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जाने क्यों

रुचिता नीमा
इंदौर म.प्र.

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जाने क्यों ऐसे हो रहे है लोग
जाने क्यों ऐसे हो रहे है लोग
कि समझना ही नहीं चाहते खुद को,
या फिर बन्द कर लेते है आंखों को
देखकर भी नादान बने रहते है
आजकल लोग जाने क्यों ऐसे हो रहे….?

कोई गलत कर रहा, उसे करने दो….
कभी मन्दिर के नाम पर,
कभी मस्जिद के नाम पर,
बेवज़ह मुद्दों को खींचकर,
बस अपनी रोटी सेंक रहे है लोग

न धर्म बच रहा, न ईमान बच रहा….
अब तो ऐसा लग रहा कि
कहा इंसान बच रहा….?

बिक रहे बाजार में
जानवर भी, इंसान भी
और ईमान तो बहुत सस्ता बिक रहा….
जाने क्यों ऐसे हो रहे है लोग….?

यहाँ हर चीज की बोली लग रही….
शरीर का हर अंग तक अब बिक रहा….
लेकिन फिर भी जीवन का मोल खो गया,
जो छोटी छोटी बातों पर जान गवाने लग गए है लोग….
जाने क्यों ऐसे हो रहे है लोग….?

क्या इनकी तन्द्रा भी कभी टूटेगी,
या ये जिंदगी फिर ऐसे ही छूटेगी।
इनका जागना भी नमुमकिन है
कि ये जागते हुए सोने वाले है लोग….
जाने क्यों ऐसे हो रहे है लोग….?

परिचय :-  रुचिता नीमा जन्म २ जुलाई १९८२ आप एक कुशल ग्रहणी हैं, कविता लेखन व सोशल वर्क में आपकी गहरी रूचि है आपने जूलॉजी में एम.एस.सी., मइक्रोबॉयोलॉजी में बी.एस.सी. व इग्नू से बी.एड. किया है आप इंदौर निवासी हैं।
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।


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