Friday, November 22राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर आपका स्वागत है... अभी सम्पर्क करें ९८२७३६०३६०

बीत गये कितने दिन

डॉ. कामता नाथ सिंह
बेवल, रायबरेली

********************

बीत गये
जाने कितने दिन,
बिन खुद से
बतियाये बोले।।

मन में कुछ आना,
कुछ कहना,
फिर अपने में
दहते रहना,

वृश्चिक-दंश
कभी अपनों,
अपने जैसों का
सहते रहना,

रोम-रोम
रिस-रिसकर
सबके जीवन में
अमृतरस घोले।।

बीत गये
जाने कितने दिन,
बिन खुद से
बतियाये, बोले ।।

एक पांखुरी
खिलने से
झरने तक
कितनों को क्या देती,

कितने पुण्य
बांटती फिरती है
संगम की पावन रेती,

गुणा गणित
या जोड़ घटाना
फ़ुरसत कहां
कि नापे तोले।।

बीत गये
जाने कितने दिन,
बिन खुद से
बतियाये, बोले।।

जब-तब
नेह भरी आंखों से,
कितने सपने
झर जाते हैं,
जिम्मेदारी की
लू से
अंखुवाये सपने
मर जाते हैं,

बिना समय की मर्जी
कब
अपनी मर्जी से
हीले डोले।।

बीत गये
जाने कितने दिन,
बिन खुद से
बतियाये, बोले।।

परिचय :- डॉ. कामता नाथ सिंह
पिता : स्व. दुर्गा बख़्श सिंह
निवासी : बेवल, रायबरेली
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।


आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीयहिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर अणु डाक (मेल) कीजिये, अणु डाक करने के बाद हमे हमारे नंबर ९८२७३ ६०३६० पर सूचित अवश्य करें … और अपनी कविताएं, लेख पढ़ें अपने चलभाष पर या गूगल पर www.hindirakshak.com खोजें…🙏🏻

आपको यह रचना अच्छी लगे तो साझा जरुर कीजिये और पढते रहे hindirakshak.com राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच से जुड़ने व कविताएं, कहानियां, लेख, आदि अपने चलभाष पर प्राप्त करने हेतु राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच की इस लिंक को खोलें और लाइक करें 👉🏻  hindi rakshak manch 👈🏻 … राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच का सदस्य बनने हेतु अपने चलभाष पर पहले हमारा चलभाष क्रमांक ९८२७३ ६०३६० सुरक्षित कर लें फिर उस पर अपना नाम और कृपया मुझे सदस्य बनाएं लिखकर हमें भेजें…

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *