धन दौलत बल से, होशियारी जताते हैं
रायता आजकल खाते कम, ज्यादा ही फैलाते हैं।

आत्म प्रशंसा आदत से, खुद को खुश रखवाना है
थोड़ी बदनामी भी सहकर, नाम बड़ा चलवाना है
नुकसानी की हो क्या चिंता, तुच्छ कर्म दिखलाते हैं
रायता आजकल खाते कम, ज्यादा ही फैलाते हैं

बॉलीवुड क्या राजनीति में, रिश्ते गहन ही देखे हैं
राष्ट्रीय अंतराष्ट्रीय डॉन, संपर्कों से लपेटे हैं
कथा मीडिया कितना गाये, रोज बदलती बातें हैं
रायता आजकल खाते कम, ज्यादा ही फैलाते हैं।

एक डांटे तो दूजा सुनता, नीचापन दिख जाता है
भारी सभाओं के नाटक में, कॉलर ऊंची करता है
साथी को कलंक परोसकर, निज शोभा पा जाते हैं।
रायता आजकल खाते कम, ज्यादा ही फैलाते हैं।

नारद मुनि हैं श्रेष्ठ तपस्वी, वार्ता बहुत कराते थे
सुधारें अक्सर बिगड़े काम, बिना बुलावा जाते थे
अब विजय राह से भटकाते, नारदगिरी चलाते हैं
रायता आजकल खाते कम, ज्यादा ही फैलाते हैं।

गौ उत्पाद वस्तुओं में रायता, अच्छा भाव जतलाना है
है पाचन तंत्र में सहयोग, गौ का मान बढ़ाना है
कहावत चलन वर्तमान में, अर्थ समझ ना पाते हैं
रायता आजकल खाते कम, ज्यादा ही फैलाते हैं।
कार्य गति का नहीं ठिकाना, बातें ज्यादा कर जाते हैं।

परिचय :- विजय कुमार गुप्ता
जन्म : १२ मई १९५६
निवासी : दुर्ग छत्तीसगढ़

उद्योगपति :१९७८ से विजय इंडस्ट्रीज दुर्ग
साहित्य रुचि : १९९७ से काव्य लेखन, तत्कालीन प्रधान मंत्री अटल जी द्वारा प्रशंसा पत्र
काव्य संग्रह प्रकाशन : १ करवट लेता समय २०१६ में, २ वक़्त दरकता है २०१८
राष्ट्रीय प्रशिक्षक : (व्यक्तित्व विकास) अंतराष्ट्रीय जेसीस १९९६ से
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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