विजय गुप्ता
दुर्ग (छत्तीसगढ़)
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अपने दिल में जो पीड़ा सहते हैं, किसी को भनक नहीं लगने देते, वे बधाई के पात्र हैं क्योंकि बारिश में आंसू छिप जाते हैं, केवल हंसी दिखती है। मैंने इसी चिंतन को काव्य रूप दिया है।
अंतर्मन की पीड़ा वालो संघर्ष बल की बधाई
बारिश में आंसू छिपे, देती बस हंसी दिखाई।
कष्ट छिपाकर जीनेवालों की कमी नहीं
बचपन की बातें ठीक तरह से याद नहीँ
चाह नहीं किसी खिलौने की जो दिखा कहीं
पानी में कागज नाव चलाना भाव सही
विवशता में जादू सी लिप्त धैर्य दवाई
एक चॉकलेट ही माखन मिश्री और मलाई
बारिश में आंसू छिपे, देती बस हंसी दिखाई
अंतर्मन की पीड़ा वालो, संघर्ष बल की बधाई।
बालपन की जिद तो खुद कृष्ण भी करते
सुलभ सहज विचित्र कार्य शौक से करते
परीक्षा में अव्वल बच्चे जब स्वयं ही बनते
छात्रवृत्ति पाने की खुशियों को साझा करते
उन बच्चों की कभी दिखती नहीं पढ़ाई
जिद्दी स्वभाववश हो जाती कभी खिंचाई
बारिश में आंसू छिपे देती बस हंसी दिखाई
अंतर्मन पीड़ा वालो संघर्ष बल की बधाई।
एकाकी जीवन में बस देखे मात-पिता
अटूट श्रम बदौलत जो खोजें भाग्य पता
कुछ पाषाण हृदय कर जाते अक्षम्य खता
लेते मजा वो कर्मठता को ही सता-सता
बस अहम स्वार्थ नीच पृवृत्ति भरी लड़ाई
पर मोरपंख धारी सिर चढ़कर करे समाई
बारिश में आंसू छिपे देती बस हंसी दिखाई
अंतर्मन की पीड़ा वालो संघर्ष बल की बधाई।
सीमा से ज्यादा दबाव कभी सहन करे
निज तप श्रम साधन से वो जतन करे
बातों की कड़वाहट उर में ही वहन करे
अनसोची खुशियों को नित नमन करे
खुशियों का सबूत नहीं और दर्द सच्चाई
कर्मशील की जैसे कर्म संग हुई सगाई
बारिश में आंसू छिपे, देती बस हंसी दिखाई
अंतर्मन की पीड़ा वालो संघर्ष बल की बधाई।
कृषि वरदानी योजना से फसल लहलहाए
सच्चे सेवा सत्कर्मी बीमार को सहलाये
निज ताकत पाई दौलत से परिवार चलाए
और पारखी नजरों से रिश्ते व दोस्त बनाए
दुर्घटना में बचना आशीर्वाद की सही कमाई
देखनेवाले तो देखते उसमें भी कोई बुराई
बारिश में आंसू छिपे देती बस हंसी दिखाई
अंतर्मन की पीड़ा वालों संघर्ष बल की बधाई।
चेहरा हँसमुख छलके दर्द गहन आंखों पे
जीवन रेल चली फिर भी यथेष्ट पांतों पे
भला बनके कोई कुदृष्टि जमाये घातों पे
पीएच. डी. डिग्री पाना कठिन इन नातों पे
अपराध बोध का इल्म करते नहीं कसाई
बारिश और भगाने से अधूरी रहे सिंचाई।
बारिश में आंसू छिपे, देती बस हंसी दिखाई
अंतर्मन की पीड़ा वालो संघर्ष बल की बधाई।
जो अच्छा हो जीवन में वो करना होता
बस अपना भला चाहे, अन्य पीड़ा ढोता
धृष्ट प्रदर्शन का ही मानो बीड़ा होता
भाग्य विधाता का निर्णय सच्चा होता
कारण क्यों बने जीवन में हो जग हंसाई
चोरी कटुता अपमान मरण ने बात बताई
बारिश में आंसू छिपे, देती बस हंसी दिखाई
अंतर्मन की पीड़ा वालो संघर्ष बल की बधाई।
रिश्तों में अति निकटता भी बाधक मानो
सामान्य व्यवहारी ढंग में नासमझी ठानो
समन्वय दृष्टिकोण पड़ा हो चारो खानों
मीठा गन्ना कोल्हू में नाश कराए जानो
कुछ खोने की भय बाधा हृदय नहीं बसाई
निज हाथों को स्वयं ताल्लुक डोर थमाई
बारिश में आंसू छिपे, देती बस हंसी दिखाई
अंतर्मन की पीड़ा वालो, संघर्ष बल की बधाई।
परिचय :- विजय कुमार गुप्ता
जन्म : १२ मई १९५६
निवासी : दुर्ग छत्तीसगढ़
उद्योगपति :१९७८ से विजय इंडस्ट्रीज दुर्ग
साहित्य रुचि : १९९७ से काव्य लेखन, तत्कालीन प्रधान मंत्री अटल जी द्वारा प्रशंसा पत्र
काव्य संग्रह प्रकाशन : १ करवट लेता समय २०१६ में, २ वक़्त दरकता है २०१८
राष्ट्रीय प्रशिक्षक : (व्यक्तित्व विकास) अंतराष्ट्रीय जेसीस १९९६ से
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।
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